गुजरात में भाजपा पिछले तकरीबन 27-28 सालों से सत्ता में है। यानी भाजपा की सत्ता को वहां से कोई नहीं हिला पाया है। किसी पार्टी के लिए यह कोई मामूली बात नहीं होती कि उसे इतने लंबे समय किसी राज्य में सत्ता का सुख हासिल हो। यह रिकॉर्ड किसी और राज्य में किसी पार्टी ने पिछले तीन दशक में भी हासिल किया नहीं है। इस समय भाजपा तकरीबन 17 राज्यों में सरकारें हैं। हालांकि ये बात अलग है कि इनमें से कई राज्यों में जोड़तोड़ की राजनीति करके भाजपा सरकार बना सकी है, जिसके चलते भाजपा शीर्ष नेताओं यानि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर विधायकों की खरीद फरोख्त के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन गुजरात की बात करें, तो वहां न तो विधायकों की खरीद फरोख्त का मामला है, न ही किसी दूसरी पार्टी के समर्थन से सरकार बनाने का कोई मामला है। बल्कि वहां तो हर बार पूर्ण बहुमत हासिल करके सरकार चुनी जाती रही है।
यह अलग बात है कांग्रेस गुजरात में भाजपा पर चुनावों में ईवीएम मशीनों के जरिए गड़बड़ी का आरोप लगाती रही है। लेकिन माना जाता है कि गुजरात में देश के दूसरे राज्यों की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर एकतरफा यानि कम से कम 40 से 50 प्रतिशत वोट पड़ते हैं। भाजपा नेता इस बात का दावा करते हैं कि गुजरात में नरेंद्र मोदी की कोई काट नहीं है। भाजपा नेता यह भी दावा करते रहे हैं कि गुजरात में विकास की गंगा बह रही है, वो किसी दूसरे राज्य में नहीं है। हालांकि दावे की सही समीक्षा की जाए, तो पता चलता है कि गुजरात पर मार्च 2022 तक 3 लाख करोड़ से अधिक का कर्ज हो चुका है, इसकें हर साल बढ़ोतरी होती है। राज्यों पर कर्ज के मामले में गुजरात तकरीबन चौथे-पांचवें नंबर पर है। सवाल है कि जब गुजरात उद्योग संपन्न है और सरकार ने विकास कार्य किए हैं, तो फिर इतना कर्ज कैसे। खैर, यह मुद्दा दूसरा है। फिलहाल तो इस समय सवाल यह है कि क्या गुजरात चुनाव और 2024 में होने वाले आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला सीधे दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी यानि आप मुखिया अरविंद केजरीवाल से है?
साल के आखिर में होने है गुजरात और हिमाचल में चुनाव:-
दरअसल इसी वर्ष गुजरात, हिमाचल के चुनाव होने हैं और अगले साल के शुरू में ही फिर राजस्थान समेत कुछ दूसरे राज्यों में चुनाव होंगे। लेकिन इन सभी राज्यों में चुनावी बिगुल बजने से पहले पार्टियों ने अपनी-अपनी ताकत और सामर्थ्य के मुताबिक जान फूक दी है। इन पार्टियों में इन राज्यों में मुख्य रूप से मैदान यानि मुकाबले में तीन पार्टियां नजर आ रही हैं, और ये पार्टियां भाजपा, कांग्रेस और आप। अब देखने वाली बात यह है कि भाजपा तीनों पार्टियों में सबसे दूरदर्शी और बड़े टार्गेट पर फोकस करने वाली मानी जा रही है। जाहिर सी बात है कि भाजपा इस साल के शुरू में उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के बाद से 2024 की तैयारी के चुनावी मोड में चल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तभी से इसी उधेड़बुन में हैं कि ऐसा क्या करना चाहिए कि किसी हाल में गुजरात, हिमाचल, हरियाणा और राजस्थान में भाजपा सरकार बने और उसके अगले साल केंद्र में ़रिकार्ड बहुमत के साथ भाजपा की सत्ता में तीसरी बार वापसी हो। इसके लिए इस बार कौन सा कार्ड खेलना है, यह अभी से कोई नहीं जानता। क्योंकि भाजपा गोपनीय राजनीति दूसरे दलों को लिए परेशानी और हैरानी में डालने वाली साबित होती है।
राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि मोदी और शाह की जोड़ी इस बार सेंट्रल विस्टा को भुनाने की कोशिश करेगी। इस मुद्दे पर भाजपा को वोट मिलेंगे ही, लेकिन महंगाई, बेरोजगारी और भुखमरी, कुपोषण, सरकारी कंपनियों का निजीकरण, कालाधन, घोटाले आदि अगले सभी चुनावों में मुद्दा बनने वाले हैं। इन्हीं मुद्दों को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहयोगी नेताओं और समर्थकों के साथ कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हैं। हालांकि कांग्रेस को अच्छी तरह पता है कि उसे केंद्र में भाजपा के दोनों दिग्गज यानि नरेंद्र मोदी और अमित शाह आसानी से नहीं आने देने वाले। भाजपा की ये जोड़ी इस बात से तकरीबन आश्वस्त हो चुकी है कि उसने कांग्रेस को उस हालात में पहुंचा दिया इसलिए उसकी नैया पार लगने का सवाल पैदा नहीं होता।
भाजपा से ऊब चुके हैं लोग कांग्रेस ही राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प:-
कुछ जानकारों का कहना है कि देश में सभी चुनाव निष्पक्ष और ईमानदारी से हों, तो इस बार भाजपा की नहीं, बल्कि कांग्रेस केंद्र में वापसी होगी, क्योंकि भाजपा से ऊब चुके हैं। लोगों के पास राष्ट्रीय लेवल पर कांग्रेस एक विकल्प है, जिसे वो चुन सकते हैं। इन दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भाजपा के लिए सिरदर्द बन रहे हैं, खास तौर पर गुजरात में। उसी गुजरात में जहां नरेंद्र मोदी पैदा हुए और ऐसा कहा जाता है कि वहां उनके नाम का डंका बजता है और उनके रहते गुजरात में किसी पार्टी की सरकार आ ही नहीं सकती। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में बिगुल बजाकर ऐसे दावे करने वाले मोदी समर्थकों और मोदी-शाह समेत भाजपाईयों की नींद उड़ा रखी है। गुजरात में हुए सर्वे में 63 प्रतिशत लोगों द्वारा मोदी को टक्कर देने वाला चेहरा केजरीवाल को बताकर जनता ने भाजपा नेताओं का चैन भी छींन लिया है।
दरअसल केजरीवाल जनता को फ्री सुविधा देने की राजनीति का तोड़ अभी भी किसी पार्टी के पास नहीं है, भले ही पार्टियां दबाव में आकर सत्ता खोने के डर से जनता को फ्री सुविधाएं देने के वादों की झड़ी लगा दें। दूसरी बात केजरीवाल के दिल्ली मॉडल ने लोगों को आकर्षित करना शुरू कर दिया है, जिस प्रकार साल 2014 में देश में होने वाले लोक सभा चुनाव से पहले मोदी के गुजरात मॉडल ने अपनी ओर खींचा था। अब हालात यह हैं कि केजरीवाल जनता के बीच पैठ बनाने लगे हैं, तो अमित शाह को स्कूलों की दशा सुधरवाने की कोशिश करनी पड़ी है। पीएम मोदी को देश भर के 12 हजार स्कूलों की दशा सुधारने की बात कहनी पड़ी। लेकिन केजरीवाल कच्चे राजनीति के खिलाड़ी नहीं रहे, बल्कि वो इतने मंजे खिलाड़ी बन चुके हैं कि कई बड़े नेताओं पर भारी पड़ रहे हैं।
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि केजरीवाल और मोदी में यह अंतर है कि मोदी ने कोई पार्टी खड़ी नहीं की, बल्कि वो पहले वरिष्ठ नेताओं के कंधों पर चढ़कर राजनीति में आए हैं। मुख्यमंत्री बने और बाद में अपने उद्योगपति दोस्तों के कंधों पर चढ़कर प्रधानमंत्री बने हैं। उसके बाद साम, दाम, दंड और भेद से सत्ता हथियाने का काम शुरू किया। वहीं केजरीवाल ने एक पार्टी अपने बल पर जमीन से खड़ी की। शुरू से केंद्र की राजनीतिक लड़ाई और दबाव का मुकाबला किया। मोदी ने जनता का दिल तरह-तरह के वादे करके, दिलासा देकर और धर्म का मुद्दा उठाकर जीता। केजरीवाल ने जनता की दुखती रग पर थोड़ा सा मरहम लगाकर उसकी सहानुभूति बटोरी है। अब आम आदमी पार्टी के लोगों ने नहीं, बल्कि कुछ-कुछ जनता ने कहना शुरू कर दिया है कि 2024 में नरेंद्र मोदी का मुकाबला सीधे केजरीवाल से ही होगा। हाल में नीतीश कुमार का केसीआर से मिलने के बाद विपक्ष के प्रतिनिधि की तरह केजरीवाल से मिलना भी इसी बात का संकेत लगता है।