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इस जीत को मैं क्या नाम दूँ?

आर्टिकल/इंटरव्यूइस जीत को मैं क्या नाम दूँ?

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अमित बिश्नोई
लोकसभा चुनाव संपन्न हो गया, चुनावी नतीजे आ गए, भाजपा फिसल गयी, कांग्रेस उछल गयी, एग्जिट पोल धराशायी हो गए फिर भी NDA गठबंधन 292 सीटों के साथ बहुमत से आगे पहुँच गया है, सरकार बनाने की तैयारी शुरू हो चुकी है, जोड़ तोड़ की ख़बरें भी चल रही हैं, नतीजों के बाद चंद्रबाबू नायुडु और नितीश कुमार सबके दुलारे बने हुए हैं क्योंकि नई सरकार के यही दो किंग मेकर बनने वाले हैं, इनका मन डोला तो बनती हुई सरकार भी डोल सकती है. अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या ये सरकार भी वही 56 इंच वाली सरकार होगी या फिर एक ऐसी सरकार जिसकी कुर्सी के दो पाए कभी भी किसी भी समय हिल सकते हैं. अगर हमें मोदी जी के नेतृत्व में बनने वाली आगामी सरकार को नाम देना हो तो क्या दूँ? अबकी बार बस नैया पार, अबकी बार फिर मोदी सरकार की जगह NDA सरकार या फिर अबकी बार खिचड़ी सरकार?

फ़िलहाल तो मानकर चला जाय कि मोदी जी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनकर नेहरू की बराबरी (number of terms) करने जा रहे हैं. भारतीय राजनीती के इतिहास में लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले वो दूसरे PM होंगे। जी हाँ, पीएम नंबर दो. पहले नंबर पर जाने के लिए उन्हें पांच साल अभी इंतज़ार करना होगा , पहले तो उन्हें मार्गदर्शक मण्डल वाला नियम बदलना पड़ेगा जो खुद उन्होंने बनाया और फिर 2029 में अपनी चौथी जीत हासिल करनी होगी। अभी इसमें लम्बा अंतराल है. 2029 तक क्या होता है कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि अब भाजपा के अंदर ही कोई नया नेतृत्व उभर आये इससे इंकार नहीं किया जा सकता। सम्भावनाये डोलने लगी हैं, खुसफुसाहट होने लगी है, सरगोशियां होने लगी हैं, नाराज़गी की आवाज़ भी अब तेज़ होने लगी है। गडकरी के रूप में नया नाम भी सामने आया है जो एक स्वीकार्य नेता के रूप में पहचाने जाते हैं और जिनके सिर पर आरएसएस का आशीर्वाद भी रहता है.

नतीजे मोदी जी के लिए अच्छे नहीं आये हैं, वो कमज़ोर हुए हैं, जनता में भी और अब पार्टी में भी. भाजपा का 240 सीटों पर सिमटना साफ़ तौर पर दिखा रहा है कि लोगों ने बदलाव के लिए वोट किया है, जनता मोदी जी और भाजपा दोनों से नाराज़ है और इसका सबसे बड़ा सबूत उत्तर प्रदेश के नतीजे हैं। ये ऐसे नतीजे हैं जिनकी भाजपा ने, मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने कल्पना तक नहीं की होगी। जो राम को लाये हैं हम उनको लाएंगे, लेकिन राम जी नाराज़ दिखे , उन्होंने उस अयोध्या में साथ नहीं दिया जिसके सहारे मोदी जी ने संसद में 400 पार का नारा दे दिया था, ये भी अपने आप में इतिहास ही था कि किसी प्रधानमंत्री ने कितनी सीटें जीतेगा संसद में इसका दावा किया हो. क्या मोदी जी ने इसकी कल्पना की होगी कि जिस अयोध्या में उन्होंने भव्य राम मंदिर बनवाया, राम लला की प्राण प्रतिष्ठा करवाई, वही राम अयोध्या में उससे रूठ गए. उत्तर प्रदेश में 75 सीटों का दावा करने वाले मोदी-योगी और अमित शाह आज 36 सीटों पर सिमटकर कैसा महसूस कर रहे होंगे।

ये सब तो अपनी जगह, मोदी जी अपने क्षेत्र वाराणसी के ही चुनावी नतीजों को ले लीजिये। 10 लाख के मार्जिन से जीत का लक्ष्य फिसलकर डेढ़ लाख पर आ टिका। पिछली बार 63.62 प्रतिशत हासिल करने वाले अवतारी पुरुष का मतप्रतिशत घटकर 54.24 पर आ गया. लोकप्रियता में लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट। मोदी जी इसे क्या कहेंगे, इसी वाराणसी में गंगा पर सवार होकर उन्होंने कहा था कि उन्हें माँ गंगा ने गोद ले लिया है, यही पर उन्होंने पहली बार खुलासा किया था कि उन्हें परमात्मा ने भेजा है. ऐसे में तो इसबार उन्हें और भी ऊंचाइयां छूनी चाहिए थीं लेकिन यहाँ तो मामला बदला हुआ नज़र आया. कल्पना कीजिये कि अगर अजय राय की जगह प्रियंका गाँधी मोदी जी के खिलाफ मैदान में होतीं तो फिर क्या होता, तब नतीजा उनके लिए काफी भयानक भी हो सकता था. वाराणसी का नतीजा भी साफ़ तौर दिखाता है बनारस का एक बहुत बड़ा तबका जिसमें सभी वर्ग और समुदाय के लोग शामिल हैं, मोदी जी से नाराज़ थे। वाराणसी का चुनावी सिर्फ इसलिए नहीं बदला कि सपा और कांग्रेस के वोटर एक साथ हो गए, अगर ऐसा होता अजय राय को सिर्फ 33 प्रतिशत वोट ही मिलते लेकिन अजय राय को 40 प्रतिशत से ज़्यादा वोट मिला है, इसका मतलब लगभग आठ प्रतिशत वोट सपा और कांग्रेस से अलग का है, निश्चित ही इसमें नाराज़ भाजपाइयों का भी वोट शामिल होगा।

मोदी जी ने इस चुनाव का आगाज़ NDA 400 पार और भाजपा 370 पार के नारे से शुरू किया था जिसका अंत 292 और 240 पर हुआ. यकीनन ये मोदी जी के सपनों को धराशायी करने वाले नतीजे हैं, ये वो नतीजे हैं जिनका अंदाजा राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की वो एजेंसियां भी नहीं लगा पाईं जिन्होंने एग्जिट पोल्स को अंजाम दिया था, उनकी विश्वसनीयता पर एक बड़ा सा सवालिया निशान लग गया है और कहीं न कहीं मोदी जी की विश्वसनीयता पर भी एक विस्मयादिबोधक चिह्न तो लग ही गया है जो उनकी भविष्य की राजनीती में बदल उथल पुथल कर सकता है। खैर जीत तो मिल ही गयी है, भले ही वो मोदी (मोदी मतलब भाजपा) की न होकर NDA की हो. बहरहाल मुझे तो समझ में नहीं आया कि इस जीत को क्या नाम दूँ, अब आप लोग अपने हिसाब से इस जीत को कोई नाम दें तो बेहतर रहेगा।

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