नई दिल्ली। अगर करदाता है तो TDS के बारे में जरूर सुना होगा। जिसे आय के सोर्स से काटा जाता है। इसी तरह की एक और टैक्स कटौती होती है, जिसे TCS कहा जाता है। दोनों सरकार के मुख्य आय स्रोत जैसे हैं। करदाता के लिए ये इनकम टैक्स के भुगतान में लगने वाली पेनल्टी से बचाते हैं। पर क्या पता है कि इन दोनों में क्या अंतर है?
क्या अंतर है TDS और TCS में
TDS का मतलब है टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स, यानी कि किसी भी स्रोत पर टैक्स कटौती। आयकर विभाग किसी कंपनी या व्यक्ति को स्रोत पर आयकर कटौती करने के लिए बाध्य करता है। टीडीएस की दरें सरकार द्वारा आयकर अधिनियम के तहत तय होती हैं। इसमें टीडीएस काटने वाली कंपनी या व्यक्ति को डिडक्टर कहा जाता है, जबकि भुगतान प्राप्त करने वाली कंपनी या व्यक्ति को डिडक्टी कहा जाता है।
TCS यानी कि टैक्स कलेक्टेड एट सोर्स, विक्रेता द्वारा किसी माल पर लगाया जाने वाला कर है। माल की बिक्री पर टीसीएस की सीमा 50 लाख रुपये है।
इन चीजों पर होता लागू
टीडीएस मुख्य रूप से ब्याज, वेतन, ब्रोकरेज, प्रोफेशनल फीस, कमीशन, सामान की खरीद, किराया जैसी चीजों पर लागू होता है। वहीं, टीसीएस टिम्बर, स्क्रैप, खनिज, शराब, तेंदू पत्ता, वनोपज, कार और टोल टिकट की बिक्री पर लागू होता है। ये दोनों 50 लाख रुपये से ऊपर की खरीद-बिक्री पर लागू होते हैं।
टैक्स दर
टैक्स दर के मामले में TCS और TDS दोनों पर ही 50 लाख रुपये से अधिक की खरीद-बिक्री पर 0.1% का भुगतान करना पड़ता है।
भुगतान समय सीमा
TDS की कटौती भुगतान के ड्यू डेट या भुगतान का समय, दोनों में जो पहले हो, किया जाता है। TCS विक्रेता के द्वारा माल की बिक्री के समय किया जाता है।
कब और कैसे करते हैं भुगतान
टीडीएस जमा करने की समय हर महीने की 7 तारीख होती है, जबकि टीडीएस रिटर्न तिमाही में जमा करना होता है। दूसरी तरफ, जिस महीने में आपूर्ति की जाती है उसी महीने के दौरान टीसीएस का भुगतान किया जाता है और महीने के खत्म होने से 10 दिन के भीतर सरकार के खाते में जमा कर दिया जाता है।
लगने वाली पेनल्टी
TDS के भुगतान में अगर करदाता विफल रहता है या रिटर्न सही ढंग से फाइल नहीं किया गया है तो धारा 271एच कटौतीकर्ता/संग्राहक पर न्यूनतम 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है। वहीं, आयकर अधिनियम की धारा 201(1ए) टीडीएस की गैर-कटौती के लिए 1.5% प्रति माह की दर से ब्याज काटा जाता है।