नई दिल्ली। बैक्टीरिया नामकरण के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग की नई प्रणाली ‘सीक-कोड’ को वैज्ञानिकों ने तैयार कर लिया है। इसके साथ अब 300 साल पुरानी जीवों के नामकरण की प्रथा को बदला दिया गया है। दावा किया है कि ऐसा करने से इन सूक्ष्मजीवों को जानने में वैज्ञानिकों को और अधिक आसानी होगी। इस नई पीढ़ी के एंटीबायोटिक्स की पहचान से कैंसर के इलाज की तलाश तक में मदद मिलेगी।
करीब 300 साल से पूर्व पौधों व जीवों की प्रजातियों की असंख्य विविधता के कारण उनका नामकरण प्रकृति वैज्ञानिकों के लिए समस्या बनी हुई थी। इसके चलते किसी जीव या प्रजाति को दूसरी से अलग दर्शाना काफी मुश्किल था। इसके समाधान में स्वीडन के वनस्पति वैज्ञानिक कार्ल लिनेस ने 1737 में तार्किक बाई-नॉमिअल प्रणाली पेश की थी। इसमें सभी जीवों, पेड़-पौधों आदि के नाम दो हिस्सों में रखे थे। पहला हिस्सा उनका जीनस होता था जो सरनेम की तरह काम करता था। दूसरा, उस प्रजाति की विशेषता बताता था। इस मेल से लगभग जीवों काे एक विशिष्ट नाम मिलना संभव हुआ था। जैसे हम मनुष्य होमो सेपियन कहलाए। इसमें होमो जीनस बना। जो मनुष्य के लिए लैटिन शब्द है। सेपियन का मतलब बुद्धि रखने वाला। कार्ल की बाई-नॉमिनल प्रणाली पशु-पक्षी, पेड़-पौधों,फंगी, शैवाल, बैक्टीरिया, वायरस के नाम रखने का नियम बनी। उसके बाद इनको कोड कहा जाने लगा।
बैक्टीरिया की एक प्रभावी, औपचारिक और स्थाई नामकरण प्रणाली वैज्ञानिकों को पृथ्वी पर इन सूक्ष्म जीवों की विविधता का पता लगाने में अधिक मदद मिलेगी। वातावरण में उनकी क्या भूमिका है। यह पता चलेगा। वैज्ञानिक किसी बैक्टीरिया के बारे में अधिक पुख्ता तरीके से एक—दूसरे से शोध को लेकर बात कर सकेंगे। नई प्रणाली बनाने में शामिल वैज्ञानिकों का यह दावा है कि इससे नई पीढ़ी के एंटीबायोटिक्स और कैंसर का इलाज तलाशने में काफी मदद मिलेगी। बैक्टीरिया के नामकरण की जीनोम आधारित नई प्रणाली के लिए 2018 में अमेरिका में नेशनल साइंस फाउंडेशन के सहयोग से पहल हुई थी। इसे लंबे समय के विचार-विमर्श और अध्ययन के बाद सितंबर 2022 में सीक-कोड के रूप में अपनाया है। इस प्रणाली के आने के बाद शुद्ध कल्चर वाले बैक्टीरिया के नामकरण के लिए बनी पुरानी प्रणाली भी रहेगी।