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Agastya Muni – ऋषि अगस्त ने खास उद्देश्य के लिए बसाया था गांव

धर्मAgastya Muni - ऋषि अगस्त ने खास उद्देश्य के लिए बसाया था...

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रुद्रप्रयाग- केदारनाथ यात्रा का अहम पड़ाव के रूप में माने जाने वाले अगस्तमुनि अपनी धार्मिक महत्वता के लिए जाना जाता है. ‘अगस्तमुनि’ को ऋषि अगस्त की तपस्थली के रूप में जाने जाने वाले ‘अगस्तमुनि’ समुद्र तल से करीब 1000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. कहने को तो यह है एक छोटा शहर है लेकिन धार्मिक आस्था और विश्वास की गंगा यहां सदा आपको बहती हुई दिखाई देगी. ‘अगस्तमुनि’ मैं आपको महर्षि अगस्त के इष्ट देव माने जाने वाले ‘अगस्तेश्वर’ का प्रसिद्ध मंदिर भी देखने को मिलेगा. केदारनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्री अगस्त मुनि के अहम पड़ाव पर रुकते हैं.

अगस्तमुनि का खास उद्देश्य

केदारनाथ यात्रा के अहम पड़ाव के रूप में जाने जाने वाला अगस्त्यमुनि बेहद शांत और खूबसूरत जगह है. कहा जाता है कि ऋषि अगस्त ने इस स्थान को खास उद्देश्य के लिए बसाया था. ऋषि अगस्त यहां अपने गुरुकुल का प्रयोग करते थे. रुद्रप्रयाग मुख्यालय से महज 19 किलोमीटर दूर अगस्त्यमुनि से केदारनाथ 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. कहा जाता है कि यहां पर ऋषि अगस्त ने कई वर्षों तक तपस्या की थी. महर्षि अगस्त्य की तपस्थली होने के चलते इस जगह का नाम अगस्त्यमुनि पड़ा. बैसाखी पर यहां एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें दूर-दूर से आए श्रद्धालु अपने इष्ट देवता की पूजा अर्चना करते हैं.

दक्षिण भारत से आए लोगों ने बसाया गांव

‘अगस्तेश्वर’ को महर्षि अगस्त का इष्ट देव माना जाता है. यहां पर उनका एक प्राचीन मंदिर स्थापित है कहा जाता है कि बहुत साल पहले मंदिर के पुजारी का देहांत हो गया था. जिसके चलते वहां पूजा-पाठ बंद हो गई, कुछ समय बाद दक्षिण भारत से 2 लोग उत्तराखंड यात्रा पर आए उन्होंने मंदिर के बारे में सुना और पता करते हुए मंदिर में दर्शन के लिए आए. स्थानीय लोगों ने उन्हें दर्शन करने से मना किया क्योंकि मान्यता यह थी कि जो भी व्यक्ति उस मंदिर में अंदर जाता उसकी मृत्यु हो जाती थी. दक्षिण भारत से आए व्यक्तियों ने अगस्त मंदिर में दर्शन करने की इच्छा जाहिर की और कहा कि दक्षिण में अगस्त ऋषि का बड़ा आश्रम है और वह हमारे देवता है. जिसके बाद वे मंदिर में गए और सकुशल वापस लौटे. फिर क्या था स्थानीय लोगों ने उन्हीं से मंदिर की पूजा-पाठ का जिम्मा संभालने का अनुरोध किया. मंदिर से ही कुछ दूर पर ‘बेंजी’ नामक गांव को बसाया गया और आज के समय में इसी गांव के लोग मंदिर के पुजारी होते हैं.

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