अमित बिश्नोई
लोकसभा चुनाव 2024 का मतदान ख़त्म हो चूका है, नतीजे आने में अब कुछ घण्टों का ही इंतज़ार बाकी है. फिलहाल देश में एग्जिट पोल पर बहस चल रही है , दो तरह के एग्जिट पोल्स की बात हो रही है, एक एग्जिट पोल, जो टॉप के टीवी चैनलों द्वारा कराये गए हैं और जिन्हे सरकारी या दरबारी एग्जिट पोल बताया जा रहा है तो दूसरी तरफ के एग्जिट पोल्स जो सोशल मीडिया से निकले हैं उन्हें जनता का एग्जिट पोल बताया जा रहा है. कौन से एग्जिट पोल सही निकलेंगे, सरकारी या कथित रूप से जनता के कहे जाने वाले, इनकी पोल 4 जून को खुल जाएगी लेकिन इन सबके बीच लोगों में चर्चा देश की कुछ सीटों को लेकर भी हो रही है. ये सीटें ऐसी हैं जहाँ पर VVIP नेता या सेलिब्रिटी का दर्जा पाने वाले चुनावी मैदान में हैं. ऐसी ही एक सीट पश्चिमी उत्तर की राजधानी कहे जाने वाले मेरठ की भी है जहाँ से फिल्म और टीवी की दुनिया के मशहूर अदाकार अरुण गोविल भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं. अरुण गोविल को रील वाला राम कहा ही जाता है.
आपको मशहूर टीवी सीरियल रामायण तो याद ही होगा, इस सीरियल में अरुण गोविल ने मर्यादा पुरषोत्तम भगवान राम की भूमिका निभाते बड़ी ख्याति अर्जित की थी और देश में लोग उन्हें भगवान् की तरह ही देखने लगे थे. अभी उन्हीं रील वाले राम के लिए लोगों में सबसे ज़्यादा जिज्ञासा है कि 4 जून को क्या होगा? क्या रील के राम का इंतज़ार ख़त्म होगा, 4 जून को मेरठ की जनता क्या फैसला सुनाएगी, क्या रील वाले राम का राजतिलक होगा या फिर मेरठ के लोग उन्हें वनवास पर भेज देंगे? दरअसल भाजपा ने अरुण गोविल को मेरठ से मैदान में उनकी राम वाली इमेज को कैश करने के लिए ही उतारा था, वरना राजनीती से उनका कोई नाता नहीं है, ये अलग बात है कि चुनाव के दौरान अरुण गोविल चुनाव प्रचार में भाजपा की मदद करते रहे हैं, राजनीती से उनका यही नाता है.
इस चुनाव में एक गाना बहुत प्रचलित हुआ, जो राम को लाये हैं, हम उनको लाएंगे”. इसके बावजूद मोदी जी को राम जी की शरण में जाना पड़ा, ये बताना पड़ा कि राम को उनकी ज़रुरत नहीं, उनको राम की ज़रुरत है. किसी इंसान में राम को लाने की हैसियत नहीं, हां रील वाले राम की बात अलग है. रील वाले राम ने मेरठ में चुनाव के दौरान किस किस तरह के बयान दिए ये सभी को मालूम है, शर्तों के साथ सेवा की बात भगवान नहीं इंसान ही कर सकता है. अरुण गोविल ने मेरठ वासियों पर पहले उन्हें जीत दिलाने की शर्त थोप दी थी. काफी वायरल हुआ था उनका ये बयान। पहले जीत दिलाओ फिर बताऊंगा कि काम करूंगा या नहीं। अब उनके इस बयान पर और इस तरह के दुसरे बयानों पर मेरठ वासियों ने वोट के रूप में क्या प्रतिक्रिया दी होगी, सबसे अहम् सवाल यही है. वैसे मेरठ का चुनावी माहौल तो ऊपर से रील वाले राम के पक्ष में नहीं दिखाई दे रहा था, गोविल साहब को भी इसका एहसास था तभी चुनाव बाद उन्होंने धोखा देने की बात कही थी और मुंबई के लिए प्रस्थान कर गए थे.
रील वाले राम के लिए आम तौर पर तो मेरठ के लोगों में गुस्सा ही दिखा, गुस्सा अगर न भी कहिये तो कोई ख़ास लगाव भी नहीं दिखा था, जैसा की भाजपा ने सोचा था और राम नाम को कैश करने का प्रयास किया था. अब अगर हम कल आये टीवी चैनलों के एग्जिट पोल्स की रिपोर्ट को सच माने तो रील वाले राम मेरठ से भाजपा की नय्या पार लगाते हुए नज़र आ रहे हैं लेकिन अगर हम दूसरे एग्जिट पोल्स की बातों पर विशवास करें, नामचीन वरिष्ठ पत्रकारों के विश्लेषणों पर विशवास करें तो रील वाले राम को मेरठ के लोग वनवास पर भेजते हुए नज़र आ रहे हैं. अरुण गोविल को मिलेगा ताज या फिर वनवास, एक दिन बाद पता ही चल जायेगा। जीत गए तो भाजपा को अपने खाते में एक और सीट मिल जाएगी और मेरठ को शर्तें लागू की कंडीशन वाला सांसद, जो शायद मेरठ की इतिहास का पहला ऐसा सांसद होगा।