अदालत के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. राजनीतिक दल गोटियां बिछाने में जुट गए हैं. वैसे तो निकाय चुनाव को ज़मीनी चुनाव कहा जाता है लेकिन ऐसा होता नहीं है क्योंकि इन चुनावों में सरकारी मशीनरी का ज़बरदस्त दुरूपयोग होता है। पहले भी होता था और अब भी होता है लेकिन अब कुछ ज़्यादा ही खुल्लम खुल्ला होने लगा है.
भाजप-सपा में मुकाबला
निकाय चुनाव के लिए वैसे तो मुकाबले में चार पार्टियां भाजपा, सपा, कांग्रस और बसपा हैं और सभी पार्टियां ताल ठोंक रही हैं कि वो मज़बूती के साथ निकाय चुनाव के मैदान में उतरेंगी। सभी पार्टियों में सांगठनिक फेर बदल भी हो रहे हैं जिसमें भाजपा और सपा सबसे आगे हैं. संगठन के रूप में देखा जाय तो भाजपा और सपा बाकी दोनों पार्टियों से काफी आगे हैं और चुनाव में मुकाबला भी इन्हीं दोनों पार्टियों के बीच होने की सम्भावना है. हालाँकि निकाय चुनाव का नतीजा क्या होगा यह सगभग सबको मालूम है फिर भी आने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर माहौल बनाने के लिए सभी पार्टियां कमर कस रही हैं।
भाजपा का संगठन सबसे मज़बूत
जहाँ तक भाजपा का सवाल है तो प्रदेश में डबल इंजन सरकार, बूथ लेवल तक बेहद मज़बूत संगठन है. पैसा है पावर है, मोदी जी और योगी जी लोकप्रियता है. मतलब चुनाव जीतने के लिए सभी ज़रूरी अस्त्र मौजूद है. प्रदेश कार्यालय पर गहमागहमी बढ़ गयी है, बैठकों का दौर शुरू हो गया है, ज़िम्मेदारियाँ बांटी जानी लगी हैं. वहीँ समाजवादी पार्टी ने अपनी नयी राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन किया है, जिला अध्यक्षों की घोषणा की जा रही है, पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के जिलेवार दौर भी शुरू हो गए है, चाचा शिवपाल यादव भी सक्रीय हैं. कांग्रेस पार्टी की जहाँ तक बात है तो प्रियंका गाँधी मौजूदा राजनीतिक हालात और कर्नाटक चुनाव की वजह से अभी यूपी से दूर हैं लेकिन इतना ज़रूर है कि पार्टी इस बार गांव गाँव अपनी मौजूदगी दर्ज करना चाहती है. बसपा में भी सांगठनिक फेरबदल हुआ है, नया प्रदेश अध्यक्ष मिल गया है लेकिन जहाँ तक तैयारियों की बात है तो अभी वो सबसे पीछे नज़र आ रही है, कम से कम इतना ज़रूर कहा जा सकता है उसकी तैयारियां लोगों को दिख नहीं रही हैं.