अमित बिश्नोई
नागपुर में आज टीम इंडिया को ऑस्ट्रेलिया पर पारी के अंतर से एक विशाल जीत हासिल हुई, एक भारतीय क्रिकेट फैन होने के नाते ज़ाहिर तौर पर यह बड़ी ख़ुशी की बात है लेकिन एक क्रिकेट फैन होने के नाते यह बड़े दुःख और निराशा की भी बात है कि दुनिया की सबसे बड़ी दो टेस्ट टीमों के बीच मैच सिर्फ ढाई दिन में ख़त्म हो गया. आप कह सकते हैं कि हारने वाली टीम बहुत बुरा खेली होगी। आपका कहना सही भी है, ऑस्ट्रेलिया ने खराब क्रिकेट खेली लेकिन सवाल यह भी है कि ऑस्ट्रेलिया ने इतनी खराब क्रिकेट क्यों खेली, उसने खराब क्रिकेट खेली या फिर खराब क्रिकेट खेलने पर एक तरह से मजबूर होना पड़ा. ऑस्ट्रेलियन टीम को अगर देखें तो वो इतनी खराब टीम है नहीं जितना खराब उसने प्रदर्शन किया है. दरअसल यहाँ हमें चिंता ऑस्ट्रेलिया के खराब प्रदर्शन की नहीं बल्कि टेस्ट क्रिकेट के खराब प्रदर्शन की है.
आज की फटाफट क्रिकेट के दौर में टेस्ट क्रिकेट वैसे भी अपना आकर्षण खोती जा रही है, बहुत कम मैच पांचवें दिन पहुँचते हैं लेकिन जब मैच ढाई दिन में मैच ख़त्म होने लगेंगे तो चिंता की बात होगी ही. टेस्ट क्रिकेट का एक मिजाज़ होता है. पांच दिन मैच चलता और पिच हर दिन अलग तरह का व्यवहार करती है लेकिन पिच जब पांचवें दिन का व्यवहार पहले दिन ही करने लगे तो फिर उसे कम से कम टेस्ट पिच तो नहीं कहा जा सकता। नागपुर में कुछ इसी तरह की पिच थी। टीम की जीत के समर्थक अपनी दलील में यह बात कह सकते हैं कि पिच तो दोनों टीमों के लिए बराबर थी. जिस पिच पर भारतीय बल्लेबाज़ों ने 400 रन बनाये उसपर कंगारू कुछ नहीं कर सके, इसमें पिच की कहाँ से गलती है.
इस बात में दम है लेकिन यह बात सिर्फ उनके लिए सही है जो सिर्फ टीम की जीत चाहते हैं जो क्रिकेट को चाहते हैं उनके लिए नागपुर की पिच टेस्ट क्रिकेट के लिहाज़ से एक खराब पिच थी. अपनी टीम को कौन जीतते हुए देखना नहीं चाहता। हर भारतीय की यह ख्वाहिश होती है लेकिन इस तरह के एकतरफा मैचों से कम से कम मुझे तो ख़ुशी नहीं होती है. सच बताइये आपको पाकिस्तान के खिलाफ विराट कोहली के उस शतक से मिली जीत ज़्यादा अच्छी लगी जिसमें उसने हार्दिक के साथ पाकिस्तान की हलक से मैच को खींच लिया था या फिर यह जीत. यह तो बहुत बड़ी जीत है. मुझे यकीन है कि आपको विराट की पारी वाली जीत ही अच्छी लगेगी। वो जीत अगर पाकिस्तान के अलावा किसी और टीम के खिलाफ भी मिलती तब भी आपको वही अच्छी लगती।
सच कहता हूँ कि नागपुर जैसी पिच जिसपर पहले ही दिन, पहले ही घंटे से गेंद नीची रह रही थी, पहले ही दिन जहाँ धुल उड़ने लगी थी, ऐसी पिचें टेस्ट क्रिकेट के लिए कैंसर से कम नहीं। ऐसी पिचें चाहे वो भारत में हो या कहीं और क्रिकेट के सबसे पुराने और सबसे कलात्मक फॉर्मेट को तबाह कर देंगी। इस तरफ ICC को भी सोचना पड़ेगा और हर देश के क्रिकेट बोर्ड को भी. वैसे भी फटाफट क्रिकेट खेलने के नशेड़ी बन चुके क्रिकेटर्स टेस्ट क्रिकेट में फिट नहीं हो रहे हैं यही वजह है कि कई देशों में टेस्ट के खिलाड़ी ही अलग हो गए हैं, टीम ही अलग हो गयी है, जो सिर्फ टेस्ट क्रिकेट ही खेलते हैं क्योंकि उन्हें टेस्ट क्रिकेट से प्यार है. भूलना नहीं चाहिए कि टेस्ट क्रिकेट ही इस खेल की जड़ है और जड़ को सूखने देना नहीं चाहिए। आज के पॉपुलर फॉर्मेट इसी क्रिकेट से ही निकले हैं. इसलिए टेस्ट क्रिकेट को अगर बचाना है तो अच्छी पिचों को बनाना ज़रूरी है ताकि मैच पांचवें दिन तक पहुँच सकें। जहाँ तक टीम इंडिया की बात है तो ऐसी पिचों के बिना भी ऑस्ट्रेलिया को आसानी से हरा सकती है, हराया भी है, अपने यहाँ भी और उनके वहां भी, फिर क्या ज़रूरत है ऐसी अंडर prepare पिचों को बनाने की.