- बाहरी और नए उम्मीदवारों को लेकर पार्टियों में अंदरूनी कलह, विरोध
पारुल सिंहल
आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक दलों द्वारा चुने जा रहे उम्मीदवारों पर जमकर हंगामा मच रहा है। हाल ही में कंगना रनौत को लेकर सोशल मीडिया पर कांग्रेस प्रवक्ता द्वारा की गई टिप्पणी इसका ताजा उदाहरण है। हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता ने अपने अकाउंट के हैक होने की बात कह कर इस मुद्दे को विराम देने के काफी प्रयास किए लेकिन, यह बात यहीं खत्म नहीं हुई। भाजपा द्वारा मंडी से कंगना रनौत को टिकट दिए जाने को लेकर कई जगह विरोध दर्ज करवाए जा रहे हैं। भाजपा द्वारा मेरठ हापुड़ लोकसभा सीट से अरुण गोविल को टिकट दिए जाने पर भी ऐसा ही माहौल दिखाई दे रहा है। हाल ही में सपा द्वारा भी इसी सीट पर भानू प्रताप को टिकट दिया गया था जिसका भरपूर विरोध दर्ज हुआ। चर्चा है कि इसी विरोध के चलते पार्टी को इस सीट पर प्रत्याशी बदलना पड़ रहा है। प्रत्याशियों को लेकर चली विरोध की इस लहर को लेकर राजनैतिक विश्लेषण अलग ही समीकरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
मुद्दों पर नहीं बात, कैसे होगा विकास
बाहरी प्रत्याशियों को लेकर स्थानीय लोग काफी पसोपेश में है। उनका मानना है कि अपने क्षेत्र में ना रहने वाले प्रत्याशी यहां के मुद्दों से अंजान हैं। क्षेत्र के विकास के लिए आने वाले समय में वह क्या प्रयास करेंगे इस भी शंका बनी हुई है। प्रत्याशियों के क्षेत्र में ना रहने पर इसका सीधा प्रभाव क्षेत्र के विकास पर पड़ेगा। उम्मीदवार के जीतने के बाद क्षेत्र में उनकी उपलब्धता को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं हाल ही में भाजपा के मेरठ हापुड़ लोकसभा सीट के उम्मीदवार अरुण गोविल का बयान भी काफी चर्चाओं में रहा। जिसमें उन्होंने पत्रकारों द्वारा जीतने के बाद मेरठ में उपलब्ध रहने के सवाल पर स्पष्ट जवाब दिया था कि यह तो समय ही बताएगा। उनका यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल भी हुआ। राजनैतिक पंडित मानते हैं कि मुंबई में रहने वाले अरुण गोविल को मेरठ के मुद्दों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। अरुण गोविल ने भी इस बारे में स्पष्ट कहा कि वह मुद्दों पर नहीं बल्कि संवेदनशीलता के आधार पर चुनाव लड़ रहे हैं। यानी राम लहर की गंगा में टीवी के राम की राजनीति चमकने का प्रयास भाजपा द्वारा किया गया ह। जिसे लेकर स्थानीय लोगों में काफी विरोध देखा जा रहा है। ऐसा ही हाल मंडी से टिकट लेने वाली कंगना रनौत का भी है।
जमीनी कार्यकर्ता हुए दरकिनार
राजनीतिक दलों द्वारा बाहरी और अनुभवहीन प्रत्याशियों को टिकट देने पर विरोध का एक मुख्य कारण जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार करना है। विश्लेषकों के अनुसार पार्टी के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं के तौर पर जुटे वरिष्ठ नेता काफी निराश और हतोत्साहित हैं। वहीं स्थानीय कार्यकर्ताओं में भी नए और बाहरी प्रत्याशियों के चाल चलन, उनके विचारों के साथ ही उनकी सोच को लेकर भी तनाव व्याप्त है। लंबे समय से लोगों को बांध कर रखने वाले स्थानीय नेता पार्टी के इस फैसले से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
बाहरी उम्मीदवार पर क्यों है भरोसा
विश्लेषकों के अनुसार राजनीति में इस बार थोक के भाव बाहरी प्रत्याशियों को चुने जाने के पीछे गहरी मंशा भी मानी जा रही है। इन चुनावों में सर्वाधिक बाहरी और अनुभवहीन लोगों को टिकट भाजपा ने दिए हैं। कयास है कि 400 सीटों पर जीत का दावा करने वाली भाजपा इन उम्मीदवारों के जरिए संविधान को साधने का प्रयास कर रही है। एक समीकरण के अनुसार भाजपा अनुभवहीन प्रत्याशियों को जिताकर उन्हें डमी के तौर पर प्रयोग करेगी। इसका बड़ा असर आने वाले समय में संविधान बदलने या नए नियम लागू करने पर देखा जा सकेगा।