राजनैतिक विशेषज्ञ की माने तो पश्चिम यूपी के बड़े हिस्से में मतदान होने के बाद सभी दलों को मिल जाएगा जीत का संकेत
दुष्यंत चौधरी
बिजनौर। यूपी चुनाव 2022 – इतिहास के पन्ने गवाह है कि पश्चिम यूपी में हमेशा यूपी की सत्ता का रास्ता तय किया है। राजनीतिक मुद्दे हो या सामाजिक समस्याओं का ताना-बाना वेस्ट यूपी में सबसे गर्म रहा है। यूपी की सत्ता का मिजाज वेस्ट यूपी से भांप लिया जाता है, यूं तो यूपी की सत्ता का ताज 10 मार्च को पहनाया जाएगा, मगर इसकी एक तस्वीर 14 फरवरी को भी देखी जा सकेगी।यूपी की सत्ता के लिए 10 फरवरी को पहले चरण का मतदान होगा। यह मतदान किसके पक्ष में होगा इसे लेकर हर कोई अपने-अपने कयास लगा रहा है। हर दल जनता को लुभाने के लिए पुरजोर कोशिश में लगा है, जनता भी अपनी समस्या दूर कराने के लिए अपने दल का चयन कर चुकी है और 10 फरवरी से अपनी सरकार चुनने के लिए जनता बेताब भी नजर आ रही है। लेकिन दूसरे चरण का मतदान 14 फरवरी को पश्चिमी यूपी के इतिहास कालीन जिला बिजनौर समेत मुरादाबाद अमरोहा रामपुर बरेली समेत कई जनपदों में अहम होगा। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि 14 फरवरी को दूसरे चरण में होने वाला मतदान प्रदेश की सत्ता की हवा तय कर देगा। इसमें विदुर की धरती बिजनौर की भूमिका इस बार भी प्रमुख रहेगी। चूंकि पिछले तीन दशक से बिजनौर जिले से जो भी दल अधिकांश सीटें जीत लेता है, उसी को यूपी की सत्ता का ताज पहनना तय होता है।
सदर सीट (22)
गंगा नदी से मिलती सीमाओ का आकर्षण विदुर कुटी है। देश की राजधानी से सबसे नजदीक इसी सीट को लेकर हर दल की नजर रहती है इस बार भी हर दल के प्रमुख नेता इस सीट को लेकर अपनी जोर आजमाइश में लगे हैं। बात 2007 के चुनाव से करें तो उस वक्त बसपा के शाहनवाज राणा ने जीत दर्ज करके भाजपा के राजा भारतेन्दु सिंह को पराजित किया था। साल 2012 के चुनाव में बीजेपी के कुंवर भारतेंद्र ने बाजी मार ली थी। लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव में कुंवर भारतेंद्र फिर से विजय हुए और उन्हें ये सीट छोड़नी पड़ी। साल 2014 उपचुनाव में सपा से रुचिवीरा ने जीत दर्ज़ की। इस सीट पर साल 2017 के चुनाव में एक बार फिर से बीजेपी की सूचि चौधरी ने जीत कर कब्जा किया। सूचि चौधरी ने 2017 में सपा की रूचि वीरा को हराया था।
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नगीना (18)
उत्तराखंड के पहाड़ों से लगी सीमा पर नगीना सुरक्षित सीट बिजनौर जिला मुख्यालय से करीब 32 किमी की दूरी पर स्थित नगीना की पहचान काष्ठ कला के लिये पहचानी जाती हैं। नगीना में काष्ट कला समेत 1000 के करीब छोटे बड़े कारखाने हैं। अकेले काष्ठ कला का टर्नओवर करीब 400 करोड़ सालाना माना जाता है। नगीना में एक कताई मिल भी है जो साल 2001 से बंद पड़ी है। यह सीट दलितों की राजनीति का मुख्य केंद्र भी है।विधानसभा चुनाव 2012 सपा के मनोज पारस ने ओमवती को हराकर करीब 26 हजार वोटों के अंतर से विजयी हुए। उस वक्त बीजेपी के लवकुश कुमार तीसरे स्थान पर रहे। अखिलेश यादव ने ने मनोज पारस को राज्यमंत्री बना दिया। साल 2017 के चुनाव में फिर से मनोज पारस और ओमवती आमने-सामने खड़े हुए। ओमवती ने दल बदलकर चुनाव लड़ा, फिर भी मनोज पारस 8 हजार वोट के अंतर से जीत गए। बसपा उम्मीदवार वीरेंद्र पाल सिंह को 49 हजार 693 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे।
