टिहरी गढ़वाल – उत्तराखंड धार्मिक आस्था और विश्वास का केंद्र होने के साथ-साथ प्रेरणादायक कहानियां से भी भरा हुआ है. आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे ही गांव के बारे में बताते हैं. जिसने पनीर का व्यापार अपनाकर न केवल गांव को नई पहचान दी बल्कि आत्म निर्भरता का एक बड़ा संदेश भी लोगों को दे रहा है. अब यह गांव “पनीर गांव” के नाम से जाना जाता है. इस गांव में आने वाली नवविवाहिता को दूसरे रीति रिवाज दिखाने से पहले पनीर बनाना सिखाया जाता है. हम बात कर रहे हैं पहाड़ों की रानी मसूरी से सटे हुए टिहरी जिले के ‘रौतू की बेली’ गांव की. इस गांव के 90% से भी अधिक लोग पनीर का काम कर आत्मनिर्भर बनने का एक बड़ा संदेश दे रहा है.
दूध से पनीर, फिर “पनीर गांव”
रौतू की बेली टिहरी गढ़वाल जिले के मसूरी उत्तरकाशी मार्ग पर सुवाखोली से महज 5 किलोमीटर दूर स्थित है. आज के समय में पनीर के उत्पादन को लेकर यह गांव खासा चर्चाओं में है. ‘रौतू की बेली’ से ‘पनीर गांव’ बनने का सफर खासा दिलचस्प है. बताया जाता है कि इस गांव में कुछ साल पहले लोग दूध का व्यापार किया करते थे. जिसमें उन्हें सीमित मुनाफा होता था लेकिन 1980 के आसपास पनीर बनाने का काम शुरू हुआ, कुछ परिवारों से शुरू हुआ यह काम आज गांव का मुख्य रोजगार बन गया है. यहां से पनीर न केवल मसूरी, देहरादून और टिहरी सप्लाई होता है, आज यहां के बने पनीर की डिमांड दिल्ली तक है.
नई दुल्हन पहले सीखती है पनीर बनाना
‘पनीर गांव’ के नाम से फेमस “रौतू की बेली” में आज जब भी कोई नई दुल्हन आती है तो उसे धार्मिक रीति रिवाज सिखाने से पहले पनीर बनाना सिखाया जाता है. इस गांव का लगभग हर परिवार दूध से बनने वाली चीजों को बेचकर अपनी आजीविका चलाता है. पनीर वाले गांव में दूध से कई तरह की और भी चीजें बनाई जाती है.1500 की आबादी वाले इस गांव के 250 से भी अधिक परिवार पनीर बनाने के काम में लगे हुए हैं.