चुनावी माहौल में जब कोई नेता अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वाइन करता है तो तरह तरह के कारण बताता है, कभी कभी कुछ ऐसी वजह बताता है कि सुनने में भी अजीब लगता है. समाजवादी पार्टी के पूर्वांचल के वरिष्ठ नेताओं में से एक नेता नारद राय जो पिछले 40 वर्षों से समाजवादी पार्टी जुड़े हुए थे, आज अलग हो गए. अलग होने की वजह ये रही कि कल जब अखिलेश यादव अफ़ज़ाल अंसारी के लिए आयोजित चुनावी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे तब उन्होंने उनका नाम नहीं लिया। नारद राय ने इसे अपना अपमान समझा और शाम को बगावती तेवर दिखाने के बाद आज अपने एक्स अकाउंट के माध्यम से समाजवादी छोड़ भाजपा में शामिल होने की जानकारी दी.
नारद राय ने कल ही अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की खूब तारीफ की थी, नारद राय ने अमित शाह से मुलाकात की एक तस्वीर भी साझा की थी. शाम को मिले बदलाव के संकेतों को नारद राय ने सुबह कन्फर्म कर दिया। नारद राय का कहना है कि पूर्वांचल में भाजपा की जीत के लिए अब अपना पूरा ज़ोर लगा देंगे।
नारद राय ने अपने इस कदम के पीछे अपने दर्द को साझा किया और कहा कि मुलायम सिंह ने उन्हें अपना बेटा समझते थे लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हें भी नहीं छोड़ा, उनकी मर्ज़ी के बिना उन्हें ज़बरदस्ती अध्यक्ष पद से हटा दिया। नारद राय ने कहा कि वो पिछले सात साल से पार्टी के अंदर अपमान का घूँट पीते आ रहे हैं. नारद राय ने कहा कि 2017 में अखिलेश ने उनका टिकट काट दिया, इसके बाद 2022 में टिकट तो दिया मगर हमारी हार का भी इंतज़ाम कर दिया। मेरे चुनाव प्रचार में पार्टी को कोई नेता नहीं आया. नारद राय ने कहा कि अखिलेश यादव अंसारी परिवार के दबाव में हैं, इसी वजह से हमारा टिकट भी काटा जबकि पहले वो कह रहे थे कि आपको चुनाव लड़ना है. नारद राय ने कहा कि मैं अंसारी परिवार का दरबारी कभी नहीं बन सकता।नारद राय ने कहा कि इससे ज्यादा अपमान क्या हो सकता है कि संगठन के लोगों ने मंच पर हमारा नाम ही नहीं दिया. अखिलेश यादव अपने सम्बोधन में हमारा नाम नहीं लेते.उन्हें मेरा नाम याद नहीं रहता तो फिर हम अखिलेश यादव को याद करके क्या करेंगे?