चांदपुर सीट (23 )
कभी मिनी छपरौली के नाम से मशहूर चांदपुर विधानसभा सीट महाभारत काल सैंद्वार से जुड़ी है। यहां कौरवों और पाण्डवो के युद्ध का स्थान हस्तिनापुर महज 30 किमी चांदपुर से दूर था। बताते हैं कि चांदपुर विधानसभा सीट पढ़ने वाले गांव सैंद्वार में अपने हथियार रखते थे, इस कारण उसका एक नाम सेना का द्वार कहा जाता था। विधान सभा क्षेत्र को गुड़ उद्योग के रूप में पहचान मिली थी, लेकिन विकास का सबसे अधिक अभाव इस इलाके में रहा है मायावती सरकार में चांदपुर में लगने वाली सरकारी शुगर मिल को निजी हाथों में भेज दिया गया था इसके अलावा अनेक समस्याओं के कारण यहां से उद्योग पलायन की स्थिति में है। विधानसभा चुनाव 2012 की बात करें तो चांदपुर सीट से बीएसपी के प्रत्याशी इकबाल ने 54941 वोट पाकर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी शेरबाज खान को हराया था। शेरबाज को सिर्फ 39928 वोट मिले थे । यहाँ भाजपा की कविता चौधरी 36941 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रही थी। इसके साथ ही 31495 वोट पाकर चौथे स्थान पर महान दल के अरविंद कुमार रहे थे।साल 2017 के मैदान में बीजेपी की उम्मीदवार कमलेश सैनी ने 92345 वोट लेकर विधायक बनी। कमलेश सैनी ने दो बार से विधायक रहे बीएसपी के इकबाल ठेकेदार को हराया था । इकबाल को 56969 वोट लेकर संतोष करना पड़ा था। सपा उम्मीदवार अरशद को 36531 वोट मिले थे, कांग्रेस के शेरबाज पठान को 15826 वोट मिले थे।
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नजीबाबाद (17 )
नजीबाबाद विधानसभा सीट पर माकपा के रामस्वरूप सिंह का कब्जा रहा। माकपा प्रत्याशी के रूप में तीन बार इस सीट पर विधायक रहे हैं। ये एकमात्र ऐसे विधायक थे। जिनके पास गाड़ी, घोड़ा कुछ नहीं था। रामस्वरूप सिंह बस या ट्रेन से ही सफर करते थे। सपा मुखिया मुलायम सिंह का हर चुनाव में रामस्वरूप सिंह को समर्थन रहता था। रामस्वरूप सिंह के सामने सपा की ओर से कोई प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं उतरता था। 2002 के चुनाव में रामस्वरूप सिंह नजीबाबाद सीट से तीसरी बार विधायक चुने गए। उन्होंने बसपा प्रत्याशी शीशराम सिंह को चुनाव मैदान में मात दी। रामस्वरूप सिंह को 40, 426 तथा शीशराम सिंह को 35,584 वोट मिले। पूर्व विधायक रामस्वरूप सिंह की मौत के बाद 2007 में इस सीट पर बसपा ने कब्जा कर लिया।
2017 में हुए चुनाव में सपा के तस्लीम अहमद को 81082 वोट मिले थे और विजयी हुए थे। 2 नंबर पर बीजेपी के राजीव अग्रवाल रहे जिनको 79080 वोट मिले और 2002 वोट से हार गए । बसपा के जमील अहमद को 45070 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे और बीजेपी से टिकट न मिलने से नाराज लीना सिंघल ने बीजेपी छोड़ रालोद का दामन थाम लिया और 3587 वोट पाकर चौथे स्थान पर रही।
बढ़ापुर (19 )
