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धार्मिक ध्रुवीकरण टूटा, मेरठ में राम को लग सकता है करारा झटका

आर्टिकल/इंटरव्यूधार्मिक ध्रुवीकरण टूटा, मेरठ में राम को लग सकता है करारा झटका

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उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर 26 अप्रैल को लोक सभा चुनावों में पहली बार नहीं उतरा कोई मुस्लिम प्रत्याशी

पारुल सिंघल

लोकसभा चुनाव 2024 का दूसरा चरण शुक्रवार यानी 26 अप्रैल को होगा। खास बात ये है कि इस चरण में उत्तर प्रदेश की मेरठ समेत महत्वपूर्ण आठ सीटों पर वोटिंग होगी। मुस्लिम बाहुल्य वाले इलाके मेरठ में बीते 25 वर्षों में पहली बार किसी भी पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा है। जिसके बाद यहां पर धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण टूटते नजर आ रहे हैं। वर्ष 1999 से लेकर वर्ष 2019 तक लगातार मुस्लिम प्रत्याशियों के मैदान में उतरने से न केवल यहां चुनाव के समीकरण बेहद दिलचस्प देखे गए हैं, वहीं बीते दो चुनाव के नतीजे भी खास रहे हैं। वर्ष 2009 से धार्मिक ध्रुवीकरण का फायदा भाजपा ले रही थी। इस बार लेकिन वोटर का रुझान किस तरफ है यह समझ पाना आसान नहीं हो रहा है।

2014 में मोदी लहर ने तोड़े थे रिकॉर्ड
वर्ष 2014 की बात करें तो भाजपा को मेरठ में शानदार जीत हासिल हुई थी। यह वह वर्ष था जिसने केंद्र में भाजपा को लाने में पश्चिमी यूपी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। मेरठ की बात करें तो यहां सारे समीकरण भाजपा के पक्ष में थे। गांव से लेकर शहर, ऊंची जातियों से लेकर दलित, यहां तक की मुसलमानों ने भी भाजपा को वोट दिया था। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 1989 के बाद वर्ष 2014 में प्रदेश में किसी भी पार्टी को इतनी बड़ी जीत हासिल हुई थी। मोदी लहर में हर वर्ग, हर समाज डूबा हुआ था। यह वह दौर था जब किसानों के साथ ही दलित समाज ने भी खुलकर भाजपा के पक्ष में वोट किया था। इन चुनावों के बाद भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। प्रदेश में 80 में से 71 सीटें भाजपा के पक्ष में गई थी

2019 में मात्र 0.39 प्रतिशत के अंतर से जीते थे राजेंद्र अग्रवाल
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मेरठ सीट पर कड़ी टक्कर मिली थी। भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र अग्रवाल मात्र 0.39 प्रतिशत वोटो से जीते थे। इन चुनावों में सपा के साथ गठबंधन में रहे बसपा के हाजी मोहम्मद याकूब को 47.78 वोट मिले थे। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र होने का पूरा फायदा बसपा को मिला था। धार्मिक ध्रुवीकरण भी गठबंधन के पक्ष में आया था। यह भी कहा जाता है कि बैलेट के आधार पर हुए वोटिंग के जरिए भाजपा को जिताया गया था।

अरुण गोविल की राह है मुश्किल
वर्ष 2009 से मेरठ में भाजपा को धार्मिक समीकरण का काफी फायदा मिल रहा है। इस बार मुस्लिम उम्मीदवार यहां न होने ने इस संभावना को खत्म कर दिया है जिससे भाजपा के लिए मेरठ में काफी चुनौती दिखाई दे रही है। एक तरफ समाजवादी पार्टी में सुनीता वर्मा को अपना प्रत्याशी बनाकर उतारा है। दलित होने के साथ ही मुस्लिम समाज पर भी उनकी पकड़ मजबूत है। बसपा ने राजपूतों को साधने की कोशिश की है। जमीनी नेता राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटकर भाजपा ने अभिनेता से नेता बने अरुण गोविल को टिकट दिया है। जिन पर पहले ही बाहरी होने का टैग है। ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम समाज के समीकरण भी बदले हुए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा और कांग्रेस का गठबंधन होने से वोट बंटने की संभावना जरूर हुई हैं लेकिन, यदि बीजेपी इस सीट पर सफल होती भी है तो भी उनकी जीत पहले वर्षों के मुकाबले इस बार काफी जटिल रहेगी।

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