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‘‘राम बनाम काम’’

आर्टिकल/इंटरव्यू‘‘राम बनाम काम’’

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‘‘राम बनाम काम’’

अमित बिश्नोई

‘‘राम बनाम काम’’

देश को नौ प्रधानमंत्री देने वाले उत्तर प्रदेश में अगले साल के शुरू में असेम्बली चुनाव होने है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य में हर राजनीतिक पार्टी सत्ता में आना चाहती है क्योंकि केंद्र का रास्ता यहीं से होकर निकलता है। इस वक्त उत्तर प्रदेश में बीजेपी सत्ता में है और वह एक बार फिर सरकार बनाने के लिये जी तोड़ कोशिश कर रही है। बीजेपी के सामने सबसे बड़ी परेशानी यह है कि योगी सरकार ने साढ़े चार साल में राज्य की जनता की भलाई का कोई ऐसा काम नहीं किया जिसके दम पर चुनावी मैदान में जाया जा सके। वादे तो बहुत किये , विकास और समृद्धि के ढिंढोरे भी बहुत पीटे मगर धरातल पर कुछ भी नज़र नहीं आ रहा है. इस दौरान जो कुछ विकास दिखा वह सिर्फ अखबारों और टीवी पर दिये गये विज्ञापनों में दिखा। अब इन हालात में भाजपा और आरएसएस इस उधेड़बुन में है कि ऐसा क्या किया जाय जो साढ़े चार साल की नाकामियों को ढक ले, और अंत में यही तय हुआ कि चलो राम की ओर, वही एकबार फिर नय्या पार लगाएंगे।

चुनांचे एक योजनाबद्ध तरीके से प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अयोध्या में निर्मित हो रहे राम मन्दिर की भव्य योजनाओं का एलान करना शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि राम जी के हर भक्त को जीवन में एक बार अयोध्या जरूर आना चाहिये ताकि वह यहां की आध्यात्मिकता से लाभान्वित हो सके। मंदिर निर्माण को तेज़ करने के चक्कर में ज़मीनों के कुछ सौदे विवादित भी हो गए, इस मुद्दे पर भाजपा और संघ को शर्मिंदगी भी उठानी पड़ी, बहरहाल डैमेज कंट्रोल की कोशिश हो रही है और सुना है कि संघ के पूर्व सरकार्यवाह भैया जोशी को जन्मभूमि प्रोजेक्ट की देखरेख की ज़िम्मेदारी दी जा रही है, हालाँकि कि ऐसा होता है तो कहीं न कहीं ज़मीन खरीद मामलों करप्शन के आरोपों को बल मिलेगा। लेकिन इसके बावजूद इस विवाद से निपटना भाजपा और संघ के लिए ज़रूरी हो गया है क्योंकि चुनाव को देखते हुए यह गंभीर मुद्दा है. भाजपा सरकार परोक्ष नहीं तो अपरोक्ष रूप से मंदिर निर्माण से जुडी हुई है इसलिए वह करप्शन के किसी भी आरोप से ज़रूर बचना चाहेगी। खबर तो यह भी है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस विवाद से काफी नाराज़ हैं और वह नहीं चाहते कि इस चुनावी बेला में उनकी क्लीन छवि पर कोई धब्बा लगे.

इधर भाजपा के सहयोगी दलों ने भी आँखें दिखानी शुरू कर दी हैं, हालात को देखते हुए उनकी मांगों का मुंह बढ़ता जा रहा है. असेम्बली एलेक्शन के लिए मोर्चाबंदी कर रही यह सहयोगी पार्टियां मुख्यमंत्री योगी के मिशन 2022 में रोड़ा डाल रही हैं । सबसे पहले तो निषाद पार्टी ने बीजेपी से डिप्टी सीएम का पद मांगकर कर सबको हैरान कर दिया। तो अब NDA में शामिल रिपब्लिकन पार्टी ने 10 सीटें मांग ली है। एनडीए की सबसे बडी सहयोगी पार्टी जनता दल यूनाईटेड जो कि बिहार में बीजेपी के साथ मिल कर सरकार चला रही है, इशारा दिया है कि वह उत्तर प्रदेश में ‘‘एकला चलो‘‘ की पालिसी पर अमल करेगी । जेडीयू के इस एलान से बीजेपी में खलबली मच गयी है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिये मिशन 2022 राजनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश में सत्ता बरकरार रखना बीजेपी और आरएसएस के लिए हर हाल में जरूरी है। मगर राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि यह इतना आसान नहीं है. अखिलेश के नेतृत्व वाली इसबार नए क्लेवर में है इसलिए पूरी सम्भावना है कि त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय मुकाबला न होकर इसबार का असेम्बली एलेक्शन बीजेपी और समाजवादी पार्टी के ही बीच ही लड़ा जायेगा। पंचायत चुनाव में मिली जबर्दस्त कामयाबी के बाद समाजवादी पार्टी के हौसले बहुत ज्यादा बलंद हैं और इन्हीं हौसलों की बिना पर समाजवादी पार्टी बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने का ख्वाब देख रही है। समाजवादी पूरे प्रदेश में अखिलेश यादव के शासनकाल में हुये विकास के कामों को वीडियो के माध्यम से जनता तक पहुंचा रही है। सपा मतदाताओं तक यह सन्देश भी बड़ी सफलता से पहुंचा रही है कि महाराज ने सपा शासन के कामों पर ही अपने नाम की मुहर लगाकर लोगों को धोखा दिया है. पिछले चुनाव में अतिआत्मविश्वास का शिकार बनी समाजवादी पार्टी इस बार फूंक फूंककर कदम रख रही है. अखिलेश भी इसबार सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को अपनाना चाह रहे हैं, पिछले चुनावों में यादवों ने कैसे उनका साथ छोड़ा था उन्हें अच्छी तरह से याद है इस लिए उनकी नज़र इसबार दलितों और ओबीसी पर भी है। राष्ट्रीय लोक दल से समझौता सपा को कितना फायदा पहुंचाएगा इसपर अभी बहुत से सवाल हैं जिसपर आगे फिर कभी बात करेंगे।

तैयारियां तो बसपा और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी और वोट कटुआ ओवैसी की मीम जैसी पार्टी भी कर रही हैं. बसपा और कांग्रेस बड़ी पार्टियां हैं और इनको पूरी तरह नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। वैसे अभी बहुत समय बाक़ी है, नदियों में पानी लगातार बह रहा है, चुनावों में बहुत कुछ उलट पुलट होता है, ऐसे ऐसे दांव खेले जाते हैं जो जीती हुई बाज़ी को पलट देते हैं, मगर अभी तक के रुझान को अगर देखा जाय तो साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि अगला विधानसभा चुनाव ‘‘राम बनाम काम‘‘ के बीच ही होगा यानी योगी और अखिलेश के बीच। सपा के हिस्से में काम है तो बीजेपी के हिस्से में राम है।

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