सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को चुनावी चंदे यानि इलेक्टोरल बांड की डिटेल चुनाव आयोग को सौंपनी पड़ी, चुनाव आयोग ने उसे अपने वेबसाइट पर जैसा है जहाँ है के तहत अपलोड करने में देरी नहीं लगाई और समय सीमा से 24 घंटे पहले ये काम अंजाम दिया। चुनाव आयोग ने स्टेटबैंक से मिली दो पीडीएफ फाइलों को अपलोड किया, एक में दानदाताओ के नाम थे और दूसरे में राजनीतिक पार्टियों के नाम कि उनको कितना चंदा मिला लेकिन स्टेट बैंक ने वो यूनिक नंबर साझा नहीं किया जिसकी मदद से पता चलता कि किसने किस पार्टी को चंदा दिया। ये अल्फ़ा न्यूमेरिक नंबर है जो अल्ट्रा वायलेट रौशनी में देखा जाता है, इस नंबर के ज़रिये पता चलता है किस पार्टी ने किस बांड को किस तारीख में भुनाया।
अब सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को आदेश दिया है कि वो बांड के नंबर का भी खुलासा करे, शीर्ष अदालत ने SBI चेयरमैन को नोटिस जारी किया है और उन्हें सोमवार यानि 18 मार्च को अदालत में हाज़िर होने को कहा है. कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बांड का अल्फा न्यूमेरिक नंबर को भी चुनाव आयोग से शेयर करे. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने रजिस्ट्रार को आदेश दिया है कि वो सुप्रीम कोर्ट मे जमा डाटा को 16 मार्च की शाम 5 बजे तक चुनाव आयोग को सौंपे. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि जो डेटा अदालत के पास है वो रजिस्ट्री से मिलने के बाद पोर्टल पर अपलोड करें.
अभी जो डाटा चुनाव आयोग की वेबसाइट पर दिख रहा है उससे ये पता लगाना नामुमकिन सा है कि किस कंपनी के इलेक्टोरल बांड किस राजनीतिक दल ने भुनाया और उसके आगे या पीछे उस कंपनी को क्या किसी तरह का सरकारी लाभ मिला। अभी सिर्फ यही पता चल सका है कि अमुक कंपनी ने इतना चुनावी चंदा दिया है और अमुक राजनीतिक दल को इतना चुनावी चंदा मिला है. हालाँकि ये डाटा आने के बाद कांग्रेस पार्टी और दूसरे सामाजिक संगठन इसका पोस्टमॉर्टेम करने में जुटे हुए हैं और बहुत सी जानकारियां भी सामने आयी हैं कि किसी ख़ास कम्पनी ने कब ED रेड पड़ी और उसके बाद फ़ौरन बाद उसकी तरफ से करोड़ों के इलेक्टोरल बांड खरीदे गए और बाद में ED की कार्रवाई ठन्डे बास्ते में चली गयी या फिर किसी कम्पनी ने कब करोड़ों रूपये के बांड खरीदे और कुछ ही दिन बाद उसे कोई बड़ा प्रोजेक्ट हाथ लगा.