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रंगनाथ मिश्रा: 17 साल बाद घरवापसी, आरोप-जेल-बेल के बीच कांटो भरा रहा सियासी सफर, बनेंगे ब्राह्मण चेहरा?

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रंगनाथ मिश्रा: 17 साल बाद घरवापसी, आरोप-जेल-बेल के बीच कांटो भरा रहा सियासी सफर, बनेंगे ब्राह्मण चेहरा?

लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व कैबिनेट मंत्री रघुनाथ मिश्रा को पार्टी में शामिल कर बड़ी सफलता हासिल की है। गौरतलब है कि रंगनाथ मिश्रा कि राजनीतिक कैरियर की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी से हुई थी। इस दौरान वे 1993 और 1996 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और विधायक बने। इसके बाद 2005 और 2007 में वह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और विधायक बने। मायावती की पूर्ण बहुमत की सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। हालांकि 17 साल बाद एक बार फिर रंगनाथ मिश्रा ने भारतीय जनता पार्टी में वापसी की है लेकिन इस दौरान कि उनकी सियासत काफी दिलचस्प रही है।

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रंगनाथ मिश्रा: 17 साल बाद घरवापसी, आरोप-जेल-बेल के बीच कांटो भरा रहा सियासी सफर, बनेंगे ब्राह्मण चेहरा?

टैक्सी यूनियन के नेता से कैबिनेट मंत्री तक का सफर

रंगनाथ मिश्रा ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत 90 के दशक से की थी। इस दौरान वो भारतीय जनता पार्टी के बनारस जिले के जिला अध्यक्ष भी रहे। तब भाजपा में माया शंकर पाठक का दबदबा हुआ करता था, लेकिन उन्होंने उनकी चुनौती को टक्कर दी और अपनी राजनीतिक सियासत की शुरुआत की। तब भारतीय जनता पार्टी में जिला अध्यक्ष के पद पर भी चुनाव होता था और उन्होंने लगभग 200 के वोटों के अंतर से माया शंकर पाठक के करीबी को मात दी थी। जिसके बाद उनका कद भारतीय जनता पार्टी में बढ़ता ही गया। 1991 में जिलाध्यक्ष बनाने के बाद कल्याण सिंह के कहने पर उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी की लेकिन टिकट नहीं मिला। टिकट नहीं मिलने के बाद वह नाराज जरूर हुए लेकिन कल्याण सिंह उन्हें मनाने में कामयाब रहे। राम लहर के दौरान यूपी में हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 221 सीट जीती लेकिन रंगनाथ को हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बाद पार्टी में उनके खिलाफ माहौल बनाया गया कि जब वह राम लहर में नहीं जीते तो आगे क्या जीत पाएंगे। लेकिन रंगनाथ मिश्रा ने हार नहीं मानी।

भाजपा की कल्याण सिंह सरकार को 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया। उसके बाद 1993 में एक बार फिर चुनाव हुए जिसमें भाजपा के वोट तो बड़े लेकिन सीट घट गई। इस चुनाव में भी रंगनाथ मिश्रा उतरना तो चाहते थे लेकिन उनके खिलाफ माहौल बना दिया गया था। इस मुश्किल समय में उनका साथ दिया टैक्सी, ऑटो और जीप ड्राइवर्स ने। उनका माहौल बनते ही 1993 में भाजपा ने उन्हें टिकट दिया। जिसके बाद उन्होंने औराई विधानसभा से बहुजन समाज पार्टी की राजकुमारी को मात देकर विधानसभा का चुनाव जीता। इस बीच कई उठापटक होते हैं लेकिन 21 मार्च 1997 को जब भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी मिलकर सरकार बनाते हैं तो कल्याण सिंह की सरकार में रंगनाथ मिश्रा को ऊर्जा मंत्रालय की जिम्मेदारी मिलती है। उसके बाद कल्याण सिंह की सरकार में भी परिवार कल्याण मंत्रालय और वन विभाग की जिम्मेदारी मिली। वहीं साल 2000 में गृह मंत्रालय स्वतंत्र प्रभार के साथ-साथ मुख्यमंत्री के विभागों से संबद्ध कर दिया गया था।

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बागी स्वभाव के हैं रंगनाथ मिश्रा

भाजपा में शामिल होते ही रंगनाथ मिश्रा को कई विरोधियों का सामना करना पड़ा था। इस दौरान हुए अपने बागी स्वभाव के चलते पार्टी में बने रहे। 1999 में एक दिलचस्प घटना हुई। उस समय उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार थी और रंगनाथ मिश्रा ऊर्जा विभाग में राज्यमंत्री थे जबकि नरेश अग्रवाल कैबिनेट मंत्री थे। हालांकि नरेश अग्रवाल की अपनी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी थी और उनके समर्थन से भारतीय जनता पार्टी की सरकार चल रही थी। इस दौरान खबर चली गई नरेश अग्रवाल अपने जिले हरदोई को 24 घंटे की बिजली उपलब्ध करा रहे हैं जबकि अन्य जिलों में यह स्थिति नहीं थी। इसके बाद रंगनाथ मिश्रा ने अधिकारियों की बैठक बुलाई और आदेश जारी किया कि उनके जिले यानी भदोही को भी 24 घंटे बिजली मिले।

जैसे ही यह बात नरेश अग्रवाल को पता चली उन्होंने रंगनाथ मिश्रा के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि पूरे भदोही जिले को नहीं बल्कि सिर्फ उनके विधानसभा क्षेत्र में 24 घंटे बिजली दी जाए। इसके बाद रंगनाथ मिश्रा नाराज हो जाते हैं और कल्याण सिंह के सामने जाकर के अपना त्यागपत्र सौंप देते हैं। मामला यहीं नहीं रुका रंगनाथ मिश्रा की बगावत देखकर naresh अग्रवाल उस समय भारतीय जनता पार्टी के सबसे कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी के पास जाते हैं और अपनी बात रखते हैं। हालांकि नरेश अग्रवाल भारतीय जनता पार्टी को अपना समर्थन देकर सरकार चला रहे थे ऐसे में माहौल को देखते हुए लालकृष्ण आडवाणी ने कल्याण सिंह को फोन किया और कहा कि सरकार आपकी नरेश अग्रवाल के सहारे चल रही है और उनकी बात को सुना जाए। साथ ही यह भी कहा कि रंगनाथ मिश्रा से उर्जा मंत्रालय ले लिया जाए लेकिन कल्याण सिंह उसके बाद तक 4 महीने और सरकार चलाते रहें लेकिन रंगनाथ मिश्रा से मंत्रालय उन्होंने नहीं लिया। रंगनाथ मिश्रा की बगावत का नतीजा रहा कि 2002 तक भदोही को 24 घंटे बिजली मिलती रही।

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