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अखिलेश के ओवरकॉन्फिडेन्स में कितना कॉन्फिडेंस?

उत्तराखंडअखिलेश के ओवरकॉन्फिडेन्स में कितना कॉन्फिडेंस?

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अखिलेश के ओवरकॉन्फिडेन्स में कितना कॉन्फिडेंस?

अमित बिश्‍नोई

कॉन्फिडेंस और ओवर कॉन्फिडेन्स के बीच बहुत बारीक सी लकीर होती है, कॉन्फिडेंट होना कामयाबी की ओर अग्रसर होने की एक निशानी है मगर ओवरकॉन्फिडेंस में खूबियों के साथ कमियां भी छुपी होती हैं, जिन्हें झुठलाने या उनसे मुंह चुराने की कोशिश में इंसान खुद को अतिआत्मविश्वासी दिखाने लगता है , समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव आजकल कुछ ऐसी ही स्थिति में हैं या होने का दावा कर रहे हैं. प्रदेश में कुछ महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में उनकी कामयाबी का दावा 300 सीटों से शुरू हुआ था जो अब 400 सीटों तक जा पहुंचा, यह भी बताना ज़रूरी है कि यूपी में सिर्फ 403 असेम्ब्ली सीटें हैं. आज हम यही समझने की कोशिश करेंगे कि अखिलेश यादव का यह ओवरकॉन्फिडेंस कहाँ से आ रहा है और यह कितना धरातल पर है और कितना हवा हवाई।

उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार को पटकने दावा यूँ तो समाजवादी पार्टी के अलावा कांग्रेस और बसपा भी कर रही हैं लेकिन प्रदेश के मौजूदा हालात को देखें तो भाजपा सरकार से टक्कर लेने में सिर्फ सपा ही सक्षम दिखाई दे रही है और शायद अखिलेश यादव के कॉन्फिडेंस की पहली वजह भी यही है. प्रदेश में योगी सरकार के प्रति किसानों और युवाओं में काफी नाराज़गी है यह एक और बड़ी वजह है जो अखिलेश के विशवास को और बढ़ा रही है, तीसरी वजह कुछ प्रभावकारी छोटी पार्टियों का समाजवादी पार्टी से गठबंधन जो सपा का वोट बैंक और सीटें बढ़ाने में काफी मददगार साबित हो सकती हैं.

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इस गठबंधन में केशव मौर्य (भाजपा वाले नहीं) की पार्टी महान दल सपा के लिए काफी लाभकारी बन सकती है, महान दल का पीलीभीत से लेकर बदायूं तक काफी असर है. महान दल का साथ लेकर अखिलेश निषाद, मौर्य, सैनी और कश्यप समाज यानी OBCवोटों पर पार्टी की पकड़ बनाना चाहते हैं , अखिलेश का यह दांव कामयाब होता भी नज़र आ रहा है क्योंकि पीलीभीत से लेकर बदायूं तक महान दल के साथ निकाली गयी संयुक्त जनाक्रोश यात्रा में काफी भीड़ नज़र आयी और लोग इस गठबंधन को समर्थन देते हुए नज़र आये.

राष्ट्रीय लोकदल के साथ सपा का पहले से ही समझौता है जो किसानों की नाराजगी के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसबार काफी सफल होने वाला है. पिछले नौ महीने से चल रहा किसान आंदोलन और राकेश टिकैत का भाजपा सरकार के प्रति जो रुख है उससे तो यही लगता है कि योगी सरकार को काफी नुक्सान पहुँच सकता है, यही वजह है कि सारी विपक्षी पार्टियां इस वक़्त किसानों में अपना भविष्य तलाश रही हैं.

पिछले विधानसभा चुनावों के समय समाजवादी पार्टी की हार की एक सबसे बड़ी वजह मुलायम कुनबे की पारिवारिक कलह को माना गया था. चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश के बीच रिश्ते कितने खराब हो गए थे और इसके कारण सपा को कितना नुकसान पहुंचा था यह सभी को मालूम है. लेकिन इसबार चाचा-भतीजे के बीच पहले जैसी कडुवाहट नहीं है, पिछले साढ़े चार सालों में काफी बर्फ पिघली है. अखिलेश भी अब चाचा शिवपाल और उनकी पार्टी को सम्मान देने की बात कर रहे हैं, शिवपाल भी समझ चुके हैं कि उनका राजनीतिक भविष्य सपा के साथ ही जुड़ा हुआ है, वह भी सपा की हर तरह से मदद की बात कर रहे हैं, बल्कि हाल ही में एक टीवी चैनल के प्रोग्राम में तो वह सपा को लेकर काफी भावुक भी हो गए थे, यहाँ तक कि अपनी पार्टी प्रस्पा के सपा में विलय की भी बात की थी. बहरहाल चाचा-भतीजे के मनमुटाव कम होना भी अखिलेश के आत्मविश्वास के बढ़ने की एक वजह है.

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इसके अलावा भी अखिलेश के चैनल में कई और छोटी-छोटी पार्टियां हैं जिनमें आम आदमी पार्टी भी शामिल है जो पिछले कई सालों से यूपी में अपनी राजनीतिक ज़मीन को तलाश रही है. आप सांसद संजय सिंह इस बारे में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं, उनकी अखिलेश से मुलाकात भी हो चुकी है. अगर आप गौर करें तो पिछले कई महीनों से केंद्र हो या प्रदेश सरकार, एक ही मुद्दे पर दोनों पार्टियां भाजपा को घेरती नज़र आईं हैं. अगर ‘आप’ से सपा का गठबंधन मूर्त रूप ले लेता है तो समाजवादी पार्टी को और भी ज़्यादा मज़बूती मिलेगी।

इतनी सारे सकारात्मक कारणों के बावजूद अखिलेश यादव और उनकी पार्टी को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके सामने प्रचंड बहुमत वाली योगी सरकार है. केंद्र में मोदी सरकार है, पैसा है, पावर है, अमित शाह जैसा चाणक्य है, मोदी जैसा करिश्माई नेता है, बड़ा और मज़बूत काडर है. अखिलेश के लिए सत्ता में वापसी असंभव नहीं तो मुश्किल ज़रूर है क्योंकि राजनीति में असंभव तो कुछ भी नहीं। जनता जनार्दन सबसे ऊपर है, वही अखिलेश की सत्ता वापसी के सपने को पूरा भी कर सकती है और धराशायी भी. अब देखना यह है कि अखिलेश के ओवरकॉन्फिडेंस में कितना कॉन्फिडेंस है.

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