परसीमन से पहले अफजलगढ़ विधानसभा सीट से जानी जाने वाली सीट पर साल 2012 में बढ़ापुर के नाम से चुनाव हुआ। यहां पर भाजपा का दबदबा रहा है। भाजपा के डा.इंद्रदेव सिंह तीन बार विधायक रहे है। 2007 में पहली बार बीएसपी को मोहम्मद गाज़ी ने जीत दिलाई। मोहम्मद गाजी ने 2012 में दूसरी बार भाजपा प्रत्याशी डा.इंद्रदेव सिंह को हराया। मोहम्मद गाजी को 68,436 तथा डा.इंद्रदेव सिंह को 41 हजार 61 वोट मिले। कांग्रेस के हुसैन अहमद को 39083 वोट मिले।महानदल के साथ चुनावी मैदान में उतरी ठाकुर सर्वेश सिंह की पत्नी साधना सिंह को करीब 30000 वोटों के साथ ही संतोष करना पड़ा। लेकिनसाल 2017 के चुनाव में साधना सिंह के बेटे सुशांत सिंह को 78744 वोट मिले। दूसरे स्थान पर सपा कांग्रेस के हुसैन अहमद अंसारी रहे जिनको 68920 वोट मिले थे। तीसरे स्थान पर बीएसपी के फ़हद यजदानी रहे जिनको 50684 मत मिले थे ।
नूरपुर (24 )
मुरादाबाद और अमरोहा की सीमा से सटी हुई नूरपुर विधान सभा का इतिहास बहुत पुराना है । नुरपुर में चार डिग्री कालेज , 10 इंटर कालेज बने हुए है। जनपद में नूरपुर विधानसभा की केंद्रीय स्थिति होने के बावजूद यहां अभी काफी विकास की दरकार है। साल 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी के युवा तथा जुझारू नेता लोकेंद्र चौहान ने बीएसपी के हाजी उस्मान को हराया ।
साल 2017 में ये सीट फिर बीजेपी के खाते में गयी और लोकेंद्र चौहान दूसरी बार विधायक बने । दूसरे नम्बर पर सपा के नईम उल हसन आये और तीसरे स्थान पर बीएसपी के गोहर इकबाल रहे।साल 2018 में विधायक लोकेंद्र चौहान की सड़क हादसे में मौत के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ। उपचुनाव में महागठबंधन प्रत्याशी नईमुल हसन ने जीत दर्ज़ करते हुए मृतक लोकेन्द्र की पत्नी अवनि सिंह को हराया ।भाजपा ने विधायक स्व.लोकेेंद्र चौहान की पत्नी अवनी सिंह पर दांव खेला था। नईमुल हसन ने अवनी सिंह को इस सीट पर हराकर कब्ज़ा कर लिया था। यह सीट इस समय समाजवादी पार्टी के खाते में है।
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नहटौर-21 (सुरक्षित)
विधानसभा की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो यह विधानसभा 2008 में हुए परिसीमन के बाद बनी थी। अनुसूचित जाति बहुल इस सीट को सुरक्षित घोषित किया गया है। इस विधानसभा पर 2012 में पहली बार चुनाव हुआ था। जिसमें बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के रूप में ओम कुमार ने समाजवादी पार्टी के राजकुमार राजू को 19,398 वोटों के अंतर से हराकर इस सीट पर जीत हासिल की थी।हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में ओम कुमार पाला बदलते हुए भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और इस सीट से एक बार फिर से अपनी किस्मत आजमाई। इस बार फिर जनता ने उनका समर्थन किया और वह दोबारा इस सीट पर विधायक चुने गए। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मुन्ना लाल प्रेमी को चुनाव में हराया। चुनाव में ओम कुमार को 76,444 और मुन्ना लाल प्रेमी को 53,493 वोट मिले।
08 -धामपुर विधानसभा (20)
