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फैसले की घड़ी: कौन संभालेगा सुपर पावर की कमान?

आर्टिकल/इंटरव्यूफैसले की घड़ी: कौन संभालेगा सुपर पावर की कमान?

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तौक़ीर सिद्दीक़ी
अमेरिका का नया राष्ट्रपति कौन होगा, सुपर पावर की बागडोर कौन संभालेगा, डोनाल्ड ट्रंप या कैमिला हैरिस, फैसले का दिन आ गया है. 47वें अमेरिकी राष्ट्रपति को चुनने के लिए मतदान कुछ ही घंटों में शुरू हो जाएगा। 5 नवंबर को नियमित चुनाव से पहले 79 करोड़ लोगों ने मतदान किया है, बाकी मतदाता आज अपना पसंदीदा उम्मीदवार चुनेंगे। संयुक्त राज्य अमेरिका में नए राष्ट्रपति के चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प जीतते हैं, तो वह संयुक्त राज्य अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति होंगे जो हार के बाद अपने दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जायेंगे। किसी भी उम्मीदवार को जीतने के लिए 538 इलेक्टोरल वोटों में से कम से कम 270 वोटों की आवश्यकता होती है, रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेट कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर होने की बातें चल रही है। दोनों ही उम्मीदवार अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। इनके दावों की सफलता में 7 स्विंग स्टेट्स निर्णायक होंगे, ये वो स्टेट्स हैं जो न तो डेमोक्रेट के समर्थक समझे जाते हैं और न ही रिपब्लिकन के, ऐसे में पिछले एक हफ्ते से ट्रम्प हों या कमला हैरिस दोनों ही इन स्टेट्स में अपनी पकड़ मज़बूत बनाने के लिए पूरी जान झोंके हुए हैं।

मतदान की बात करें तो ज्यादातर मतदान केंद्रों पर शाम 6 बजे से देर रात तक मतदान जारी रह सकता है। यानी जब तक अमेरिका में मतदान खत्म होगा, तब तक भारत में अगला दिन शुरू हो जाएगा। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान खत्म होते ही वोटों की गिनती शुरू हो जाती है, यहाँ भारत की तरह कई दिन का इंतज़ार नहीं करना पड़ता। वोटों की गिनती खत्म होने पर पहले पॉपुलर वोट का विजेता घोषित किया जाता है, लेकिन हर बार यह जरूरी नहीं है कि जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा पॉपुलर वोट मिले हैं, वही राष्ट्रपति पद का विजेता हो। क्योंकि अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव असल में पॉपुलर वोट से नहीं बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज द्वारा होता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज की भूमिका सबसे अहम होती है। इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिका के हर राज्य के लिए तय इलेक्टर्स की संख्या होती है। हर राज्य को अमेरिकी प्रतिनिधि सभा और अमेरिकी सीनेट में उसके प्रतिनिधियों की संख्या के हिसाब से इलेक्टर्स मिलते हैं। वर्तमान में कैलिफोर्निया राज्य में सबसे अधिक 55 इलेक्टर हैं, जबकि सबसे कम 3 इलेक्टर वोट व्योमिंग समेत अमेरिका के 6 राज्यों में हैं। हालांकि, 7 स्विंग स्टेट सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ज्यादातर राज्यों के विपरीत इनका रुख पहले से स्पष्ट नहीं होता और यही वजह है कि इन स्विंग स्टेट को प्रमुख ‘बैटल ग्राउंड’ माना जाता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से उपराष्ट्रपति कमला हैरिस राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं, जबकि मुख्य विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी की ओर से पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनावी मैदान में हैं। इन दो मुख्य प्रतिद्वंद्वियों के अलावा 3 अन्य उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इसमें सबसे प्रमुख नाम ग्रीन पार्टी की 74 वर्षीय महिला उम्मीदवार जिल स्टीन का है, जिल इससे पहले दो बार राष्ट्रपति चुनाव लड़ चुकी हैं। लिबरल पार्टी ने सबसे युवा उम्मीदवार चेस ओलिवर को मैदान में उतारा है। ओलिवर की उम्र 39 साल है, वे इराक युद्ध का विरोध करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ताओं में से एक हैं। इसके अलावा 71 वर्षीय स्वतंत्र उम्मीदवार कर्नल वेस्ट भी राष्ट्रपति पद की दौड़ में हैं। फिलहाल इस बार चुनाव में मुकाबला बहुत नज़दीकी होने के दावे किये जा रहे हैं, जो सर्वे आ रही हैं वो भी यही बात कर रहे हैं ऐसे में मैच बराबर होने की सम्भावना के बारे में भी बातें हो रही हैं लेकिन अमेरिका में आजतक ऐसा कभी हुआ नहीं है कि रिपब्लिकन या डेमोक्रेट उम्मीदवारों के बीच चुनावी मुकाबला बराबरी का रहे। लेकिन अगर कोई ऐसी स्थिति बनती है कि किसी भी उम्मीदवार को ज़रूरी 270 इलेक्टोरल कॉलेज वोट हासिल नहीं न हो पाएं तो अमेरिकी संसद का निचला सदन यानी प्रतिनिधि सभा राष्ट्रपति का फैसला करती है।

वोटिंग पैटर्न की बात करें तो अमेरिका के ज़्यादातर राज्यों का रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के प्रति झुकाव पहले से पता होता है. वोटिंग के बाद सबसे पहले इन राज्यों के नतीजे घोषित किए जाते हैं. लेकिन कुछ अहम राज्यों में चुनाव नतीजे घोषित होने में समय लग सकता है जिन्हें स्विंग स्टेट कहा जाता है. 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में 7 अहम राज्य हैं- पेनसिल्वेनिया, नॉर्थ कैरोलिना, जॉर्जिया, मिशिगन, एरिजोना, विस्कॉन्सिन और नेवादा और इन स्टेट्स के कुल इलेक्टोरल कालेज वोटों की संख्या 93 होती है. ऐसे समय में जब चुनाव को काफी मुश्किल और नज़दीकी माना जा रहा है तो स्विंग स्टेट्स के नतीजे काफी अहम साबित होते हैं. यही वजह है कि हैरिस और ट्रंप ने चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में इन राज्यों में कल रात तक डेरा डाल रखा था. बहरहाल अब अमरीकी लोगों के लिए फैसले का वक़्त आ गया है, जिन्होंने पहले वोटिंग कर रखी है और जो आज वोट करेंगे वो अगले चार साल के लिए अमरीका की कमान किसे सौंपने वाले हैं, एक भारतीय मूल की महिला को या फिर अपनी उलूल जुलूल हरकतों और बयानों के लिए मशहूर डोनाल्ड ट्रम्प को जो संयोग से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घनिष्ट मित्रों में से हैं, इतने घनिष्ट कि मोदी जी ने पिछले चुनाव में अमरीका जाकर अबकी बार ट्रम्प सरकार का नारा भी लगाया, ये अलग बात है कि उस नारे का अमरीकियों पर ज़्यादा असर नहीं पड़ा और ट्रम्प चुनाव हार गए. शायद इसीलिए पीएम मोदी अपने दोस्त की मदद करने इस बार नहीं गए.

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