आम चुनावों से पहले फरवरी में घोषित अंतरिम बजट 2024 में किसी भी कर छूट से वंचित होने के बाद करदाता अब 23 जुलाई को पेश होने वाले पूर्ण बजट पर अपनी उम्मीदें टिकाए हुए हैं। उनकी Wish list में कम कर दरें, उच्च बुनियादी छूट सीमा और मानक कटौती शामिल हैं। हालांकि वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार कुछ कर बदलावों की घोषणा कर सकती है, लेकिन लाभ काफी हद तक नई, न्यूनतम छूट कर व्यवस्था तक ही सीमित रहेंगे।
अभी पुरानी और नई कर व्यवस्थाओं के तहत क्रमशः 2.5 लाख रुपये और 3 लाख रुपये तक छूट है। उम्मीद है कि नई कर व्यवस्था के तहत सीमा को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया जाएगा। टैक्स कंसल्टेंसी फर्म टैक्सआराम इंडिया के संस्थापक निदेशक और चार्टर्ड अकाउंटेंट मयंक मोहनका का मानना है कि इससे न तो सरकार के कर राजस्व संग्रह पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ेगा और न ही कर आधार कम होगा, लेकिन इससे उच्च कर ब्रैकेट में आने वालों को अपना कर व्यय कम करने में मदद मिलेगी। उनके मुताबिक अगर इस कदम की घोषणा की जाती है तो 15-20 लाख रुपये के टैक्स स्लैब में आने वाले लोगों को 50,000-60,000 रुपये की बचत हो सकती है।
वित्तीय सलाहकार फर्म ऑप्टिमा मनी मैनेजर्स के संस्थापक पंकज मठपाल के मुताबिक यह मांग कई करदाताओं और वित्तीय विशेषज्ञों की इच्छा सूची में सबसे ऊपर है। “नई कर व्यवस्था के तहत, 15 लाख रुपये तक की कर योग्य आय पर 20 प्रतिशत की कर दर लागू होती है, और 15 लाख रुपये से अधिक पर, कर की दर 30 प्रतिशत है। 25 प्रतिशत का कर ब्रैकेट मौजूद नहीं है। इसलिए, 15-20 लाख रुपये की आय के लिए इस अतिरिक्त ब्रैकेट को पेश करने की गुंजाइश है। फिर 20 लाख रुपये से अधिक की कर योग्य आय के लिए 30 प्रतिशत कर दर लागू होगी।”
मोहनका का मानना है कि नई कर व्यवस्था में बदलाव की मुख्य बाधाओं में पुरानी कर व्यवस्था के तहत हाउस रेंट अलाउंस (HRA) और होम इंटरेस्ट टैक्स लाभ की उपलब्धता शामिल है। ये, धारा 80C लाभों के बजाय, पुरानी व्यवस्था में बने रहने के लिए प्रोत्साहन के रूप में कार्य करते हैं। “किराए का आवास एक बुनियादी आवश्यकता है। अगर नई व्यवस्था के तहत अनुमति दी जाती है, तो पुरानी कर व्यवस्था से चिपके हुए 70 प्रतिशत से अधिक करदाता नई व्यवस्था में चले जाएँगे। सरकार को न्यूनतम छूट व्यवस्था के तहत या तो HRA या होम लोन ब्याज कटौती की अनुमति देनी चाहिए। वित्त वर्ष 2018-19 से, इक्विटी शेयरों या म्यूचुअल फंड इकाइयों की बिक्री पर एक साल में 1 लाख रुपये से अधिक के दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ पर 10 प्रतिशत का कर लगता है। इस सीमा को निर्धारित किए हुए छह साल से अधिक हो गए हैं। सरकार इस सीमा को भी बढ़ा सकती है।