लखनऊ। ठीक पांच साल बाद स्वामी प्रसाद मौर्या ने एक बार फिर राजनीतिक भूचाल ला दिया है। उन्होंने भाजपा पर दलितों और पिछड़ों की अनदेखी किये जाने का आरोप लगाते हुए मंत्रिमंडल पद से इस्तीफा दे दिया है। उनके जाने के बाद भाजपा के दो विधायक भी बागी हो गए हैं। ऐसा माना जा रहा था कि स्वामी प्रसाद के करीबी माने जाने वाले विधायक ममतेश शाक्य और अनिल मौर्य भी भगवा दामन उतार सकते हैं। लेकिन, देर शाम तक इन दोनों विधायकों ने भाजपा को छोड़ने की किसी भी संभावनाओं से इनकार किया है। उनके इस इनकार के बाद सियासी माहौल में नया रोमांच पैदा हो गया है। आशंकाएं जताईं जा रहीं है कि भाजपा के अंदर होने वाली टूट को संभाल लिया गया है या अभी यह सियासी स्टंट का ही एक रुप है। लेकिन, सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के फोन के बाद भाजपा डैमेज कंट्रोल करने में जुट गई है।
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डैमेज कंट्रोल करने की दी हिदायत
पार्टी के सूत्रों का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्या की नाराजगी को भाजपा बड़े नुकसान के रुप में देख रही है। यही कारण है कि स्वामी प्रसाद मौर्या ने जैसे ही नाराजगी जताई, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का ट्विट आ गया। जिसमें उन्होंने कहा कि मामले को बैठकर सुलझा लिया जाएगा। इस दौरान अखिलेश यादव ने भी स्वामी प्रसाद मौर्या से मुलाकात की फोटो ट्वीट कर बदलाव की बात कही। हालांकि इस दौरान स्वामी प्रसाद मौर्या सपा में जाने को लेकर कुछ भी बोलने से बचते दिखे। सूत्रों का दावा है कि अमित शाह ने एक के बाद एक केशव प्रसाद मौर्या और स्वतंत्र देव सिंह को फोन कर मामले को कंट्रोल करने की हिदायत दी गई है। जिसके बाद भाजपा के रणनीतिकार स्वामी प्रसाद मौर्या को मनाने में जुट गए हैं। वहीं मौर्या के साथियों को भी मनाने की कवायदें शुरु हो गईं हैं। जिसके बाद स्वामी प्रसाद मौर्या के बेहद करीबी दो विधायकों को लेकर भी आशंका जताई जा रही थी कि वो भी पाला बदल सकते हैं लेकिन अमित शाह का फोन आने के बाद उनके सुर बदलते दिखाई देने लगे।
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स्वामी प्रसाद मौर्या क्यों हैं खास
यूपी की सियासत में पिछड़े समाज के बड़े नेताओं में स्वामी प्रसाद मौर्या की गिनती होती रही है। वह बसपा में मायावती के बाद कभी दो नंबर की हैसियत वाले नेता हुआ करते थे। मौर्या, शाक्य, कुशवाहा समाज में उनकी पैठ काफी मजबूत मानी जाती रही है। यह समाज पिछड़ी जातियों में यादव और कुर्मी वोटबैंक के बाद तीसरी सबसे बड़ी जाति का वोटबैंक माना जाता है। अपने बेटे और बेटी की सियासत सेट करने को लेकर स्वामी प्रसाद मौर्या की मायावती से नहीं बनी तो भाजपा का दामन थाम लिया। जहां उनको तो जीत हासिल हुई लेकिन बेटे को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि बेटी संघमित्रा मौर्या को 2019 के लोकसभा में बदायूं से सांसद बनाकर मौर्या ने काफी हद तक बेटी का सियासी कैरियर सेट कर दिया है। भाजपा में केशव प्रसाद मौर्या के उभार के बाद स्वामी प्रसाद मौर्या की समाज पर थोड़ी पकड़ ढीली जरुर हुई है लेकिन उनकी उपयोगिता को इनकार नहीं किया जा सकता है।