दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर गुज़रता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो भाजपा ही है जिसे प्रदेश में पिछले दो लोकसभा चुनावों में भारी संख्या में सीटें मिलीं। अब एकबार फिर दिल्ली की सत्ता हासिल करने के लिए उसे उत्तर प्रदेश से बड़ी उम्मीदें हैं. इस बार तो उसने सभी 80 सीटों को जीतने का लक्ष्य बनाया है जिसमें उसका सबसे ज़्यादा ध्यान उन सीटों पर है जहाँ उसे 2019 में असफलता मिली थी. भाजपा नहीं चाहती कि 2014 में उसने 73 सीटें जीतने का जो कीर्तिमान हासिल किया था उसमें लगातार गिरावट दर्ज हो क्योंकि 2019 में उसकी सीटों की संख्या कम होकर 64 तक पहुँच गयी थी, अब इसमें अगर कोई कमी आयी तो उसे 2024 में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.
पुरोधाओं को सौंपी ज़िम्मेदारी
यही वजह है कि उसने अपने पुरोधाओं को इस ज़िम्मेदारी पर अभी से लगा दिया है. भाजपा ने हारी हुई 16 सीटों पर कमल खिलाने के लिए सुनील बंसल को सेनापति बनाया है, संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह को भी उनके साथ लगाया गया है. मिशन 2024 को कामयाब बनाने की रणनीति के तहत ही यूपी के लिए मिशन 80 बनाया गया है और मिशन 80 को कामयाब बनाने के लिए एक और मिशन इन हारी हुई सीटों के लिए भी बनाया गया है. दो मार्च को लखनऊ में होने वाली बैठक के लिए पार्टी ने दिशा निर्देश भी जारी कर दिए हैं. इस बैठक में रणनीति बनाई जाएगी, एजेंडा बनाया जायेगा कि इन सीटों को भाजपा के कैसे छीना जा सकता है.
आजमगढ़, रामपुर की जीत ने बढ़ाया हौसला
वैसे तो 2019 में भाजपा जौनपुर,मुरादाबाद, संभल, रायबरेली, बिजनौर, अमरोहा, घोसी, लालगंज, अंबेडकर नगर, गाजीपुर, श्रावस्ती, सहारनपुर, नगीना मैनपुरी के अलावा आज़म गढ़ और रामपुर में हारी थी लेकिन बाद में हुए उपचुनाव में उसे रामपुर और आजमगढ़ में कामयाबी मिली थी. रामपुर और आज़मगढ़ समाजवादी पार्टी के गढ़ माने जाते थे, जिन्हें फतहकर भाजपा के हौसले बुलंद है, उसे विशवास हुआ है कि वो सपा के बाकी गढ़ों में सेंध लगा सकती है. इसलिए उसने इस बार मिशन 80 का लक्ष्य रखा है. लेकिन बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में इस लक्ष्य को पाना इतना आसान नहीं दिखता, वैसे चुनाव में अभी बहुत समय है.