नए वित्त वर्ष की पहली तिमाही में शहरी क्षेत्रों में नौकरियों की गुणवत्ता में सुधार तो हुआ है लेकिन यह वित्त वर्ष 20 के महामारी-पूर्व स्तर यानि कोविड से पहले तक अभी नहीं पहुँच पाया है। एक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतन और वेतनभोगी कामों में काम करने वाले लोगों की संख्या जनवरी-मार्च तिमाही में 48.7 प्रतिशत की तुलना में बेहद मामूली बढ़कर 49 प्रतिशत हो गई, जो चार तिमाहियों में सबसे ज़्यादा है। शहरों में महिलाओं का प्रदर्शन पुरुषों से बेहतर रहा, जबकि महिला बेरोज़गारी दर पिछली तिमाही के 8.5 प्रतिशत से बढ़कर Q1FY25 में 9 प्रतिशत हो गई।
नियमित वेतन वाली नौकरियों में काम करने वाली महिलाओं का अनुपात पिछली तिमाही के 52.3 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 54 प्रतिशत हो गया, जबकि वेतनभोगी नौकरियों में काम करने वाले पुरुषों का अनुपात अप्रैल-जून में 47.5 प्रतिशत से घटकर 47.4 प्रतिशत हो गया। सेवा क्षेत्र की नौकरियों में कार्यरत महिलाओं की संख्या भी लगभग दो वर्षों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई, जिसमें 64.2 प्रतिशत सेवा क्षेत्र की नौकरियों में कार्यरत हैं।
हालांकि, महामारी से पहले की अवधि से तुलना करने पर पता चलता है कि औपचारिक या नियमित वेतन वाले काम के मामले में देश को अभी भी लंबा रास्ता तय करना है। उदाहरण के लिए, वित्त वर्ष 20 की पहली तिमाही में, 50 प्रतिशत लोग नियमित वेतन वाले काम में कार्यरत थे, जबकि Q1FY25 में यह संख्या 49 प्रतिशत थी। महिलाओं के लिए स्थिति बहुत खराब हो गई है।
नियमित वेतन या वेतन वाली नौकरियों में कार्यरत महिलाओं का अनुपात Q1FY20 में 58.3 प्रतिशत था, जो चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही की तुलना में लगभग चार प्रतिशत अधिक है। नियमित और वेतनभोगी काम से दूर जाने से महिलाओं की कमाई की क्षमता भी कम होने की संभावना है।