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Indrasani Mansa Devi Mandir- माता के दर्शन मात्र से सर्पदंश से मिलती है मुक्ति

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रुद्रप्रयाग – भगवान भोलेनाथ की तपस्थली कहे जाने वाले रुद्रप्रयाग में हम आपको आज एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जो सांपों की देवी का मंदिर कहा जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर में अगर कोई सांप से कांटा हुआ पीड़ित आता है तो माता के आशीर्वाद से वह ठीक हो जाता है. हम बात कर रहे हैं रुद्रप्रयाग के तिलवाड़ा के पास स्थित इंद्रासणी मनसा देवी मंदिर की. इस मंदिर में आस-पास के गांव वाले अपनी खेती, त्योहार और मांगलिक कार्यों की प्रथम भेंट अर्पित करते हैं. बाबा केदारनाथ की दर्शन को जाने वाले अधिकतर भक्त इस मंदिर में भी माथा टेकने आते हैं.

धार्मिक मान्यता

रुद्रप्रयाग शहर से करीब 14 किलोमीटर दूर करनाली पट्टी गांव में स्थित ह इंद्रासणी मनसा देवी मंदिर मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य के युग में इस मंदिर का निर्माण हुआ था. यहां की अद्भुत वास्तुकला आपको मंत्रमुग्ध कर देगी. इस मंदिर के बारे में स्कंद पुराण और केदारखंड में विस्तृत वर्णन मिलता है. धार्मिक मान्यता है कि इंद्रासणी देवी ऋषि कश्यप की मानसी कन्या थी. जिन्हें वैष्णवी, शिवि, विश्हरि के नाम से भी जाना जाता है.लोक मान्यता है कि मां इंद्राणी सर्पदंश से मुक्ति दिलाती है. यही वजह है कि माता को नाग भगिनी व मनसा देवी वैष्णवी रूप में पूजा जाता है. मान्यता यह भी है कि आसपास के गांव के लोग अपनी फसल मांगलिक कार्य और त्योहारों की पहली भेंट माता को चढ़ाते हैं. यदि कोई व्यक्ति यह भेंट चढ़ाना भूल जाता है तो उस व्यक्ति के सामने सांप प्रकट हो जाते हैं.

सर्पदंश का तोड़ और मकान बनाने की स्वीकृति

इंद्रासणी मंदिर को लेकर मान्यता है कि जिस व्यक्ति को सांप ने काटा हो वह मंदिर में आकर सही हो जाता है. मान्यताओं के अनुसार सांप काटे हुए व्यक्ति को मंदिर में 1 दिन के लिए रखा जाता है. माता के सामने स्नान कर उस व्यक्ति को बैठाया जाता है और उसके बाद उसे सर्पदंश से मुक्ति मिलती है. मान्यता यह भी है कि स्थानीय लोग अपने नए मकान बनाने से पहले वहां की मिट्टी मंदिर में लाते हैं फिर माता की आज्ञा से उस जगह पर मकान बनाया जाता है.

हर 12 साल में महायज्ञ

इंद्रासणी देवी के मंदिर में हर 12 साल के बाद एक बड़े महायज्ञ का आयोजन किया जाता है. इस महायज्ञ में शामिल होने के लिए देश के कोने कोने से भक्त यहां पहुंचते हैं. कहा जाता है कि माता को प्रसन्न करने के लिए महायज्ञ का आयोजन होता है. साथ ही मान्यता है कि यहां के गांव में किसी भी तरह का कोई विपत्ति ना आए और माता उनकी रक्षा करें इसके लिए भी यज्ञ किया जाता है.

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