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मध्य प्रदेश का खमियाज़ा यूपी में भुगतेंगे अखिलेश!

आर्टिकल/इंटरव्यूमध्य प्रदेश का खमियाज़ा यूपी में भुगतेंगे अखिलेश!

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अमित बिश्‍नोई

मध्य प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां अपने चरम पर हैं, अंतिम समय में राहुल-प्रियंका-खड़गे जहाँ धुंआधार रैलियां और रोड शो कर रहे हैं वहीँ प्रधामंत्री मोदी की भी विशाल रैलियां हो रही है और इन सबके बीच समाजवादी पार्टी के नेता भी पूरा ज़ोर लगाते दिख रहे हैं, इतना ज़ोर जितना इससे पहले किसी भी चुनाव में नहीं दिखा, ऐसा लग रहा है जैसे सपा मध्य प्रदेश में नहीं उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ रही है. आज से तीन महीने पहले मध्य प्रदेश को लेकर जब ओपिनियन पोल्स आ रहे थे लगभग सभी में यहाँ कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत मिलने का अनुमान लगाया जा रहा था लेकिन अब जबकि मतदान के सिर्फ दो दिन बाकी हैं ये लड़ाई कांटे की होती बताई जाने लगी है और राजनीतिक पंडितों के अनुसार ऐसा समाजवादी पार्टी की अतिसक्रियता की वजह से होता हुआ नज़र आ रहा है जिसे सीटों के रूप में तो कोई ख़ास फायदा होता नहीं दिख रहा लेकिन वो कांग्रेस की लड़ाई को मुश्किल ज़रूर बना रही है.

सपा की इस अतिसक्रियता का भाजपा कितना और कैसे फायदा उठा रही है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने एक बैठक में कांग्रेस को हराने के लिए सपा का साथ देने की बात भी कही है, यानि उन्हें भी साफ़ लग रहा है समाजवादी पार्टी कांग्रेस का नुक्सान करने की स्थिति में है इसलिए उसका थोड़ा साथ देकर क्यों न बड़ा फायदा उठाया जाय. अब सवाल ये उठता है कि अखिलेश यादव कांग्रेस पार्टी को नुक्सान पहुंचाकर भाजपा को फायदा क्यों पहुँचाना चाहते हैं. मध्य प्रदेश में 6 सीटों पर दावेदारी करने वाले अखिलेश यादव ने 70 से ज़्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार क्यों उतारे हैं.भाजपा से लड़ाई का दम भरने वाले अखिलेश जानबूझकर उसे ही फायदा क्यों पहुँचाना चाहते हैं।

जानकारों के मुताबिक अखिलेश यादव अपने लिए बड़ा गड्ढा खोद रहे हैं, कांग्रेस को सबक सिखाने की ज़िद में इस बात की पूरी सम्भावना बन रही है कि आने वाले दिनों में उन्हें इसका भुगतान उत्तर प्रदेश में चुकाना पड़ सकता है. अखिलेश के मध्य प्रदेश में कांग्रेस के प्रति इस तरह के विद्रोही तेवरों से उनकी पार्टी के अंदर ही सुगबुगाहट शुरू हो गयी चुकी है जो अभी मुखर नहीं हुई है लेकिन तीन दिसम्बर के नतीजों के बाद उसकी पूरी सम्भावना है. अखिलेश की जी तोड़ कोशिश के बावजूद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की लड़ाई थोड़ी मुश्किल ज़रूर हुई है लेकिन अब भी सरकार बनाने की सबसे प्रबल दावेदार वही है और यह बात वो मीडिया हाउस कह रहे हैं जिन्हे गोदी मीडिया कहा जाता है और जो चुनावी सभाओं में नज़र भी आ रहा है.

मध्य प्रदेश के नतीजे अगर कांग्रेस के पक्ष में आये तो ये बात यकीनी है कि उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक भगदड़ का माहौल देखने को मिल सकता है और ये भगदड़ समाजवादी पार्टी से कांग्रेस की तरफ होगी। इसकी झलक दिखनी शुरू भी हो चुकी है, पिछले एक महीने से सपा के कई बड़े नेताओं ने साइकिल से उतरकर कांग्रेस का हाथ थामा है और इनमें अल्पसंख्यंक वर्ग की संख्या अधिक है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ट का कार्यालय इन दिनों काफी गुलज़ार है , हर दूसरे तीसरे दिन यहाँ पार्टी जोइनिंग की पत्रकार वार्ताएं हो रही हैं, कहना नहीं होगा कि कांग्रेस ज्वाइन करने वालों में ज़्यादा तादाद किसकी होती है। पिछले विधानसभा चुनाव में मुसलमानों ने आँख मूंदकर समाजवादी पार्टी को वोट दिया था, इतना एकतरफा समर्थन मुसलमानों ने कभी भी किसी पार्टी को नहीं दिया, मुसलमानों ने अखिलेश को सत्ता में वापस लाने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया ये तो अखिलेश के अपनों यानि यादव समुदाय ने उनका पूरा साथ नहीं दिया और सत्ता एकबार फिर उनसे दूर रही. उन चुनावों के बाद ही आज़म खान को लेकर अखिलेश के रवैये से और कुछ दूसरी वजहों से मुसलमानों में अखिलेश के प्रति नाराज़गी भी काफी बढ़ गयी जो आगे बढ़ती ही गयी. एक आम धारणा बन गयी कि अखिलेश यादव मुसलमानों के हितैषी नहीं। उन्हें संगठन में भी वो स्थान नहीं मिलता है जिसके वो हकदार हैं. यही वजह है कि मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेस की तरफ एकबार फिर देखना शुरू कर दिया है।

मध्य प्रदेश में अखिलेश यादव ने जिस तरह कांग्रेस विरोध का झंडा उठाया उससे मुस्लिम समुदाय में नाराज़गी है, लोगों का मानना है कि ये पडोसी राज्य में सपा को बढ़ाने की नहीं बल्कि कांग्रेस को कमज़ोर करके भाजपा की मदद की कोशिश है. मध्य प्रदेश में अगर नतीजे कांग्रेस के पक्ष में नहीं गए और करीबी लड़ाई में कहीं भाजपा ने बाज़ी मार ली तो उसका पूरा ज़िम्मेदार अखिलेश यादव को माना जायेगा और फिर यकीनन लोकसभा चुनावों के नतीजों में वो परिलक्षित होगा। आगे इंडिया गठबंधन का क्या होगा इसके बारे में अभी कहा नहीं जा सकता लेकिन कांग्रेस और सपा के बीच एक खाई ज़रूर बनेगी। मध्य प्रदेश में सीटों का गठबंधन न होने पर दूसरी कोई भी पार्टी विचलित नहीं हुई और न ही किसी ने अखिलेश की तरह कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला। इंडिया गठबंधन की कई पार्टियां मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ रही हैं लेकिन सभी के निशाने पर सत्ताधारी भाजपा ही है, अखिलेश ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने सत्ताधारी भाजपा से ज़्यादा मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी को अपना निशाना बनाया है, इसलिए आने वाले समय उन्हें भी निशाना बनने के लिए तैयार रहना चाहिए।

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