टिहरी। टिहरी झील में फ्लोटिंग हट्स को फिर से भगीरथी का सीना छलनी करने की अनुमति प्रशासन ने प्रदान कर अपने हाथ खड़े कर लिए हैं। फ्लोटिंग हट्स के सीवर और कीचन का गंदा पानी अब बेखौफ भगीरथी में डाला जा रहा है। इसके लिए पर्यावरणविदों ने आवाज उठाई लेकिन इसकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। फ्लोटिंग हट्स की जांच में मिली तमाम खामियों के बाद भी इसको संचालित करने वाली कंपनी को दोबारा से संचालन की अनुमति दे दी गई।
सबसे बड़ी हैरानी की बात कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने फ्लोटिंग हट्स की जांच के 24 दिन तक बाद इसको टिहरी झील में गंदगी डालने की अनुमति दी। जबकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को फ्लोटिंग हट्स संचालक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई चाहिए थी। वहीं अब इस पूरे मामले से जिला प्रशासन ने भी पल्ला झाड़ लिया है। जिला प्रशासन ने कहा कि फ्लोटिंग हट्स संचालन की अनुमति पर्यटन विकास परिषद की ओर से दी गई है।
बता दें कि टिहरी झील में ली राय कंपनी की ओर से पीपीपी माडल के तहत फ्लोटिंग हट्स संचालन की अनुमति ली गई थी। जिसकी समस्त जिम्मेदारी ली राय कंपनी की थी। लेकिन कंपनी ने फ्लोटिंग हट्स का संचालन अपने हाथ में लेने के बाद से ही भगीरथी को गंदा करना शुरू कर दिया था। कंपनी के एक कर्मचारी ने इंटरनेट पर फ्लोटिंग हट्स से निकलने वाली सीवर के पानी को टिहरी झील में डालने का वीडियो वायरल किया था। इसके बाद सात अक्टूबर को जिला प्रशासन टिहरी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड टीम ने टिहरी झील में पीपीपी मोड में संचालित फ्लोटिंग हट्स का निरीक्षण किया। इस दौरान फ्लोटिंग हट्स से निकलने वाले सीवर और कीचन के गंदे पानी का निस्तारण सही नहीं पाया गया। इसकी रिपोर्ट प्रशासन को देने के बाद फ्लोटिंग हट के किचन को सील कर दिया था।
लेकिन उसके बाद उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद निदेशक अवस्थापना लेफ्टिनेंट कमांडर दीपक खंडूड़ी ने जिला प्रशासन को पत्र भेजकर फ्लोटिंग हट्स को फिर से संचालन की अनुमति देने के निर्देश दिए। पत्र में यह भी कहा गया था कि फ्लोटिंग हट संचालन के लिए जो अनापत्तियां लेनी हैं, उन्हें सुनिश्चित किया जाए। इस बारे में जिलाधिकारी टिहरी डा. सौरभ गहरवार का कहना है कि फ्लेाटिंग हट्स का निरीक्षण किया था और वहां सीवर निस्तारण न होने के कारण रसोई क्षेत्र को सील कर दिया गया था। लेकिन पर्यटन विकास परिषद के आदेश के बाद अब उसके संचालन की अनुमति दे दी गई है। बता दें कि इस मामले में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी पूरी तरह से खामोश है।
गोमुख से निकलने वाली भागीरथी नदी के ऊपर टिहरी झील बनी है। भागीरथी नदी देवप्रयाग से गंगा का स्वरूप और नाम धारण करती है। इसको पर्यटन के नाम पर बनाए गए फ्लेाटिंग हट्स द्वारा प्रदूषित किया जा रहा है। जबकि फ्लेाटिंग हट्स का पर्यटन विभाग में रजिस्ट्रेशन भी नहीं है।