Mutual fund टैक्स में छूट पाना चाहते हैं तो म्युचुअल फंड के जरिए शेयर बाजार में निवेश कर आईटी में छूट पा सकते हैं। जिन्होंने अभी तक इक्विटी में निवेश नहीं किया है। उनके लिए तो ये समय इक्विटी में निवेश करने का बेहतर जरिया है।
अगर पुरानी टैक्स व्यवस्था में हैं तो क्या इक्विटी में निवेश कर 80C के तहत डिडक्शन (कटौती) का लाभ उठा सकते हैं? इसका उत्तर हां में ही है। एनपीएस (NPS), ईएलएसएस (ELSS) और यूलिप (ULIP) तीन ऐसी स्कीमें हैं। जहां इक्विटी में निवेश कर 80C के तहत टैक्स कटौती का लाभ उठा सकते हैं। इन तीनों स्कीमों में सबसे अधिक इक्विटी में एक्सपोजर Equity Linked Savings Scheme (ELSS) में है। इसी के साथ लॉक-इन समय (lock-in period) के मामले में ईएलएसएस नंबर वन पर आती है। ईएलएसएस का लॉक-इन समय 3 साल का है।
टैक्स में छूट के साथ लॉग टर्म निवेश
टैक्स में छूट के साथ लॉग टर्म में इक्विटी निवेश से बेहतर रिटर्न मिले तो ELSS अच्छा विकल्प हो सकता है। वैसे जिन्होंने अभी तक इक्विटी में निवेश नहीं किया है उनके लिए तो यह इक्विटी में निवेश करने का बेहतर माध्यम है। वहीं जबसे एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को सेबी (SEBI) की ओर से पैसिव स्कीम (passive scheme) लॉन्च करने की अनुमति दी गई है। निवेशकों के पास ऐक्टिव के साथ पैसिव ELSS स्कीम में निवेश का विकल्प अब खुल गया है। जो निवेशक कम जोखिम लेना चाहते हैं। पैसिव स्कीम को अपना सकते हैं। पैसिव में फंड मैनेजर की सक्रिय भूमिका नहीं है। इसलिए टोटल एक्सपेंस रेश्यो (total expense ratio) एक्टिव स्कीम के मुकाबले कम है।
निवेश में निरंतरता और पारदर्शिता भी
निवेश की रणनीति में निरंतरता और पारदर्शिता की वजह से निवेशक नए विकल्प को पसंद कर रहे हैं। लेकिन बहुत सारे जानकार अभी रिटर्न के लिहाज से एक्टिव विकल्प को बेहतर मानते हैं। अभी बाजार में सिर्फ 2 पैसिव फंड लॉन्च हुए हैं। बाकी जो फंड उपलब्ध हैं वे एक्टिव हैं। इसलिए पैसिव के पिछले प्रदर्शन को लेकर कोई तस्वीर सामने नहीं है। लेकिन ELSS में निवेश से पहले कुछ चीजों की जानकारी जरूरी है। खासकर सेबी की ओर से पिछले साल जून से लेकर अब तक स्कीम को लेकर किए गए बदलाव के बारे में।