RBI News: आरबीआई गवर्नर दास ने भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की चुनौतियों से निपटने में बैंकों की ताकत पर भरोसा जताया है। दास के इस विश्वास का कारण है कि आरबीआई ने हाल में कई कदम उठाए और इनके परिणाण दिख रहे हैं। आरबीआई ने पर्यवेक्षकों के लिए एक अलग खंड बनाया और उनके लिए समूह तैयार किया है।
बैंकों के प्रमुखों को दी कुछ स्वतंत्रता
आरबीआई ने सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं कि बैंकों में प्रमुख गतिविधियों जैसे जोखिम प्रबंधन इत्यादी की कमान संभालने वालों को कुछ स्वतंत्रता दी है। जिससे कि वो सीधे सीईओ और बोर्ड को रिपोर्ट कर सकें।
अप्रत्यक्ष निगरानी व्यवस्था से केंद्रीय बैंक को विभिन्न बैंकों और बैंकिंग प्रणाली में पनप रहे जोखिम का आकलन करने में मदद मिल रही है।
ऑफसाइट निगरानी व्यवस्था के तहत बैंकों को प्रारंभिक आंकड़े आरबीआई को सौंपने होते हैं। बैंकों से मिले इन आंकड़ों का अध्य्ययन करके आरबीआई जोखिमों का पता लगाता है। सालाना वित्तीय रिपोर्ट और जोखिम समीक्षा रिपोर्ट (आरएआर) किसी संभावित खतरे की तरफ इशारा करने में कारगर रहे हैं।
जोखिम समीक्षा रिपोर्ट बैंकों को
आरबीआई सालाना वित्तीय समीक्षा रिपोर्ट और जोखिम समीक्षा रिपोर्ट (आरएआर) बैंकों को भेजता है। आरबीआई पहले बैंकों की ओर से जवाब आने का अगली समीक्षा शुरू करने तक इंतजार करता था। एक साल की अवधि किसी बैंक के डूबने के लिए काफी होती है। आरबीआई ने हाल के अनुभव से काफी कुछ हासिल किया है। आरबीआई पर्यवेक्षकों का कहना है कि आरएआर में दी गई बड़ी समस्याओं का हल रिपोर्ट सौंपने के कुछ हफ्तों या महीनों में निकल जाएंगे। आरबीआई गवर्नर दास ने बैंक बोर्ड के लिए एक 10 सूत्री नियमावली का उल्लेख किया था। जिनमें प्रमुख बातों को दास ने बैंकों को बैठक के दौरान बताया।
गवर्नर ने बोर्ड में होने वाली चर्चाओं में सीईओ के दबदबे और बोर्ड में स्वयं अपनी बात रखने में झिझकने का भी जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि आरबीआई के संज्ञान में कई बार आया है कि बोर्ड अपनी बात खुलकर नहीं रख पाते। दरअसल यह समस्या केवल बैंकों के बोर्ड की नहीं बल्कि दूसरी इकाइयों के बोर्ड के साथ है।
बोर्ड की बैठकों में गतिविधियों पर नजर रखना मुश्किल होता है। ब्रिटेन के वित्तीय सेवा प्राधिकरण की बैठक में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड (आरबीएस) के विफल रहने की समीक्षा के दौरान महसूस की थी। यह समीक्षा 2011 में प्रकाशित हुई थी। आरबीएस का बोर्ड काफी अच्छा था और इसके सदस्यों में सभी आवश्यक हुनर मौजूद थे।
जब बैंक का सीईओ जोखिम भरे रास्ते पर चल रहा था तो बोर्ड मूकदर्शक बना था। अगर किसी सीईओ का कामकाजी प्रदर्शन अच्छा रहा है तो उस स्थिति में निदेशकों के लिए सीईओ को चुनौती देना मुश्किल होता है। मगर प्रदर्शन शानदार रहना सीईओ के सदैव सफल रहने या मार्ग से नहीं भटकने का प्रमाण नहीं होता है।
ऐसा भी हो सकता है कि कोई सीईओ पूर्व में सही नीति के साथ चला लेकिन बाद में वह रास्ते से भटक गया। निदेशकों को लगता है कि उनकी बात बढ़िया प्रदर्शन करने वाले सीईओ के लिए बाधा उत्पन्न कर सकती हैं। दास ने बैंकों के बोर्ड को बैंक के लिए निगमित संस्कृति और मूल्य प्रणाली के लिए उपयुक्त माहौल बनाने का आग्रह किया। अप्रैल में क्रेडिट सुइस बैंक के दिवालिया होने के बाद दास के इस आग्रह का महत्त्व और बढ़ना चाहिए। यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड के साथ विलय होने से पहले क्रेडिट सुइस बैंक के पास पूंजी की कमी नहीं थी और न नकदी की कोई किल्लत थी।