अमित बिश्नोई
बिहार की राजधानी पटना में कुछ तो राजनीतिक खिचड़ी पाक रही है. सभी को मालूम है कि बिहार विधानसभा के चुनाव जब नज़दीक आने लगते हैं, पटना में “पल्टासन” की ख़बरें पकने लगती हैं, पिछ्ला इतिहास भी इस बात की पुष्टि करता है. पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भी कुछ ऐसा ही हुआ था और फिर विधानसभा चुनाव के बाद भी हुआ. अब फिर कहा जा रहा है कि नितीश कुमार एकबार फिर पलटासन कर सकते हैं। पिछले दिनों राजद द्वारा डोरे डालने की बात भी हुई, लालू यादव अपने पुराने दोस्त का स्वागत करने के लिए तैयार दिख रहे हैं, बोल रहे हैं कि गिले शिकवे सब ख़त्म , दरवाज़े खुले हुए हैं। नितीश भी इंकार में जवाब नहीं दे रहे हैं.
आरजेडी के मुखिया के हालिया बयान कि नीतीश के लिए हमारे दरवाजे हमेशा खुले हैं, ने बिहार में अफवाहों का बाजार गर्म कर दिया है क्योंकि जेडी यू मुखिया को जब भी मौका मिलता है वे कलाबाजियां करने के लिए जाने जाते हैं। हालांकि नीतीश ने इस प्रस्ताव पर एक रहस्यमयी प्रतिक्रिया दी, लेकिन कोई भी राजनीतिक पंडित यह अनुमान नहीं लगा सकता कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है। लालू के नए प्रस्ताव के बारे में पत्रकारों के सवालों के जवाब में उन्होंने बस इतना ही कहा, “क्या बोल रहे हैं।”
चूंकि बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं इसलिए लालू के इस बयान कि नीतीश के लिए हमारे दरवाजे हमेशा खुले हैं और उन्हें भी हमारे लिए अपने दरवाजे खुले रखने चाहिए, ने इस बात पर चर्चाओं को फिर से हवा दे दी है कि क्या राज्य में कोई नया राजनीतिक पुनर्गठन होगा। जेडीयू नेता वैसे भी अपनी इच्छा से अपनी निष्ठा बदलने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने पिछले चार वर्षों में तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है जिसमें वैचारिक रूप से एक दूसरे से अलग-अलग सहयोगी शामिल हैं।
संयोग से राजद के मुखिया का यह बयान उनके बेटे और विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव द्वारा नीतीश के भारतीय जनता पार्टी में वापसी से इनकार करने के ठीक एक दिन बाद आया है। हालांकि बिहार में राजद में अंतिम फैसला लालू के हाथों में है और उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब नीतीश कथित तौर पर अपनी सहयोगी भाजपा से नाराज हैं। पिछले सप्ताह उपमुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता विजय सिन्हा ने बयान दिया था कि दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी को असली श्रद्धांजलि तब होगी जब बिहार में भाजपा की सरकार बनेगी। बाद में यह महसूस करते हुए कि वह ‘राजनीतिक रूप से गलत’ हो सकते हैं, सिन्हा ने स्पष्ट किया कि उनका मतलब “बिहार में एनडीए सरकार” से था। बाद में बिहार भाजपा के अन्य कई बड़े नेताओं की भी सफाई आई कि अगला चुनाव नितीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जायगा। लेकिन यह मूर्खता नीतीश को परेशान करने के लिए काफी थी, जो अमित शाह के हालिया बयान से पहले से ही नाराज चल थे. अमित शाह ने कहा था कि बिहार में सीएम उम्मीदवार के बारे में भाजपा संसदीय बोर्ड फैसला करेगा। शाह के बयान को नीतीश के लिए एक झटका माना जा रहा है, ऐसा हुआ तो वो महाराष्ट्र जैसी स्थिति का सामना कर सकते हैं, जहां सहयोगी एकनाथ शिंदे को हॉट सीट से बाहर कर दिया गया था।
अमित शाह के बयान के बाद नीतीश कुमार यह संकेत दे रहे हैं कि किसी को भी उनकी साझेदारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए। हाल ही में हुए चार घटनाक्रम इस बात की पुष्टि भी करते हैं। सबसे पहले, नीतीश ने हाल ही में नई दिल्ली का दौरा किया जहां उन्होंने दिवंगत मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि दी लेकिन भाजपा के किसी भी शीर्ष नेता से मुलाकात नहीं की। दूसरी बात 1 जनवरी को बिहार के नए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मुख्यमंत्री की मां को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देने के लिए नीतीश के पैतृक गांव का दौरा किया। आरिफ मोहम्मद खान और नीतीश दोनों पुराने दोस्त हैं। उनके इस दौरे पर भी विवाद हुआ जिसपर खान ने कहा कि हर बात में राजनीती ढूंढने की ज़रुरत नहीं होती. तीसरी बात नीतीश के साथ समय बिताने के तुरंत बाद आरिफ मोहम्मद खान जो लालू प्रसाद के साथ भी अच्छे संबंध रखते हैं, राबड़ी देवी को उनके पटना आवास पर उनके जन्मदिन की बधाई देने गए। चौथी बात , लालू का “नीतीश के लिए दरवाजे खुले रखने” का बयान नए राज्यपाल के दौरे के तुरंत बाद आया।
अभी तक राज्य में भाजपा के नेता कह रहे हैं कि एनडीए नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ेगा मगर नीतीश के मौजूदा तेवरों को उनके भगवा साथी के लिए एक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। हालाँकि इस बात में संदेह है कि नीतीश फिर से कोई उलटफेर करेंगे। जानकारों के मुताबिक नितीश कुमार का यह कड़ा रुख भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए एक कड़ा संदेश है. वह जताना चाहते हैं कि उनके साथ भाजपा का शीर्ष नेतृत्व महाराष्ट्र के एकनाथ शिंदे जैसा व्यवहार करने की गलती न करें। वैसे पिछली बार जब यह दोनों दल गठबंधन से हटे थे तब नितीश कुमार का यही आरोप था कि भाजपा उनके दल को तोड़ने की कोशिश कर रही थी. इन सारी बातों का सिरा कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ा हुआ लगता है इसीलिए कहा जा रहा है कि पटना में कुछ तो पक रहा है.