गुजरात में वीरमगांव से भाजपा के लिए सीट जीतने वाले पूर्व कांग्रेसी हार्दिक पटेल ने दो दिन पहले ही मंत्रिमंडल में शामिल होने के एक सवाल पर कहा था कि मैं मांगता नहीं। खैर बात यह कहनी है कि न मांगने वाले हार्दिक को भूपेंद्र-2 सरकार में जगह नहीं मिली है. हालाँकि गुजरात में इस बार के मंत्रिमंडल में पिछली सरकार की बनिस्बत नए और युवा चेहरों को प्राथमिकता दी गयी है लेकिन लगता है कि हार्दिक पटेल को भाजपा ने अभी पूरी तरह से अपनाया नहीं। वैसे हार्दिक का न मांगने वाली बात कहने का मतलब यही लगाया जा रहा था कि वो सन्देश देना चाह रहे थे कि उनके नाम पर भी गौर होना चाहिए।
निराश हैं हार्दिक के समर्थक
वहीँ हार्दिक ने मंत्रिमंडल में जगह न मिलने की बात पर अपनी निराशा छुपाते हुए कहा कि वो अभी बहुत युवा हैं. वो सिर्फ पार्टी के लिए काम करने में विश्वास रखते है. लेकिन साथ में यह भी कहा कि राजनीति सत्ता का खेल है. हार्दिक के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं. पहला तो यही कि उन्हें पूरा यकीन था कि उन्हें मंत्रिमंडल में जगह ज़रूर मिलेगी, तभी उन्होंने न मांगने वाल डायलॉग भी मारा था. अब हार्दिक के मंत्रिमंडल में जगह न पाने को लेकर उनके समर्थकों ने कहना शुरू कर दिया है कि हार्दिक का भाजपा में आना पार्टी के कुछ असरदार लोगों को पसंद नहीं है इसीलिए उन्हें वीरमगांव जैसी सीट से उतारा गया जो कांग्रेस का गढ़ कही जाती थी. हार्दिक के प्रचार में भी भाजपा का कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचा।
बाहरियों का भाजपा में यही होता है हाल
वैसे भाजपा का अगर इतिहास उठाकर देखें तो बाहरी लोगों को भाजपा ने बहुत मौका दिया है, ज़्यादातर उनका इस्तेमाल यूज़ एंड थ्रो की तरह होता है, ऐसे आपको अनेकों उदाहरण मिल जायेंगे जिनकी भाजपा में आकर सारी हैसियत ख़त्म हो गयी. हार्दिक ने जब कांग्रेस पार्टी को छोड़ा था तब भी उनके स्वागत में कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचा था यहाँ तक कि मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल भी नहीं। तो हार्दिक के साथ जो हुआ अप्रत्याशित नहीं कहा जा सकता। वैसे भी नरेंद्र के भूपेंद्र दूसरी बार मुख्यमंत्री बनकर पटेलों के सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित तो हो ही चुके हैं.