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कांग्रेस को समझना होगा

आर्टिकल/इंटरव्यूकांग्रेस को समझना होगा

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अमित बिश्नोई

कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा बनारस से निकल गयी, अमेठी से निकल, गयी, रायबरेली से भी निकल गयी और लखनऊ से भी. यानि अखिलेश यादव के हेडक्वार्टर की रेंज से निकल गयी लेकिन यात्रा में अखिलेश यादव नज़र नहीं आये, न मंच पर, न जीप पर, न बस में और न ही पैदल। शोर बहुत था कि जब न्याय यात्रा यूपी में दाखिल होगी तो राहुल के साथ अखिलेश भी नज़र आएंगे. पहले अमेठी की बात थी, फिर रायबरेली की हुई और बीच में शर्त आ गयी. पहले सीटें फाइनल होंगी फिर यात्रा में शामिल होंगे। यात्रा अब लखनऊ की रेंज से दूर जा चुकी है, आज कानपूर भी पार कर जाएगी लेकिन सीटों का मसला जैसा का तैसा बना हुआ है. एक तरफ राहुल गाँधी की यात्रा आगे बढ़ती जा रही है तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की लिस्ट पर लिस्ट निकालते चले जा रहे हैं।

सपा 32 उम्मीदवार फाइनल कर चुकी है, इस बार तो चचा जान को भी मैदान पर उतार दिया है. देखा जाय सपा ने गठबंधन के अपने हिस्से के आधे उम्मीदवार उतार दिए हैं क्योंकि गठबंधन के तहत उसने कांग्रेस को अंतिम रूप में 17 सीटों का ऑफर किया है जिसे स्वीकारना या न स्वीकारना कांग्रेस के हाथ में है. पेंच फंसा हुआ है मुरादाबाद और बलिया सीट के लिए. कांग्रेस ये दोनों सीट चाहती है. मुरादाबाद का मेयर चुनाव वो बड़े मामूली अंतर से हारी थी इसलिए दावा उसका बनता है वहीँ मुरादाबाद सपा कि सिटिंग संसदीय सीट है तो उसका दावा कांग्रेस से ज़्यादा मज़बूत बनता है. मानकर चलिए यहाँ पर कांग्रेस की दाल नहीं गलने वाली। बलिया सीट कांग्रेस पार्टी अपने नए प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के लिए मांग रही है, वैसे तो बलिया समाजवादियों का गढ़ है. इस सीट को भी छोड़ना सपा के लिए आसान नहीं है लेकिन अखिलेश यादव ने जब भी किसी पार्टी से चुनावी गठबंधन किया है, बड़ा दिल दिखाया है, तो हो सकता वो बलिया पर समझौता कर लें.

वैसे पिछले एक हफ्ते की बात करें तो अखिलेश के तेवरों में कांग्रेस के प्रति तल्खी दिखाई दे रही है, हालाँकि वो अभी भी PDA को आगे रखते हुए इंडिया गठबंधन की बात लगातार कह रहे हैं, बातचीत जारी है की बात कह कर इंडिया गठबंधन के लिए आस बँधाये हुए हैं वहीँ कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता भी अखिलेश के हालिया बयानों को लेकर फ्रंट पर दिख रहे हैं और सपा मुखिया को नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं, बता रहे हैं कि सीटों का एडजस्टमेंट सोशल मीडिया पर नहीं होता। ये वही नेता हैं जो मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान अखिलेश पर हमले कर रहे थे और अखिलेश ने उन्हें छुटभय्या कहा था, साथ ही कांग्रेस के दिल्ली नेतृत्व को आगाह भी किया था, उसके बाद से इन नेताओं की ज़बान पर लगाम लग गयी थी लेकिन पिछले दो दिनों में उनके वीडियो बयान बता रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी ने उन्हें आगे किया है.

दोनों पार्टियों में तल्खी बढ़ेगी तो इंडिया गठबंधन के हाथ से अखिलेश भी निकल सकते हैं। यूपी की बात करें तो अखिलेश से ज़्यादा ज़रुरत कांग्रेस पार्टी को है, इसे कांग्रेसियों को समझना चाहिए जो अतीत की यादों में खोये हुए हैं और 2009 की बातें कर रहे हैं जब कांग्रेस पार्टी ने 22 सीटें जीती थी और 15 पर उपविजेता रही थी लेकिन आज उसके पास एकमात्र रायबरेली सीट है और इस बार सोनिया गाँधी भी वहां से नहीं लड़ेंगी क्योंकि वो बड़े हाउस पहुँच चुकी हैं. कांग्रेस पार्टी गठबंधन धर्म की बात कर रही लेकिन भारतीय राजनीति में तो इसका फैसला हालात ही करते हैं. कभी भी गठबंधन धर्म सभी बराबरी से नहीं निभाते। मज़बूत और मजबूर का फार्मूला हर जगह चलता है, वैसे एक सीट वाली कांग्रेस पार्टी के लिए 17 सीटों का फार्मूला बुरा नहीं है, बल्कि हम तो कहेंगे कि काफी अच्छा है। यूपी में उसकी जो हालत है उसे देखते हुए तो उसे अखिलेश के इस ऑफर को फ़ौरन से पेश्तर एक्सेप्ट कर लेना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि बात बिगड़ जाय और अखिलेश हाथ से निकल जांय। वैसे भी अखिलेश अपनी तैयारी लगातार कर ही रहे हैं. 32 नामों का एलान कर चुके हैं और उनकी बातचीत राजा भय्या की पार्टी से भी चल रही है. राजा भैया का प्रतापगढ़ और साथ के ज़िलों में दबदबा है, असर है. जनसत्ता दल लोकतान्त्रिक पार्टी के दो विधायक भी हैं. दोनों पार्टियों के बीच मुलाकातें और टेलीफोनिक गुफ्तुगू जारी है.

अखिलेश यादव पहले भी कई बार कह चुके हैं कि उनकी तैयारी 80 सीटों की है, मतलब कांग्रेस पार्टी से अगर गठबंधन नहीं हुआ तो वो कुछ और छोटे दलों को साथ लेकर आगे बढ़ सकते हैं. वैसे भी सपा का टारगेट 65 सीटें है जिनपर उसका फोकस है, बाकी सीटें उसे दूसरों को देने में कोई समस्या नहीं होगी, फिर वो चाहे राजा भैया की जनसत्ता दल लोकतान्त्रिक जैसी छोटी पार्टियां ही क्यों न हों। सोचना कांग्रेस को है, कांग्रेस पार्टी इस मामले में जितना ज़्यादा समय लगाएगी, नुक्सान उसी का होगा। इसे कांग्रेस को अच्छी तरह समझना होगा।

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