पौड़ी गढ़वाल- देवभूमि उत्तराखंड को भगवान शिव की तपस्थली कहा जाता है. यहां पर अधिकतर धार्मिक स्थल भगवान भोलेनाथ को समर्पित हैं. इन सबके बीच उत्तराखंड में आपको रामायण और महाभारत काल जुड़े कई तीर्थ स्थल देखने को मिलेंगे. आज हम आपको उत्तराखंड में भगवान श्री कृष्ण के नाग रूप के उस मंदिर के बारे में बताते हैं जहां भगवान श्रीकृष्ण नाग रूप में प्रकट हुए थे. पौड़ी गढ़वाल मुख्यालय से महज 45 किलोमीटर दूर अदवानी-भगवानी खाल मार्ग पर यह मंदिर स्थित है. हर साल बैसाखी के दिन पर यहां एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें दूर-दूर से हजारों की संख्या में आकर भक्त अपनी मन्नत के लिए मंदिर में घंटी और ध्वज अर्पित करते हैं.
भगवान श्री कृष्ण का नागराजा अवतार
पौड़ी गढ़वाल मुख्यालय से महज 40 किलोमीटर दूर काफल, बांज और बुरांश के घने जंगलों से घिरा डांडा नागराजा का यह मंदिर श्री कृष्ण के नागराज अवतार को समर्पित है. कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण जब पृथ्वी पर भ्रमण पर थे तो उन्हें यह जगह बहुत ही पसंद आ गई. उन्होंने यहां नाग के रूप में अवतरित होकर लेट कर इस स्थान की परिक्रमा की. जिसके बाद इस जगह पर “डांडा नागराजा” का मंदिर स्थापित किया गया. यह मंदिर करीब 140 साल पुराना बताया जाता है. गढ़वाल क्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण के अवतारों में एक नागराजा की देव शक्ति की सर्वाधिक मान्यता मानी जाती है. वैसे तो देव नागराजा का मुख्य धाम उत्तरकाशी के सेम मुखेम में है. पर कहा जाता है कि सेम मुखेम और यह मंदिर एक ही समान है.
गुमाल जाति को चुकानी पड़ी कीमत
डांडा नागराजा मंदिर को लेकर मान्यता है कि पहले बसेरा गांव में गुमाल जाति के पास एक दुधारू गाय हुआ करती थी. कहा जाता है कि यह गाय रोज डांडा यानी पहाड़ के शिखर पर एक पत्थर को अपना पूरा दूध चढ़ा देती थी. जिसके कारण घर के लोगों को दूध नहीं मिल पाता था. कहा जाता है कि इस बात का पता लगने पर गाय के मालिक ने कुल्हाड़ी से उस पर वार किया लेकिन कुल्हाड़ी उस गाय को न लगने की बजाय उस पत्थर पर जा लगी. जिससे उस पत्थर के दो टुकड़े हो गए कहा जाता है कि उस पत्थर का एक भाग आज भी डांडा नागराजा में मौजूद है मान्यता यह भी है कि इस घटना के बाद से गुमाल जाति विलुप्त हो गई.