राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की हाल ही में की गई मंदिर-मस्जिद टिप्पणी पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। अपनी टिप्पणी में भागवत ने हिंदुओं को देशभर में मंदिर-मस्जिद विवाद को तूल न देने की सलाह दी है। भागवत की इस टिप्पणी की सोमवार को हिंदू संतों के संगठन अखिल भारतीय संत समिति (एकेएसएस) ने कड़ी आलोचना की। एकेएसएस के महासचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि धर्म के मामलों पर धर्माचार्यों को निर्णय लेना चाहिए, न कि आरएसएस जैसे ‘सांस्कृतिक संगठन’ को।
बता दें कि भागवत के बयान पर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य और उत्तराखंड में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद द्वारा असहमति जताई गयी थी.
एकेएसएस के महासचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि जब धर्म का विषय उठता है, तो धार्मिक गुरुओं को निर्णय लेना होता है। और वे जो भी निर्णय लेंगे, उसे संघ और विहिप स्वीकार करेंगे।” उन्होंने कहा कि भागवत की टिप्पणियों के बावजूद 56 नए स्थलों पर मंदिर संरचनाओं की पहचान की गई है। उन्होंने कहा कि धार्मिक संगठनों ने राजनीतिक एजेंडे के बजाय जनभावनाओं के जवाब में काम किया है।
बता दें कि पिछले गुरुवार को पुणे में ‘भारत – विश्वगुरु’ पर व्याख्यान देते हुए भागवत ने कहा, “राम मंदिर के निर्माण के बाद, कुछ लोगों को यह विश्वास होने लगा है कि वे नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दे उठाकर हिंदू नेता बन सकते हैं।” उन्होंने कहा था कि यह स्वीकार्य नहीं है। मंदिर-मस्जिद विवाद को हवा देकर और सांप्रदायिक विभाजन फैलाकर कोई भी हिंदू नेता नहीं बन सकता। भागवत की यह टिप्पणी हिंदू समूहों द्वारा दायर कई याचिकाओं के जवाब में आई है, जिसमें मस्जिदों के सर्वेक्षण की मांग की गई है, जिनके बारे में उनका दावा है कि वे मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किए गए मंदिर स्थलों पर बनाई गई थीं।