Indian Economy: 2022-23 वित्तीय वर्ष में देश का कुल जीएसटी संग्रह 18.10 लाख करोड़ रुपए रहा। यानी हर महीने का औसत जीएसटी संग्रह 1.51 लाख करोड़ रुपए से अधिक बना रहा। जीएसटी के इन्हीं आंकड़ों का असर रहा कि वर्ष 2023 की पहली तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था 6.1 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ गई।
जीएसटी कर संग्रह वस्तुओं-सेवाओं की बिक्री व खरीद पर लगाया जाता है। इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था अच्छी गति से आगे बढ़ती रही है। इसका महत्व इस अर्थ में अधिक बढ़ जाता है कि इसी दौर में विश्व के प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्थाएं संघर्ष करती रही। यूरोप और अमेरिका दोनों ही ऊंची मुद्रास्फीति से त्रस्त हैं। उनका महंगाई पर कंट्रोल का कोई तरीका काम नहीं आ रहा है। इसी दौर में भारत ने न केवल महंगाई दर रोक लगाई है। बल्कि विकास दर अच्छे स्तर पर बनाए रखी है।
अर्थव्यवस्था में वृद्धि के बीच बेरोजगारी दर भी बढ़ी
2023 के पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था 6.1 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। उसी तिमाही के पहले महीने में बेरोजगारी दर 7.14 प्रतिशत पहुंच गई है। मार्च में बेरोजगारी दर 7.8 प्रतिशत थी जबकि अप्रैल 2022 में बेरोजगारी दर 8.11 प्रतिशत हो गई थी। बीते एक साल में औसत बेरोजगारी दर 7.6 प्रतिशत या उसके ऊपर है। ये आंकड़े बता रहे हैं कि विकास के आंकड़े रोजगार देने में असफल साबित हो रहे हैं। इसका क्या कारण हो सकता है?
पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं आंकड़े
अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार ने बताया कि जिन आंकड़ों के आधार पर अर्थव्यव्यवस्था को बेहतर बताने की कोशिश हो रही है। ये पूरी सत्यता पर नहीं हैं। ये आंकड़े उन बड़ी कंपनियों के होते हैं जिनकी सूचना सरकार के पास रहती है। इनमें देश की कुल कार्यशील क्षमता के केवल छह प्रतिशत लोग काम करते हैं। भारत असंगठित क्षेत्र में देश के 94 प्रतिशत कामगार काम करते हैं। इनका कोई आधिकारिक आंकड़ा सरकार के पास नहीं होता है।
कामगारों की भागीदारी हो रही कम
चीन जैसी अर्थव्यवस्था में लेबर्स फोर्स पार्टिसिपेशन अनुपात लगभग 65 फीसद है। जबकि चीन की तुलना में कम मशीनीकृति भारत में यह अनुपात केवल 43 फीसद है। ऐसे में माना जाता है कि भारत में लगभग 20 % लोग ऐसे हैं जो काम तो करते हैं, लेकिन उनके पास कोई रोजगार नहीं है। यह आंकड़ा 19 करोड़ हो सकता है। अर्थव्यवस्था की यह तस्वीर काफी भयावह है जिसका सच आंकड़ों में सामने नहीं आ पाता।