अमित बिश्नोई
महाराष्ट्र में अपार जनमत हासिल करने के बावजूद भी महायुति में नतीजों के चार दिन बाद भी मुख्यमंत्री कौन पर उहापोह की स्थिति बनी हुई है. हर किसी को हैरानी हो रही है सरकार बनाने की अंतिम तारीख 26 नवंबर बीत जाने के बाद भी सीएम की कुर्सी को लेकर कोई स्पष्टता क्यों सामने नहीं आ रही है, केयर टेकर मुख्यमंत्री का खेल क्यों खेला जा रहा है, 132 सीटें जीतने के बावजूद भाजपा अपना मुख्यमंत्री क्यों नहीं घोषित कर पा रही है? वैसे तो आजसे महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाना चाहिए थे क्योंकि संवैधिन रूप से तो सरकार बनाने की तारीख निकल गयी है, ऐसा क्यों हुआ ये तो संविधान के जानकार ही बता पाएंगे या फिर सरकार।
लेकिन इधर ऐसा लगता है कि शिवसेना निवर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के लिए दूसरे कार्यकाल पर अड़ गयी है जबकि भारतीय जनता पार्टी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री कुर्सी वापस दिलाने का मन बना चुकी है, उसे अजीत पवार की एनसीपी का समर्थ भी हासिल है लेकिन भाजपा शिंदे को खोना नहीं चाहती, इसलिए मामले को थोड़ा धीमा किया गया है. मंगलवार को एकनाथ शिंदे ने राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन से मुलाकात की और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, उस समय उनके साथ फडणवीस भी थे जिनके चेहरे भी काफी अच्छी मुस्कान नज़र आ रही थी। राज्यपाल ने शिंदे को नई सरकार के कार्यभार संभालने तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में काम करते को कह दिया।
वैसे तो ऐसी परिस्थियों के बारे में लोगों को पहले से अंदेशा था लेकिन तब ये माना जा रहा था कि महायुति और MVA में कड़ी टक्कर होगी और एक नज़दीकी मुकाबला होगा, ऐसे में एकनाथ शिंदे के पास बार्गेनिंग पावर होगा लेकिन नतीजों में भाजपा ने इतनी प्रचंड सफलता हासिल की कि एनसीपी अजीत पवार और शिंदे की शिवसेना से तोलमोल का अवसर हाथ से निकल गया. अजीत पवार ने तो हालात से तुरंत समझौता कर लिया और भाजपा के समर्थन में खड़े हो गए, हालाँकि पहले उनकी पार्टी की तरफ सीएम पद के लिए उनका नाम भी उछाला जा रहा था. लेकिन शिंदे के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ना इतना आसान नहीं है. सवाल ये उठता है कि शिंदे अगर सीएम नहीं तो क्या बनेंगे? क्या केंद्र में जाने का ऑफर स्वीकार करेंगे। केंद्र में जाने का मतलब राज्य की राजनीती से दूर होना, जो भाजपा को सूट करता है. शिंदे केंद्र में नहीं जायेंगे तो क्या फडणवीस की तरह डिमोट होकर डिप्टी बनेंगे। शिवसेना शिंदे के अन्य नेताओं की मानें तो ये संभव नहीं है. ऐसे में पेंच गहरा हो जाता है. भाजपा खेमा पहले ही कह चूका है कि इसबार कुर्बानी भाजपा नहीं देगी क्योंकि वो एकबार दे चुकी है, उधर रामदास अठावले इस मामले पर तेल छिड़क रहे हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में लगातार पिछड़ते जा रहे अठावले भाजपा के सुर में सुर मिला रहे हैं। अठावले का कहना है कि एकनाथ शिंदे माने या माने, मुख्यमंत्री तो फडणवीस को ही बनाया जाना चाहिए। उनके कहने का मतलब है कि शिंदे माने तो ठीक वरना उनके बिना ही आगे बढ़ना चाहिए।
अठावले के इस बयान के बाद शिवसेना से भी बयानबाज़ी शुरू हो चुकी है और साफ़ तौर कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र में बिहार फार्मूला अपनाया जाय, एकनाथ शिंदे किसी भी हालत में डिप्टी सीएम का ऑफर स्वीकार नहीं करेंगे। दोनों ही पार्टियों के बीच बयानों में थोड़ी तल्खी दिखाई पड़नी लगी है. हालाँकि शिवसेना का एक धड़ा भाजपा के ऑफर को सही मान रहा है, उसका मानना है कि नतीजे भाजपा को स्पष्ट रूप से बढ़त दिखा रहे हैं ऐसे में किसी भी तरह की ज़िद ठीक नहीं है. ऐसे लोगों को ये लग रहा है कि एकनाथ शिंदे अगर अपनी बात पर अड़ गए तो बात ज़्यादा बिगड़ सकती है. ये वो लोग हैं जो सत्ता के लिए ही शिवसेना से टूटकर एकनाथ शिंदे के साथ गए थे, किसी भी तरह की ज़िद से सामने आने वाला नतीजा इन लोगों को सत्ता से दूर कर सकता है. वहीँ एकनाथ शिंदे को भी मालूम है कि शिवसेना को तोड़ने के बाद उसे असली शिवसेना साबित करने और मज़बूत करने के लिए उन्हें अभी मुख्यमंत्री की कुर्सी की ज़रुरत है. उन्हें अपने समर्थकों को भी ये दिखाना है कि वो महाराष्ट्र की राजनीती का अहम् हिस्सा हैं और इस बात के लिए सत्ता में रहना ज़रूरी है.
वैसे कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री कौन वाले सवाल का हल 27 नवंबर की शाम तक निकल सकता है, मुंबई में एक अहम् बैठक होने वाली है जिसमें गंभीरता से इस बात की चर्चा होनी हैं कि एकनाथ शिंदे को कैसे मनाया जाय और फडणवीस की ताजपोशी कैसे कराई जाय. बात न बन पाने की सूरत में क्या एनसीपी अजीत पवार के साथ आगे बढ़ा जाय? अगर ऐसा हुआ तो शिंदे का क्या होगा। उनकी पार्टी के राजनीतिक भविष्य का क्या होगा। इस मामले में संजय राउत का एक बयान बहुत अहम् है. सीएम पद के लिए मची मारकाट पर राउत ने कहा कि एकनाथ शिंदे किसी भी पद के लिए तैयार हो जायेंगे। उनके सामने मान सम्मान जैसी कोई कोई समस्या नहीं है. वो सत्ता के बिना रह नहीं सकते और सत्ता में बने रहने के लिए शिंदे उपमुख्यमंत्री तो क्या सिर्फ मंत्री भी बनने को तैयार हो जायेंगे। खैर सवाल अभी यही है कि महाराष्ट्र को कब मिलेगा मुख्यमंत्री। क्या फडणवीस का फिर होगा प्रमोशन या शिंदे का बढ़ेगा कार्यकाल।