लखनऊ। आगामी निकाय चुनाव और 2024 को होने वाले आम चुनाव के मददेनजर सपा दलितों को अपने पाले में करने के लिए रणनीति के तहत काम कर रही है। सपा प्रदेश में दलित वोटों की ताकत को अच्छी तरह से समझती है। प्रदेश में जिसे दलित का साथ मिला वह कामयाब हो जाता है। यही कारण है कि प्रदेश के दलित वोट बैंकक की सियासी पतवार से सपा आगामी दोनों चुनाव जीतने की कोशिश में अभी से जुट गई है। हाल में ही हुए सपा के प्रांतीय और राष्ट्रीय सम्मेलन में दलितों के उत्पीड़न और भीमराव अंबेडकर के सपनों को साकार करने की बात बड़े जोरशोर से उठी। रणनीतिकारों का मानना है कि अगर सपा पांच फीसदी दलितों को अपने पक्ष में करने में कामयाब होती है तो इससे प्रदेश की सियासी गणित काफी हद तक बदल सकती है। दलित वोटबैंक को साधने के लिए समाजवादी पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले ही 15 अप्रैल, 2021 को बाबा साहब वाहिनी बनाने की घोषणा की थी। इसका असर यह हुआ था कि पूर्व कैबिनेट मंत्री केके गौतम, इंद्रजीत सरोज सहित बसपा के कई दिग्गज दलित नेताओं ने सपा की ओर अपना रुख किया था। अब वाहिनी के नाम पर पार्टी में राष्ट्रीय से लेकर विधानसभा क्षेत्रवार कमेटी भी बना दी गई है।
इसके अलावा पिछले साल 26 नवंबर को कांशीराम स्मृति उपवन में पूर्व सांसद सावित्री बाई फुले की अगुवाई में संविधान बचाओ महाआंदोलन का समाजवादी पार्टी ने आयोजन किया था। इसमें बतौर मुख्य अतिथि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने घोषणा की थी कि समाजवादी और आंबेडकरवादी मिलकर अब प्रदेश से भाजपा का सफाया करेंगे। उन्होंने कहा यह भी कहा था कि लोहिया भी चाहते थे कि आंबेडकर के विचारों को मानने वाले उनके साथ आएं। समाजवादी पार्टी के इसी कार्यक्रम में ही बाबा साहब के पौत्र व पूर्व सांसद प्रकाश आंबेडकर की मौजूदगी में दलित नेताओं ने सपा की सदस्यता ग्रहण की थी। इसके बाद से सपा के लगभग अधिकांश कार्यक्रम में डॉ. लोहिया के साथ डॉ. आंबेडकर की बात जरूर होती है। विधानसभा चुनाव में निरंतर आंबेडकर और संविधान की बात करने का सपा को फायदा भी हुआ। चुनाव में सपा का वोटबैंक बढ़ गया जो कि करीब 33 प्रतिशत तक पहुंच गया।
अब प्रांतीय और राष्ट्रीय सम्मेलन में बार-बार आंबेडकर के सपनों की दुहाई के साथ दलितों के बीच पैठ बढ़ाने की सपा जीतोड़ कोशिश कर रही है। दलितों उत्पीड़न की घटना होने पर तत्काल सपा का प्रतिनिधिमंडल मौके पर भेजा जाता है। प्रदेश में करीब 11 प्रतिशत जाटव, तीन प्रतिशत पासी एवं दो प्रतिशत अन्य दलित जातियां हैं। सपा पांच प्रतिशत दलितों वोट बैंक को अपने पाले में करने की कोशिश में है। इसी कारण से सपा की विभिन्न कमेटियों में इनकी भागीदारी बढ़ाने की तैयारी चल रही है।