- सैटेलाइट इमेज से हुआ खुलासा
- 2.50 लाख वर्षों में होता है बदलाव
- 10 हजार किमी एरिया में ज्यादा नुकसान
कोरोना वायरस का खतरा अभी टला नहीं है.एक और मुसीबत सामने आकर खड़ी हो गई है. दरअसल, हमें सोलर रेडिएशन से मैग्नेटिक फील्ड यानि चुंबकीय क्षेत्र बचाता है.अब इसकी पकड़ ढीली हो रही है.रिपोर्ट के अनुसार 10 परसेंट तक यह अपनी तीव्रता खो चुका है.यह हमारे लिए खतरे की घंटी है क्योंकि इसकी पकड़ घटने का सीधा प्रभाव हमारे ऊपर पड़ेगा. यहां तक की सैटेलाइट पर प्रभाव पड़ने से फ्लाइट्स के संचालन पर इसका असर पड़ सकता है. प्लेन क्रैश के हादसे और बढ़ सकते हैं. गौरतलब है कि पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति के सहारे सभी प्रकार की संचार प्रणालियां जैसे— सैटेलाइट, मोबाइल, चैनल आदि काम करते हैं. मगर इसके खत्म या कमजोर होने से सभी चीजें ध्वस्त होने लगेंगी. इससे सैटेलाइट सिस्टम फेल हो जाएंगे. साथ ही विमान में भी तकनीकी खराबियां आ सकती हैं.
32 हजार नैनोटेस्ला होनी चाहिए
धरती के 10 हजार किलोमीटर में तक के इलाके में चुंबकीय शक्ति कमजोर हो गई है.इससे रेडिएशन का खतरा बढ़ गया है. चूंकि पृथ्वी के बाहरी परत में 3000 किलोमीटर नीचे चुंबकीय क्षेत्र है. सामान्य तौर पर इसे 32 हजार नैनोटेस्ला होनी चाहिए थी, लेकिन 1970 से 2020 तक यह घटकर 24 हजार से 22 हजार नैनोटेस्ला तक जा पहुंची है.
साउथ अटलांटिका एनोमली में ज्यादा असर
अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के बीच एक बड़ा इलाका जिसे दक्षिण अटलांटिक विसंगति (साउथ अटलांटिका एनोमली ) कहा जाता है, वहां इसमें तेजी से कमी देखी गई है. इस क्षेत्र में पिछले 50 वर्षों में एक बड़े हिस्से में काफी तेजी से कमी देखी गई है.यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के साइंटिस्ट स्वार्म डेटा, इनोवेशन एंड साइंस क्लस्टर (डीआईएससी) से विसंगति की स्टडी करने के लिए ईएसए के स्वार्म सैटैलाइट के डेटा का उपयोग कर रहे हैं. ये स्वार्म सैटैलाइट पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को बनाने वाले विभिन्न चुंबकीय संकेतों को पहचान और माप सकते हैं. पिछले पांच वर्षों में, अफ्रीका के दक्षिण-पश्चिम की ओर कम तीव्रता का एक दूसरा केंद्र विकसित हुआ है. रिसर्चर्स का मानना है कि इसका मतलब यह हो सकता है कि विसंगति दो अलग-अलग कोशिकाओं में विभाजित हो सकती है.