मेरठ। नगर निकाय चुनाव में इस बार सभी प्रमुख दल 2024 के आम चुनाव को फोकस कर अपनी तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में कोई भी दल प्रत्याशी चयन में चूक नहीं करना चाहता है।
सपा ने निकाय चुनाव 2023 में अपनी रणनीति को बदल दिया है। अब सपा निगम चुनाव में ‘माय’ यानी मुस्लिम और यादव के स्थान पर ‘बम’ यानी ब्राहमण और मुस्लिमों को टिकट बांट रही है। अखिलेश यादव का यह ‘बम’ कार्ड कितना सटीक होगा यह तो 13 मई को पता चलेगा।
सपा को मुस्लिमों व यादवों को तरजीह देने वाली पार्टी मानी जाती रही है। लेकिन इस बाद महापौर पद पर उसने ब्राह्रमण व मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। अखिलेश यादव ने दो-दो दलित और कायस्थ प्रत्याशी उतारकर राजनीति की अपनी शतरंजी चालों का भी आभास करा दिया है। वहीं, यादव प्रत्याशी न उतारने के आरोप लगने पर गाजियाबाद में नीलम गर्ग के स्थान पर पूनम यादव को अपना महापौर पद का अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया है।
भाजपा और बसपा ने घोषित किए 10-10 प्रत्याशी
भाजपा और बसपा ने जहां महापौर के अपने 10-10 प्रत्याशी घोषित किए हैं, वहीं सपा ने सभी 17 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। सपा सामाजिक न्याय पर जोर देती है। देश की 60 फीसदी संपत्ति पर 10 फीसदी सामान्य वर्ग का कब्जा है। इसके बावजूद टिकट वितरण में उसने अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए सोशल इंजीनियरिंग का भी पूरा ख्याल रखा है।
इन जिलों में ब्राहमण प्रत्याशी
लखनऊ, कानपुर, अयोध्या और मथुरा-वृंदावन नगर निगम में महापौर पद के लिए ब्राह्मण प्रत्याशी दिए हैं। इनमें से कुछेक टिकट तो ऐसे हैं, जो सिर्फ भावी राजनीतिक संदेश देने के लिए ही दिए गए हैं। मुरादाबाद, अलीगढ़, फिरोजाबाद और सहारनपुर में मुस्लिम प्रत्याशी दिए हैं। इन नगर निगमों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी होने के कारण राजनीतिक विश्लेषक भी सपा के वहां मुस्लिम प्रत्याशी उतारने के फैसले को सही ठहरा रहे हैं। हालांकि, जीत-हार तो अन्य समीकरणों पर भी निर्भर करेगी।
आगरा और झांसी में दलित पर दांव
आगरा व झांसी में दलित प्रत्याशी देकर सपा हाईकमान ने स्पष्ट किया है कि उसकी रणनीति बसपा के नजदीक आने की नहीं, बल्कि उसके वोट बैंक माने जाने वाले दलितों को अपने साथ लाने की है। आम तौर पर कायस्थ भाजपा वोट बैंक माने जाते हैं, पर बरेली में राजनीतिक तौर पर अपेक्षाकृत कम पहचाने जाने वाले वाले संजीव सक्सेना को टिकट देकर कायस्थ समाज के बीच भी पैठ बनाने का प्रयास किया है। प्रयागराज में भी यही प्रयोग किया है। इसके अलावा एक-एक गुर्जर, कुर्मी और क्षत्रिय प्रत्याशी उतारकर सामाजिक समीकरण साधने का काम किया है।
गाजियाबाद में यादव प्रत्याशी
सपा के महापौर पद पर कहीं से यादव प्रत्याशी न उतारने पर इसके खिलाफ सोशल मीडिया पर अभियान देखने को मिला। गाजियाबाद में प्रत्याशी का बदलना शायद इसी का नतीजा है। दिल्ली विश्विविद्यालय के शिक्षक डॉ. लक्ष्मण कहते हैं कि सपा की मेयर पद की सूची देखने से लगता है कि पार्टी की नजर निकाय चुनाव से ज्यादा लोकसभा चुनाव 2024 पर है। सामाजिक न्याय की धुर सर्मथक सपा को सामान्य वर्ग से भी कोई परहेज नहीं है।