अमित बिश्नोई
लोकसभा चुनाव भले ही अभी एकसाल दूर हैं लेकिन भाजपा इसे ऐसे मानकर चल रही है जैसे अगले दो तीन महीनों में होने वाले हैं. प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को यह अच्छी तरह मालूम है कि सत्ता में तीसरी बार लौटना है और एकबार फिर प्रधानमंत्री बनना है तो इस बार कुछ नया करना होगा। भाजपा को मालूम है उसके पुराने चुनावी हथियारों की काट दूसरी पार्टियों ने काफी हद तक तलाश ली है. हालाँकि हिन्दू-मुसलमान का प्रभावकारी पेटेंट मुद्दा उनके पास मौजूद है लेकिन दुसरे कई क्षेत्रों में होने वाले नुक्सान की भरपाई करने की उसे सख्त ज़रुरत महसूस हो रही है. इस भरपाई को पूरा करने के लिए भाजपा की निगाहें उस वोट बैंक पर हैं जो परम्परागत रूप से विपक्षी पार्टियों का वोट बैंक माना जाता है, जी हां मुस्लिम वोट बैंक।
वैसे तो भाजपा के बहुत से नेता इस बात को साफ़ तौर पर कह चुके हैं कि उन्हें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए। वो यह भी मानते हैं कि मुस्लमान भाजपा को वोट नहीं देते। यही वजह भी है भाजपा सरकारों में मुसलमानों की या तो नुमाइंदगी होती ही नहीं या फिर नाम मात्र की होती है. केंद्र की मौजूदा भाजपा सरकार इसका सबूत है जहाँ कोई मुस्लिम मंत्री नहीं और ऐसा पहली बार हुआ है. इससे पहले की भाजपा सरकारों में कोई न कोई मुस्लिम मंत्री रहता ज़रूर था.बहरहाल अब लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा की जो योजनाएं चल चल रही हैं उनमें मुसलमानों पर फोकस करने की कोशिश हो रही है.
बोहरा मुसलमानों का तो मोदी जी से पहले ही लगाव रहा है और उसकी वजह गुजरात को बताया जाता है, प्रधानमंत्री मोदी उनके कार्यक्रमों में अक्सर जाते हैं। अभी हाल में उन्होंने बोहरा समाज के लिए कुछ निर्देश भी जारी किये हैं, उनकी समस्यों का निदान करने के आदेश भी दिए हैं. भाजपा के लिए राजनीतिक माहौल बनाने के लिए अगर देखें तो पिछले दो सालों से आरएसएस मुसलमानों के बीच कोशिश करती हुई नज़र आ रही है, फिर वो चाहे संघ प्रमुख की मज़ार पर हाज़री हो या मदरसे में जाना हो.
भाजपा की निगाहें विशेषकर मुसलमानों के उस समुदाय पर हैं जिनका ताल्लुक मज़ारों से है, आप इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि सूफीज़्म को मानने वाले मुस्लिम, जिन्हें बरेलवी समुदाय भी कहा जाता है, भाजपा का टारगेट हैं, माना जाता है कि इस समुदाय के लोग विचारधारा के रूप में ज़्यादा कट्टर नहीं होते। इसपर प्रभाव डालने के लिए पार्टी ने सूफी सम्मेलनों को सहारा लेने की योजना बनाई है. पता चला है कि प्रधानमंत्री मोदी के मन की बातों को उर्दू में अनुवाद कराकर मुस्लिमों के बीच उस किताब को वितरित करने की योजना है, इस पर काम शुरू भी हो गया है. त्योहारों के इस मौसम में होली मिलन और स्नेह मिलन कार्यक्रमों के ज़रिये सार्वजानिक रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के प्रभावकारी लोगों को सम्मानित करके भी एक सन्देश देने की कोशिश पार्टी करने जा रही है. आरएसएस पहले ही एक देश एक डीएनए की बात शुरू ही कर चुकी है.
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चे को यूपी में मुस्लिम समुदाय को पार्टी से जोड़ने के निर्देश दे दिए गए हैं, मुस्लिम मोर्चे की गतिविधियां भी इस दिशा में काफी तेज़ हो चुकी हैं. यूपी की बात करें तो 30 लोकसभा सीटें यहाँ ऐसी हैं जहाँ मुस्लिम समुदाय जीत हार का अंतर पैदा करता है. इन 30 सीटों पर भाजपा की विशेष निगाह है. उसे मालूम है कि केंद्र में सत्ता की तिकड़ी लगाने के लिए पार्टी को यूपी में मिशन 80 को पूरा करना होगा और मिशन 80 को पूरा करने के लिए उसे प्रदेश के एक बड़े वोट बैंक को अपने साथ लाना ही होगा। भाजपा पसमांदा मुसलमानों पर तो पहले ही फोकस किये हुए थी अब साथ ही इस समुदाय के उन लोगो तक भी अपनी पहुँच बना रही है जो लाभकारी श्रेणी में आते हैं. भाजपा का लक्ष्य मुस्लिम बहुल सीटों का जीतना है, आज़मगढ़ और रामपुर के उपचुनावों में उसे कामयाबी हासिल हुई है, इन कामयाबियों के बाद ही उसे उस समुदाय से भी अब उम्मीदें बंधी हैं जिनसे वो अबतक नाउम्मीद ही रही है, अब देखना है कि उसकी यह उम्मीदें कितनी खरी साबित होती हैं.