तौक़ीर सिद्दीक़ी
सिडनी टेस्ट सिर्फ ढाई दिन में ख़त्म हो गया, हम इसे टेस्ट क्रिकेट की बदहाली ही कह सकते हैं, या फिर ये भी कह सकते हैं कि रेड बॉल क्रिकेट पर सफ़ेद बाल क्रिकेट कल्चर हावी हो गया है, कम से कम इस भारतीय टीम के प्रदर्शन को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है. मैच के दूसरे दिन लग रहा था कि मैच बैलेंस है क्योंकि बचे हुए 4 विकटों से ये उम्मीद की जा रही थी कि लक्ष्य को 200 रनों तक पहुंचा सकते हैं लेकिन तीसरे दिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और सिर्फ 16 रन जोड़कर टीम इंडिया सिर्फ 157 रनों पर ढेर हो गयी और ऑस्ट्रेलिया को जीत के लिए 162 रनों का लक्ष्य मिला। इस लक्ष्य को कतई मुश्किल लक्ष्य नहीं कहा जा सकता, खासकर तब जब आपके पास बुमराह जैसा गेंदबाज़ भी उपलब्ध न हो. ऑस्ट्रेलिया ने लक्ष्य को चार विकेट खोकर आसानी से हासिल कर लिया और एक दशक बाद बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी पर कब्ज़ा करने में कामयाब हो गए.
बुमराह की कमी स्पष्ट रूप से नज़र आयी और ये भी नज़र आया कि टीम बुमराह पर कितना ज़्यादा निर्भर है. प्रसिद्ध कृष्णा जो पहली बार इस शृंखला में खेले, पहली पारी की तरह दूसरी पारी में अपने प्रदर्शन से दिखाया कि सीरीज़ में उन्हें बेंच पर बिठाये रखना टीम प्रबंधन की एक बड़ी गलती थी. प्रसिद्ध कृष्णा ने 14 रनों के अंदर तीन विकेट झटककर एक समय ऑस्ट्रेलिया को झकझोर दिया और कहीं न कहीं एक उम्मीद जगाई कि मैच में मिरेकल हो सकता है लेकिन जैसा कि कहते हैं न कि छोटा स्कोर अधिकांश मौकों पर छोटा ही साबित होता है, और यही हुआ, ऑस्ट्रेलिया लड़खड़ाई ज़रूर लेकिन स्कोर छोटा था, इसलिए उसे संभलने में ज़्यादा समय नहीं लगा और श्रंखला में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले ट्रेविस हेड और ऑस्ट्रेलिया की नई खोज आल राउंडर Beau Webster ने आसानी से कप्तान पैट कमिंस के उस सपने को पूरा कर दिया जो काफी समय से वो पाले हुए थे.
श्रंखला का समापन ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में 3-1 हुआ, हालाँकि सीरीज़ की शुरुआत टीम इंडिया ने एक बड़ी जीत के साथ की थी और पर्थ के पहले मैच में भारतीय बल्लेबाज़ी भी चली थी, यशस्वी और विराट के शतक निकले थे लेकिन उस मैच के बाद सभी बड़े बल्लेबाज़ों का बल्ला शांत हो गया, न सिर्फ बल्ला शांत हुआ, उनके खेलने और आउट होने के तरीकों पर सवाल उठने लगे, श्रंखला के चरम कप्तान रोहित शर्मा को बकौल उनके टीम हित में सिडनी टेस्ट से हटना पड़ा लेकिन नतीजे में कोई फर्क नहीं पड़ा. पिछले तीन टेस्ट मैचों में जैसा चल रहा था वही सब हुआ. ऊपर से कोढ़ में खाज वाली बात ये रही कि श्रंखला की एकमात्र सकारात्मक बात ‘बुमराह’ की फिटनेस पर संदेह पैदा हो गया. बुमराह को दुसरे दिन मैदान छोड़ कर जाना पड़ा, उन्होंने दूसरी पारी में गेंदबाज़ी भी नहीं की। उनकी फिटनेस के बारे में अभी तक कोई स्पष्टता अभी नहीं आयी है. हार के बाद प्रेस कांफ्रेंस में हेड कोच गौतम गंभीर ने भी बुमराह की फिटनेस के बारे में पूछे गए सवाल पर कोई साफ़ जवाब नहीं दिया।
टीम इंडिया को अगली टेस्ट सीरीज़ अब इंग्लैंड के खिलाफ खेलना हैं, इस बीच लम्बा अंतराल है. BGT श्रंखला ने भारतीय क्रिकेट को लेकर बहुत से सवाल छोड़े हैं, देखना होगा कि उन सवालों के जवाब क्या इस अंतराल में मिल पाएंगे, हालाँकि गौतम गंभीर ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस इनका जवाब देने की कोशिश की लेकिन ये जवाब संतुष्ट करने वाले नहीं थे, कुछ और बातें भी उन्होंने कहीं, खासकर बड़े खिलाडियों के डोमेस्टिक क्रिकेट खेलने की बात. देखना होगा कि वो अपनी इस बात पर कितना अडिग रहते हैं और बड़े नामों को छोटे मैचों में खेलने के लिए मजबूर करते हैं. बता दें कि विराट कोहली ने आखरी घरेलू मैच शायद 2012 में खेला था. ये अपने आप में साबित करता है कि नाम कमाने के बाद बड़े नाम वाले खिलाड़ी घरेलू क्रिकेट को कितना महत्त्व देते हैं. बदलते भारत में ये खिलाडी खुद को अब एक ब्रांड समझते हैं और ब्रांड के मतलब तो आप जानते ही हैं.