depo 25 bonus 25 to 5x Daftar SBOBET

Bagnath Mandir – भगवान भोलेनाथ के अभिषेक से पहले श्मशान घाट में रुक जाती है व्यवस्था

धर्मBagnath Mandir - भगवान भोलेनाथ के अभिषेक से पहले श्मशान घाट में...

Date:

बागेश्वर – उत्तराखंड को भगवान शिव की तपस्थली कहा जाता है इस तपस्थली में भगवान भोलेनाथ के कई धार्मिक स्थल मौजूद हैं जहां उन्होंने अलग-अलग रूप में दर्शन देकर अपने भक्तों को कृतार्थ किया आज हम आपको बागेश्वर के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जहां भोलेनाथ ने बाग का रूप धारण किया था जिसके कारण इस मंदिर का नाम बागनाथ मंदिर पड़ा. बागेश्वर में परंपरा यह भी है कि चिता को जलाने के लिए भैरव मंदिर से अनुमति ली जाती है जिसमें धोनी की आग लेकर दक्षिणा दी जाती है. बागनाथ मंदिर (Bagnath Mandir) में भोग लगाने से पहले किस बात का ध्यान रखा जाता है कि शमशान घाट में कोई चिता ना जल रही हो. बागेश्वर जिले में स्थित बाग नाथ का मंदिर केवल एक मंदिर नहीं बल्कि कई मंदिरों का एक ग्रुप है जिनमें सातवीं शताब्दी से लेकर 16 शताब्दी तक की अलग-अलग देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं.

चिता जलाने के लिए भैरव मंदिर से अनुमति

भगवान बागनाथ की तपस्थली कहीं जाने वाले बागेश्वर अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है. यहां की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत आज भी लोगों के लिए सर्वोपरि है. मान्यता है कि चिता को जलाने से पहले ढेकाल भैरव मंदिर की धूनी से आग ली जाती है. इस आग से चिता को मुखाग्नि दी जाती है. कहा जाता है कि यह परंपरा एक तरह से श्मशान घाट में चिता जलाने की अनुमति के रूप में है. परंपरा यह भी है कि आग लेकर वहां अपनी स्वेच्छा अनुसार दक्षिणा भी दी जाती है. कहा जाता है कि यहां से आग लिए बिना श्मशान में चिता को नहीं चला सकते हैं.

बागनाथ मंदिर की धार्मिक मान्यताएं

शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार आदिकाल में मुनि वशिष्ठ ने ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को पृथ्वी लोक पर लेकर आ रहे थे. यहां ब्रह्मकपाली के पास ऋषि मार्कंडेय तपस्या में लीन थे. मुनि वशिष्ट को उनकी तपस्या भंग होने का डर सता रहा था और उधर सरयू आगे बढ़ने का नाम नहीं ले रहा थी, ऐसे में ऋषि वशिष्ठ ने भगवान शिव से प्रार्थना कर मदद की गुहार की. जिस पर भगवान शिव ने बाघ का रूप धारण किया जबकि माता पार्वती एक गाय के रूप में बदल गई. बाघ रूपी शिव गाय पर झपटे तो गाय के रंभाने की आवाज सुनकर मारकंडे मुनि की आंखें खुल गई और जैसे ही वह बाघ से गाय को बचाने के लिए आगे बढ़े तो भगवान शिव और माता पार्वती ने उन्हें दर्शन दिए और आशीर्वाद दिया. भगवान शिव के बाघ रूप धारण करने के चलते ही इस मंदिर का नाम बागनाथ मंदिर पड़ा.

भोग लगाने से पहले जलाते हैं कंबल का टुकड़ा

बागनाथ मंदिर के पुजारी खीमानंद पंत के अनुसार प्राचीन काल में यहां भोग लगाने से पहले इस बात का ध्यान रखा जाता था कि संतान घाट पर कोई जिताना जल रही हो चिता जलने के बाद ही यहां पूजा का प्रावधान था. वह बताते हैं कि सोमवारी अमावस्या के दिन भोग लगाने से पहले संभल का टुकड़ा जला दिया जाता था. हालांकि वह बताते हैं कि आप पिछले कुछ वर्षों से यह परंपरा चलन में नहीं है.

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

ट्रम्प ने टैरिफ पर खींचे कदम तो शेयर बाजार की हुई बल्ले बल्ले

अमेरिका द्वारा कनाडा और मैक्सिको के लिए नियोजित टैरिफ...

वित्त मंत्रालय ने चैटजीपीटी और डीपसीक पर प्रतिबंध लगाया

वित्त मंत्रालय ने गोपनीय दस्तावेजों और डेटा के संभावित...

बजट 2025: नई कर व्यवस्था के तहत 12 लाख रुपये तक कोई आयकर नहीं

मध्यम वर्ग को एक बड़ा बढ़ावा देते हुए वित्त...