नगीना लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली धामपुर विधानसभा सीट सबसे पहले 1956 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी। आता है। इस पर पहली बार चुनाव 1957 में हुआ। 2008 में परिसीमन के बाद इसका नेटवर्क क्षेत्र काटकर अलग विधानसभा क्षेत्र बना दिया गया। 2012 के विधानसभा चुनावों में हुए एक नजदीकी मुकाबले में इस सीट से समाजवादी पार्टी के ठाकुर मूल चंद चौहान ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बीएसपी के अशोक कुमार राणा को महज़ 564 वोटों से परास्त किया था।उन्होंने 53365 मत हासिल कर जीत दर्ज की थी जबकि अशोक राणा को 52801 वोट मिले। कांग्रेसी उम्मीदवार अनवर जामिल 36995 वोट हासिल कर तीसरे नंबर पर रहे । जबकि भारतीय जनता पार्टी के राजेंद्र सिंह 9962 वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे ।
2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी नेता अशोक राणा ने प्रदेश के राजनीतिक माहौल को भांपते हुए बीएसपी का दामन छोड़ बीजेपी की शरण ली और बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ कर 82169 वोट हासिल कर बड़ी जीत दर्ज की। सपा के मूलचंद चौहान 64305 वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे । वही बीएसपी के मोहम्मद गाजी 42836 वोट हासिल कर तीसरे नम्बर पर रहे ।
*बिजनौर जिले की प्रमुख समस्याएं*
देश की राजधानी दिल्ली से महज 200 किलोमीटर के दायरे में आने वाला जनपद बिजनौर आज भी विकास के मामले में पड़ोसी जनपदों के मुकाबले काफी पिछड़ा हुआ है। ऐतिहासिक तथा प्राकृतिक रूप से समृद्ध होने के बावजूद तथा देश की राजधानी के नजदीक होने पर भी जनपद बिजनौर में उद्योग धंधों तथा मूलभूत सुविधाओं का अभाव नजर आता है।
जनप्रतिनिधियों की उदासीनता कहें या प्रशासन की अक्षमता, जनपद बिजनौर में आज भी हर वर्ष बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है। जबकि करोड़ों रुपए बाढ़ से बचाने के लिए खर्च किए जाते हैं। उद्योग धंधे तथा व्यापारिक सुविधाएं जनपद में निम्न स्तर पर हैं। नगीने की काष्ठ कला उद्योग, शेरकोट का ब्रश उद्योग तथा नहटौर का कपड़ा उद्योग आज बुरी अवस्था में है। इन उद्योगों को यदि पनपने का उचित माहौल दिया जाए तो जनपद में प्रतिवर्ष हजारों करोड रुपए का कारोबार इन्हीं के माध्यम से संभव है।
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आजादी के बाद से ही अरबों रुपए विकास के नाम पर कागजों में ठिकाने लगाया जा चुका है, मगर हकीकत इसके काफी विपरीत है। पड़ोसी जिलों से कनेक्टिविटी के नाम पर सुविधाएं भी नगण्य है, सूरज ढलते ही जिला मुख्यालय से ट्रेन और बसों का संपर्क ना के बराबर हो जाता है। टूटी सड़कें और सरकारी अस्पताल में ना के बराबर सुविधाएं आज भी विकास को आइना दिखा रही है। कागजों पर विकास के दावे खूब किए जाते हैं किंतु जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार और उदासीनता जनपद के कई हिस्सों में देखने को मिलती है।
गन्ना बेल्ट होने के कारण जनपद बिजनौर को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए उससे भी किसान आज तक वंचित हैं। समय पर गन्ने का पेमेंट न मिलना तथा खाद और बीज की किल्लत का सामना अक्सर यहां के गन्ना किसानों को करना पड़ता है।