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हरियाणा में भाजपा के लिए संकेत अच्छे नहीं

आर्टिकल/इंटरव्यूहरियाणा में भाजपा के लिए संकेत अच्छे नहीं

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अमित बिश्नोई
हरियाणा विधानसभा चुनाव में मतदान से पहले भारतीय जनता पार्टी लगातार बुरी ख़बरों से जूझ रही है. ख़बरें तो पहले से ही काफी बुरी आ रही थी लेकिन और बुरा दौर तब शुरू हुआ जब पार्टी ने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की और जिसके जारी होते ही पार्टी के भीतर बड़े पैमाने पर विद्रोह भड़क गया और जिसके तुरंत बाद पार्टी के प्रभावशाली नेताओं में व्यापक विद्रोह की स्थिति पैदा हो गई। मंत्रियों और वरिष्ठ विधायकों समेत कई नेताओं ने पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी है। ऊर्जा मंत्री रणजीत सिंह चौटाला और सामाजिक न्याय राज्य मंत्री बिशंबर सिंह बाल्मीकि ने अनदेखी किए जाने के बाद सरकार से इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा, भाजपा ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मंत्री करण देव कंबोज ने पार्टी छोड़ दी, जबकि विधायक लक्ष्मण नापा भाजपा से इस्तीफा देने के बाद नई दिल्ली में कांग्रेस में शामिल हो गए। पूर्व राज्य मंत्री कविता जैन और भाजपा के कुरुक्षेत्र सांसद की मां और भारत की सबसे अमीर महिलाओं में से एक सावित्री जिंदल ने उन सीटों पर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने की धमकी दी है जहां उन्हें नजरअंदाज किया गया है। ये स्थिति भाजपा के लिए बिलकुल भी अच्छी नहीं कही जा सकती और एक आम राय बनती जा रही है कि इसबार भाजपा का तीसरी बार सरकार बनाना हरियाणा में लगभग असंभव है।

भाजपा ने 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा के लिए अभी 67 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी की लेकिन इस सूची में कई बड़े नाम नदारद थे, सिर्फ यही नहीं, इस सूची में बाहर से आने वालों को काफी संख्या में एडजस्ट किया गया है, बहुत से मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया गया है. आम तौर पर पहले इस तरह की बातों पर भाजपा के अंदर कोई बड़ा शोर शराबा नहीं होता था लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी के लिए अब हालात बदल गए हैं।अब पार्टी के अंदर लोग खुलकर बोलने भी लगे हैं और आला कमान के फैसले पर प्रतिक्रिया भी दे रहे हैं। टिकट बंटवारा एक बड़ा सिरदर्द बन गया है, रतिया से मौजूदा विधायक लक्ष्मण नापा टिकट न मिलने की खबर मिलते ही कांग्रेस में शामिल हो गए. सैनी सरकार में बिजली और जेल मंत्री और पूर्व उप प्रधानमंत्री देवी लाल के बेटे रणजीत सिंह चौटाला रानिया से टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने उनकी जगह शीशपाल कंभोज को मैदान में उतार दिया। जिसपर उन्होंने बगावत कर दी और घोषणा की है कि वह रानिया से या तो निर्दलीय या किसी दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ेंगे। अब देखना है कि वो किस पार्टी में शामिल होते हैं, कांग्रेस में तो कम से कम उनके लिए जगह नहीं है, हो सकता है बसपा और आज़ाद समाज पार्टी गठबंधन से उन्हें टिकट मिल जाय.

उधर ओबीसी मोर्चा के प्रमुख करण देव कंबोज ने तो भाजपा पर विचारधारा से भटकने का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया है और दावा किया है कि पार्टी के वफादारों को दरकिनार करके “गद्दारों” को शामिल किया गया है। वहीँ बवानी खेड़ा सीट से चुनाव लड़ने के लिए टिकट न मिलने पर बिशम्बर सिंह बाल्मीकि ने सामाजिक न्याय राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। सोनीपत से टिकट की उम्मीद रखने वाली कविता जैन भी पार्टी द्वारा निखिल मदान को मैदान में उतारने के बाद नाराज हैं। उन्होंने भाजपा को दो दिन का अल्टीमेटम दिया है। उधर सैनी सरकार में मंत्री सावित्री जिंदल ने टिकट न दिए जाने के बाद खुद को हिसार से उम्मीदवार घोषित किया है। इस तरह बागियों की एक लम्बी फेहरिस्त है जो भाजपा की परेशानियों को बढ़ाये हुए है. मोटे तौर पर भाजपा से पिछले तीन दिनों में लगभग 250 ऐसे नेताओं ने पार्टी को छोड़ा है जो चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं।

फिलहाल डैमेज कंट्रोल की कोशिश हो रही है, कहा जा रहा है नाराज़ विधायकों और महत्वपूर्ण नेताओं से मुख्यमंत्री सैनी और हरियाणा के इंचार्ज बिप्लव दास खुद बात कर रहे हैं लेकिन उनकी कोशिशें कारगर नहीं हो पा रही हैं. सबसे ज़्यादा नाराज़गी दूसरी पार्टी से आने वाले नेताओं को लेकर है, कुछ दिनों पहले तक सरकार में सहयोगी रही JJP के दस नेताओं को विधानसभा चुनाव में एडजस्ट किया गया है, इसकी वजह से काफी रोष बढ़ा हुआ है। किसान बाहुल्य हरियाणा में राजनीतिक माहौल वैसे भी भाजपा के पक्ष में नहीं दिखाई दे रहा है और फिर इस बार कांग्रेस पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ रही है, फिर चाहे वो दीपेंद्र हुड्डा का पूरे हरयाणा में भारत जोड़ो यात्रा की तरह चुनावी यात्रा करके माहौल बनाना हो या फिर विनेश फोगाट की लोकप्रियता को भुनाना हो। विनेश फोगाट और ओलम्पियन बजरंग पुनिया आज आधिकारिक रूप से कांग्रेस पार्टी में शामिल हो चुके हैं. ये अपेक्षित जोइनिंग जहाँ कांग्रेस पार्टी के लिए इसबार एक वरदान बन सकती है वहीँ सत्तारूढ़ भाजपा के लिए अभिशाप। भाजपा को इसबार कई मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पड़ रही है और उसे हर मोर्चे पर टक्कर मिल रही है, चाहे बाहरी हो या अंदरूनी। राजनीति में दावे के साथ तो कभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन हवा का रुख और हालात काफी कुछ संकेत दे देते हैं और कहा जा सकता है कि संकेत भाजपा के लिए अच्छे नहीं हैं.

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