Zeba Hasan
इबादत के महीने रमजान के विदा होने का वक्त आ गया। 29 अप्रैल को पड़ने वाले जुमे को अलविदा की नमाज होगी। अलविदा को लेकर लखनऊ सहित सभी शहरों की तमाम मस्जिदों में तैयारियां पूरी हो गई हैं। रमजान के आखिरी जुमा ‘शुक्रवार’ कई मायनों में खास होता है। एक तो इसके आने का मतलब यह है कि अब बस ईद आने ही वाली है। यानी ईद के चांद से पहले का यह आखिरी जुमा है। वहीं इबादत के लिहाज से भी यह दिन मुसलमानों के लिए बेहद खास है। इस दिन मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हैं और इस बात का शुक्र अदा करते हैं कि उन्हें माहे रमजान के पाक महीने में रोजे रखने का मौका मिला। तरावीह पढ़ने और अल्लाह की इबादत करने का शर्फ हासिल हुआ।
Read also: धूप में सूख कर चाशनी में घुलने को तैयार हैं सेवईंयां
इसे छोटी ईद भी कहते हैं
अलविदा जुमे का दिन हर मुसलमान के लिए बेहद खास होता है। लखनऊ के आसिफी मस्जिद और टीले वाली मस्जिद पर ऐतिहासिक नमाज होती है जिसमें हजारों की तादाद में लोग नमाज अदा करते हैं। बाराबंकी, काकोरी, मलीहाबाद जैसे तमाम आसपास के छोटे कस्बों और गावों से लोग नमाज के लिए लखनऊ आते हैं। मस्जिदों के बाहर कहीं टोपियों की दुकान सजी नजर आती है तो कहीं कुर्ता पायजमा और इत्र की दुकाने भी लगती हैं। बड़ों के साथ बच्चे भी अलविदा की नमाज में आते हैं तो उनके लिए यह दिन किसी मेले से कम नहीं होता। यही वजह है कि अलविदा जुमे को छोटी ईद भी कहा जाता है। इस दिन भी कुछ लोग नए कपड़े पहन कर ही अलविदा की नमाज अदा करते हैं।
औरतें घरों में पढ़ती है नमाज
क्योंकि इस्लाम में औरत मर्द और बच्चों पर भी नमाज वाजिब होती है। अलविदा की नमाज जहां घर के मर्द मस्जिदों में पढ़ने के लिए जाते हैं वहीं औरतें इस नमाज को घरों में अदा करती हैं। नमाज के साथ अलविदा जुमे के दिन खास पकवान भी बनते हैं। यही वजह है कि आखिरी जुमे को घर की महिलाएं रोजा नमाज के साथ दिन भर अच्छे पकवान भी तैयार करती है। इफ्तार के साथ रात के खाने का भी खास इंतजाम किया जाता है। फौजिया कहती हैं कि हर बार की तरह इस बार भी अलविदा के लिए नए कपड़े बनाए गए हैं। ईद पर तो नए कपड़े पहनते ही हैं लेकिन हम अलविदा की नमाज भी नए कपड़ों में ही पढ़ते हैं। इसका एक अलग ही सवाब मिलता है।
Read also; Ramadan 2022 Special: रमजान में जब रात को होती है सुबह की चमक
दो साल बाद पढ़ेंगे लखनऊ में नमाज
बाराबंकी के अब्दुल कलीम ने बताया कि उनका कारोबार लखनऊ में ही होता है। वह हर साल अलविदा की नमाज लखनऊ की टीले वाली मस्जिद में ही पढ़ा करते हैं। लेकिन पिछले दो साल से कोरोना महामारी के चलते उन्होंने नमाज घर पर ही पढ़ी। कलीम कहते हैं कि इस बार खासतौर पर नमाज लखनऊ में ही पढ़ना है। मैं ही नहीं मेरा पूरा परिवार अलविदा जुमा के दिन यहीं रहेगा। नमाज के बाद हमें ईद के लिए खरीदारी भी करनी है। यह दिन भी हमारे लिए ईद से कम नहीं होता।