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राहुल को लेकर इतनी बेचैनी क्यों?

आर्टिकल/इंटरव्यूराहुल को लेकर इतनी बेचैनी क्यों?

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तौक़ीर सिद्दीक़ी
लोकप्रियता के मामले में भले ही प्रधानमंत्री मोदी नेता विपक्ष राहुल गाँधी से कहीं आगे नज़र आते हों लेकिन अगर चर्चाओं, विशेषकर राजनीतिक चर्चा की बात करें तो राहुल गाँधी उनसे ज़्यादा पीछे नहीं हैं बल्कि कई मायनों में उनसे आगे ही दिखाई देते हैं. दिल्ली विधानसभा का चुनाव भले ही आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच बताया या दिखाया जा रहा है लेकिन हर चैनल पर, फिर वह चाहे टीवी चैनल हों या फिर यू ट्यूब चैनल, चर्चा में राहुल गाँधी ही हैं. राहुल गाँधी ने सबसे पहले सीलमपुर में रैली करके चुनाव प्रचार शुरू किया और चर्चा का केंद्र बने. कहा गया कि कांग्रेस पार्टी इस बार आम आदमी पार्टी को उखाड़ फेंकने के लिए कमर कास चुकी है। इस चुनावी रैली के बाद राहुल गाँधी दिल्ली चुनाव से दूर दिखाई दिए, बताया गया कि वह बीमार हैं. तब भी चर्चाओं का एक दौर चलने लगा. जो लोग सीलमपुर की रैली के बाद कांग्रेस द्वारा आप को उखाड़ने की बात कह रहे थे, अब कहने लगे कि कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं ने अपने कदम पीछे कर लिए हैं. कुछ कहने लगे कि इंडिया ब्लॉक् के सहयोगियों के दबाव में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के लिए रास्ता छोड़ दिया तो कुछ कहने लगे कि केजरीवाल को हराने के लिए राहुल, प्रियंका और खड़गे ने चुनाव से दूरी बना ली है.

यह वही लोग हैं जो दिल्ली चुनाव में कांग्रेस पार्टी को कोई भाव नहीं दे रहे हैं लेकिन इन्ही लोगों को सबसे ज़्यादा चिंता इस बात की है कि राहुल गाँधी चुनावी रैलियां क्यों नहीं कर रहे हैं. इन लोगों का कहना है कि अगर राहुल गाँधी सच में बीमार हैं तो प्रियंका गाँधी और खड़गे को तो दिल्ली के चुनाव प्रचार में उतरना ही चाहिए। अब पता नहीं किस वजह से यह लोग राहुल गाँधी के चुनाव प्रचार में न उतरने को लेकर इतना परेशान हैं जबकि ये लोग यह भी मानते हैं कि दिल्ली में कांग्रेस पार्टी का इस बार भी खाता नहीं खुलेगा। अगर ऐसा है तो राहुल के लिए या फिर कांग्रेस के लिए परेशान होने की क्या ज़रुरत, जबकि वो मुकाबले में ही नहीं है. खैर राहुल गाँधी ने नई दिल्ली की बाल्मीकि बस्ती में मंदिर में माथा टेककर 28 जनवरी को दोबारा चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है. अब कांग्रेस पार्टी और राहुल गाँधी के इन तथाकथित हितैषियों का सवाल है कि राहुल गाँधी ने इतनी देर क्यों लगाई। क्या कांग्रेस पार्टी ने बहुत देर कर दी है? बात फिर वही कि आप लोगों के हिसाब से कांग्रेस पार्टी जब लड़ाई में ही नहीं है तो फिर जल्दी और देरी से क्या फर्क पड़ता है. बहरहाल यह वो लोग हैं जिनका काम राहुल गाँधी की चर्चा के बिना चलता।

अब बात थोड़ी कांग्रेस पार्टी की कर लेते हैं तो सबसे बड़ी बात यह कि कांग्रेस पार्टी यह चुनाव सरकार बनाने या बनवाने के लिए नहीं लड़ रही है. कांग्रेस पार्टी आम आदमी पार्टी को चुनाव हराने के लिए चुनाव लड़ रही है. इस बार उसका पहला दुश्मन भाजपा नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी है. उसे दिल्ली से आप को हटाना है क्योंकि आप को हटाने के बाद ही उसके लिए दिल्ली में कोई रास्ता बनता हुआ दिखाई देगा। दिल्ली में आप की कमज़ोरी का मतलब पंजाब, हरियाणा और गोवा में भी कमज़ोर होना। हरियाणा चुनाव में कांग्रेस पार्टी 12 या 13 सीटें बहुत कम मार्जिन से हारी। कांग्रेस पार्टी का यह मानना है कि आम आदमी पार्टी की वजह से वो यह सीटें नहीं मिलीं और सत्ता उसके हाथ में आते आते रह गयी. गोवा में भी आप की सेंधमारी से कांग्रेस कमज़ोर हुई. पंजाब में तो आप ने कांग्रेस से सत्ता ही छीन ली. तो दिल्ली से आप को हटाने में अगर कांग्रेस कामयाब हुई तो उसे इन प्रदेशों में भी फायदा मिलेगा। दिल्ली गंवाने से AAP की चुनावी फंडिंग पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। दिल्ली की सत्ता के सहारे ही अर्जित किये गए फण्ड से आप ने पंजाब का चुनाव लड़ा था, हरियाणा में कांग्रेस की राह में रोड़े अटकाए। कांग्रेस पार्टी को यह बात अच्छी तरह मालूम है कि चुनाव में इलेक्शन फण्ड का कितना महत्त्व है. भाजपा से कई मायनों में वह इसलिए भी पीछे रह जाती है क्योंकि चुनाव फण्ड के मामले में वो भाजपा से बहुत पिछड़ गयी है.

दिल्ली चुनाव में राजनीतिक पंडित भले कांग्रेस पार्टी को सिरे से नकार रहे हों लेकिन हकीकत यह है कि लगभग 10-12 सीटों पर कांग्रेस पार्टी इस बार बहुत मज़बूती से लड़ती हुई नज़र आ रही है। इन सीटों पर उसने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है जिनमें कुछ पर उसे सीधे मुकाबले में बताया जा रहा है , ऐसे में 8 फरवरी को सीटें हासिल करने वाली तालिका में कांग्रेस पार्टी भी नज़र आये तो कोई हैरानी वाली बात नहीं होनी चाहिए। यह 10-12 सीटें वह हैं जहाँ अल्पसंख्यक एक निर्णायक भूमिका में हैं, इसके अलावा कई सीटों पर दलित वोट निर्णायक साबित होते हैं और इसबार यह समुदाय कांग्रेस और राहुल की बात करता हुआ नज़र आता है। यही वजह है कि चुनाव प्रचार के अपने दूसरे चरण में राहुल गाँधी ने महर्षि वाल्मीकि मंदिर जाकर दर्शन के साथ शुरुआत की, यही नहीं, कांग्रेस नेता ने बाल्मीकि समाज के लोगों से घर घर जाकर मुलाकात की और संदीप दीक्षित के लिए वोट करने की अपील। संदीप दीक्षित दिल्ली में लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकी शीला दीक्षित के बेटे हैं और कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता भी. उन्होंने अपने विरोधी केजरीवाल के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है. केजरीवाल ने भी इस बात को माना कि सर्वे में उनकी सीट सौरभ भारद्वाज जितनी मज़बूत नहीं दिखाई देती।

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