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तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस को भाजपा ने नहीं हराया!

आर्टिकल/इंटरव्यूतो मध्य प्रदेश में कांग्रेस को भाजपा ने नहीं हराया!

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अमित बिश्नोई
देश के पांच राज्यों के चुनाव हो चुके हैं, नतीजे भी आ चुके हैं जो केंद्र में सत्ताधारी भाजपा के लिए खुशखबरी लाये हैं वहीँ सत्ता में लौटने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका साबित हुए हैं. भाजपा ने न सिर्फ मध्य प्रदेश का अपना गढ़ बचाया बल्कि कांग्रेस से राजस्थान और छत्तीसगढ़ छीन लिए. नतीजे सिर्फ कांग्रेस के लिए ही नहीं बल्कि सभी के लिए शॉकिंग रहे क्योंकि ऐसे नतीजों की उम्मीद किसी ने भी नहीं की थी, किसी ने भी नहीं सोचा था कि 18 साल के शासन के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा की ऐसी प्रचंड जीत होगी, किसी ने भी ये अनुमान नहीं लगाया था कि भूपेश बघेल के उम्दा कामों के बावजूद कांग्रेस को वहां सत्ता खोनी पड़ेगी, यहाँ तक की राजस्थान में भी लोगों का मानना था कि मुख्यमंत्री गेहलोत 30 साल की सरकार बदलने की परंपरा को तोड़ सकते हैं लेकिन नतीजों ने सारे अनुमानों को धराशायी कर दिया। कहा गया कि भाजपा ने कांग्रेस को बुरी तरह हराया लेकिन सवाल उठता है कि क्या वाकई भाजपा ने कांग्रेस को हराया है, कम से कम नतीजों का आंकलन करने के बाद तो ऐसा नहीं लगता। वो तो यही बता रहे हैं कि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस को कमोबेश उतने ही वोट मिले हैं जितने 2018 के चुनावों में मिले थे और कांग्रेस ने तीनों राज्यों में सरकार बनाई थी ये अलग बात हैं कि मध्य प्रदेश में 15 महीनों बाद भाजपा ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली थी. तो सवाल ये उठता है कि जब कांग्रेस को 2018 की तरह ही वोट मिले हैं तो फिर वो भाजपा से इतनी बुरी तरह हारी कैसे? मध्य प्रदेश के नतीजे आने के बाद सभी यही कह रहे थे कि जो नतीजे आये हैं वो ज़मीन पर किसी को दिखाई नहीं दिए. किसी पार्टी का मत प्रतिशत अगर 8 प्रतिशत बढ़ने वाला होता है तो वो काफी पहले से दिखाई भी देने लगता है, और इस तरह से दिखाई देने लगता जिसके बारे में सभी अनुमान लगा लेते हैं. मध्य प्रदेश के नतीजे वाकई शोध का विषय हैं, और अब शोध शुरू हो चूका है, अपने अपने तौर पर राजनीतिक पंडित, यू ट्यूब चैनलों के डिबेटर्स कांग्रेस की हार के कारण खोजने लगे हैं. यहाँ हमने चुनाव आयोग की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के हिसाब से एक वजह जानने की कोशिश की है। कोशिश भाजपा की प्रचंड जीत या कांग्रेस की हार की नहीं बल्कि इस दावे की है कि भाजपा ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को बुरी तरह हराया।

मध्य प्रदेश की अगर बात करें जहाँ भाजपा ने इतनी सीटें (163) हासिल कीं जिसकी शायद उन्होंने भी कल्पना नहीं की होगी, सर्वे एजेंसियों और राजनीतिक विश्लेषकों की तो बात ही छोड़िये जो सभी एकसुर में कांग्रेस की सरकार बनने की बात कर रहे थे. अब अगर यहाँ भाजपा और कांग्रेस के मत प्रतिशत की बात करें तो यहाँ भाजपा को इस बार 48.55 प्रतिशत मत प्राप्त हुआ है जबकि कांग्रेस को 40.44 प्रतिशत। दोनों के बीच 8 प्रतिशत का अंतर आया है. जब हम 2018 की तरफ जाते हैं तो पाते हैं कि कांग्रेस को 40.89 फीसदी और बीजेपी को 41.02 फीसदी वोट मिला था. तो ज़्यादा वोट मिलने के बावजूद भाजपा को कम सीटें मिली थीं और कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हो गयी थी. तो देखने वाली बात ये है कि कांग्रेस को तो लगभग उतना मत प्रतिशत प्राप्त हुआ जितना पिछले चुनाव में आया था, बहुत मामूली सी कमी आयी है. इसका मतलब ये भी हुआ भाजपा का जो बढ़ा हुआ मत प्रतिशत आया है वो कांग्रेस पार्टी से नहीं बल्कि दूसरी पार्टियों से आया है.

तो इसका सीधा मतलब ये है कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत तो इन्टैक्ट है, भाजपा ने सेंध उन छोटी छोटी पार्टियों के वोट बैंक में लगाई जो हमेशा अपने को किंग मेकर साबित करने और बनने की कोशिश में लगी रहती हैं, कहने को तो ये पार्टियां बढ़चढ़कर भाजपा विरोध में बातें करती हैं लेकिन चुनावों में थोक भाव में अपने प्रत्याशी खड़ा करके भाजपा की अपरोक्ष रूप से मदद करती हैं. आइये जानते हैं कि भाजपा ने अतिरिक्त सात प्रतिशत वोट कहाँ से हासिल किया। इस चुनाव में यूपी की कही जाने वाली पार्टी बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने इस बार मध्य प्रदेश में थोक भाव से अपने उम्मीदवार उतारे। सपा ने जहाँ 74 तो बसपा ने लगभग सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़ा किये। चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक बसपा को इसबार 3.40 प्रतिशत वोट हासिल हुए वहीँ सपा को मात्र 0.46 प्रतिशत। अब 2018 में देखें तो बसपा को 5.01 फीसदी और सपा को 1.30 फीसदी वोट मिले थे. इस तरह से देखा जाय तो बसपा का दो प्रतिशत और सपा का एक प्रतिशत वोट कम हुआ और ये तीन प्रतिशत वोट भाजपा के खाते में गया दूसरे शब्दों में भाजपा की अगर किसी ने मदद की तो बसपा और सपा ने की. इसलिए इस दावे में कोई सच्चाई नहीं दिखती कि मध्य प्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस को बुरी तरह हराया है. कांग्रेस की जो बुरी हार सीटों में नज़र आ रही है वो दरअसल बसपा और सपा जैसी पार्टियों की वजह से है.

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