नई दिल्ली। हीमोफीलिया-बी यानी रक्तस्राव बीमारी का इलाज एक वायरस के माध्यम से हो सकेगा। ब्रिटिश चिकित्सकों ने एक शोध में ये दावा किया है। जिसमें वायरस के माध्यम में जन्म से हीमोफीलिया-बी से पीड़ित मरीज को पूरी तरह ठीक करने में सफलता मिलेगी। लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज चिकित्सकों ने जन्म से हीमोफीलिया से पीड़ित एक व्यक्ति के लिए लैब में ट्रांसफॉर्मेशनल थेरैपी के माध्यम से ऐसा वायरस तैयार किया,जो शरीर में विशेष तरह का प्रोटीन बना सकने में पूरी तरह से सक्षम है। यह वायरस एक माइक्रोस्कोपिक पोस्टमैन की तरह काम करता है। जो फेफड़ों से होकर प्रोटीन को लिवर तक पहुंचाने का काम करेगा। इसके बाद यह शरीर में थक्के बनाने वाला प्रोटीन पर काम शुरू कर देता है। वायरस को रोगी के शरीर में पहुंचाने में एक घंटे का समय लगा।
मरीज को प्रतिदिन इसकी खुराक दी जाती थी। परीक्षण के दौरान थेरैपी पूरी तरह से कारगर रही। इसके बाद मरीज पूरी तरह से स्वस्थ है। बता दें कि रोगी के शरीर में एक विशेष प्रोटीन पर्याप्त मात्रा से अधिक था। जिससे क्लॉटिंग फैक्टर-9 बनता है। फैक्टर-9 शरीर में बनने वाले क्लॉटिंग प्रोटीन में से एक है। यह चोट लगने पर अधिक खून के बहाव से बचाता है। मरीज को एक ऐसा वायरस दिया गया जो फैक्टर-9 में मौजूद नहीं था। चिकित्सकों के अनुसार, थेरैपी की मदद से तीन साल में हीमोफीलिया वाले अधिकांश युवा इससे ठीक किए जा सकेंगे।
हीमोफीलिया-बी आनुवांशिक बीमारी है। इसके कारण शरीर में खून के थक्के जमने की प्रक्रिया सुस्त पड़ जाती है। जिससे शरीर से बह रहा खून जल्दी रुक नहीं पाता। प्रोफेसर प्रतिमा चौधरी ने कहा कि ऐसे बहुत से युवा रोगी आते हैं जो मांसपेशियों, जोड़ों और दिमाग जैसे अन्य महत्वपूर्ण अंगों से खून बहने की समस्या से परेशान रहते हैं। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में निष्कर्षों के मुताबिक, परीक्षण के दौरान थैरेपी 10 में से नौ रोगियों पर पूरी तरह से कारगर रही।