अमित बिश्नोई
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इतवार की सुबह जब अपने इस्तीफे का बम फोड़ा तो सियासी हलकों में हड़कंम्प मच गया. हड़कंम्प मचना ज़रूरी भी था क्योंकि बात भले ही दिल्ली की सत्ता और सियासत से जुडी है लेकिन पड़ोसी राज्य हरियाणा में विधानसभा सभा चुनाव भी हो रहा है जहाँ भाजपा को अपनी सत्ता बचानी है तो कांग्रेस को सत्ता में वापस आना है, वहीँ आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़कर अपनी पार्टी का विस्तार कर रही है. केजरीवाल के इस सरप्राइज़ इस्तीफे की घोषणा से एकदम से कई सवाल पैदा हो गए और उनके जवाब की तलाश भी शुरू हो गयी. केजरीवाल के इस्तीफे के मायने तलाशे जाने लगे, इस्तीफे की असली वजह ढूंढी जाने लगी, केजरीवाल क्या कोई बड़ी बाज़ी खेल रहे हैं या इस इस्तीफे से आम पार्टी को क्या फायदा होगा या फिर नुक्सान होगा, इस पर चर्चा होने लगी. सबसे बड़ा सवाल ये उठा कि इस इस्तीफे का कांग्रेस पार्टी पर क्या असर पड़ेगा क्योंकि दोनों ही पार्टियों ने अभी दिल्ली में लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था.
केजरीवाल ने आज जब इस बात की घोषणा की कि वो दो दिन बाद इस्तीफ़ा देकर मुख्यमंत्री की कुर्सी किसी और को सौंप देंगे, तो दो बातें बिलकुल स्पष्ट कर दीं, पहली ये कि वो अपनी ईमानदारी साबित होने तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे और दूसरी बात मनीष सिसोदिया उनका विकल्प नहीं होंगे। इसका मतलब पार्टी में कोई तीसरा अब मुख्यमंत्री बनेगा। केजरीवाल के मुताबिक वो और सिसोदिया जनता की अदालत में जायेंगे और उनसे अपनी ईमानदारी का सर्टिफिकेट मांगेंगे और वो सर्टिफ़िकेट होगा जीत का. दिल्ली विधान सभा के चुनाव जनवरी फरवरी में हो सकते है, हालाँकि केजरीवाल ने नवंबर में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के साथ दिल्ली में भी चुनाव कराने की अपील की है लेकिन सरकार का रवैय्या देखते हुए इस बात की रत्ती भर भी गुंजाईश नज़र नहीं आती. तो मानकर चलना चाहिए कि दिल्ली में अब जो मुख्यमंत्री बनेगा उसे चार महीने मिलेंगे। इस दौरान केजरीवाल एक प्रताड़ित नेता के रूप में जनता के बीच सहानुभूति की लहर पैदा करने की कोशिश करेंगे।
वैसे पिछले कुछ महीनों की बात की जाय तो केजरीवाल सरकार के खिलाफ दिल्ली की जनता में असंतोष काफी बढ़ा है और ये असंतोष लोकल स्तर पर ख़राब सुविधाओं को लेकर है जिसका ढिंढोरा आम आदमी पार्टी वाले हमेशा से पीटते आ रहे हैं. दिल्ली में चाहे पीने के पानी का मामला हो, चाहे बारिश में जलभराव की बात. एक आंकड़े के मुताबिक दिल्ली में जलभराव में इस बार तीस से ज़्यादा लोगों की जाने गयी हैं. हालाँकि ये भी सही है कि दिल्ली में इस वक्त LG का शासन चल रहा हैं, सरकार तो बस नाम की है लेकिन जनता में इन सारी समस्याओं से सरकार की इमेज खराब तो हुई है. LG और सरकार के झगडे से जनता को कोई लेना देना नहीं उसे तो सुविधाएँ चाहिए जिसकी उम्मीद वो सरकार से करती है न कि LG से. वैसे भी आबकारी नीति मामले में ED और सीबीआई ने केजरीवाल को तिहाड़ भेजकर उनकी मिस्टर क्लीन image पर डेंट तो लगा ही दिया है.
राजनीतिक पंडितों के मुताबिक केजरीवाल का ये इस्तीफ़ा पार्टी के खिलाफ बढ़ते असंतोष को कम करने के लिए और अपनी बिगड़ी या बिगाड़ी गयी इमेज को सुधारने की एक कोशिश भर है. केजरीवाल को प्रधानमंत्री मोदी की कॉपी कहा जाता है, उनके काम करने का स्टाइल भी काफी कुछ पीएम मोदी जैसा है, उन्हें प्रधानमंत्री की तरह अपनी इमेज की सबसे ज़्यादा फ़िक्र रहती है. आज सुबह जब केजरीवाल ने कहा कि अगर मैं आपको ईमानदार लगूँ तभी आप मुझे वोट कीजियेगा। वैसे केजरीवाल इससे पहले भी इस तरह की बातें की कर चुके हैं लेकिन अंतर ये है कि पहले उन्होंने जीत हासिल करने के लिए, सरकार बनाने के लिए इस तरह की बातें की थीं लेकिन इस बार उन्हें अपने को साफ़ सुथरा साबित करने के लिए ये बात कहनी पड़ी है. मामला वही इमेज वाला आता है. केजरीवाल को मालूम है कि एक नेता के लिए उसकी इमेज ही सबसे ज़्यादा महत्व रखती है इसलिए अगर इमेज ही खराब हो गयी तो फिर राजनीती खराब होने में ज़्यादा समय नहीं लगता।
अब सबसे बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि अगर केजरीवाल नहीं, मनीष सिसोदिया नहीं तो फिर दिल्ली का अगला सरदार कौन बनेगा? फिलहाल तो इसके लिए दिल्ली सरकार की शिक्षा मंत्री आतिशी का नाम सबसे आगे चल रहा है। नाम तो केजरीवाल की पत्नी सुनीता का भी सामने आया है लेकिन अंदरखाने से खबर यही है कि केजरीवाल इस पर सहमत नहीं हैं. दो दिन बाद होने वाले इस्तीफे की घोषणा करके केजरीवाल ने जो इमोशनल कार्ड खेला है वो कार्ड सुनीता के सीएम बनने पर काम नहीं करेगा। केजरीवाल अब आज़ाद होकर दिल्ली में LG विनय कुमार सक्सेना से खुलकर दो दो हाथ करेंगे। उनके निशाने पर भाजपा की टॉप लीडरशिप तो रहेगी ही लेकिन ख़ास निशाना LG साहब ही होंगे। नाम के लिए सीएम रहकर वो Lieutenant Governor के खिलाफ उतना असरदार नहीं हो सकते थे लेकिन जब कोई पद ही नहीं तो LG साहब अड़ंगा कहाँ लगाएंगे, रुकावटें कहाँ खड़ी करेंगे, एक्शन किसके खिलाफ लेंगे। अगले कुछ महीनों के लिए दिल्ली में लड़ाई दिलचप्स होने वाली है. फिलहाल तो केजरीवाल ने अपने सवालों में लिपटे इस्तीफे की घोषणा करके एक सियासी भूचाल तो पैदा कर ही दिया है. आगे क्या होगा ये देखना दिलचस्प होगा।