देवप्रयाग – भगवान का मंदिर सभी को पुण्य प्रदान करने वाला माना जाता है लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जो उस समय के राजाओं के लिए श्रापित माना जाता था आलम यह था कि जब राजा वहां से गुजरते थे तो मंदिर को ढक दिया जाता था भगवान श्रीराम का यह मंदिर उस समय के राजाओं के लिए श्रापित माना जाता था हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के देवप्रयाग में स्थित रघुनाथ मंदिर की. पौराणिक मंदिर में भगवान श्री राम की अकेली मूर्ति लगी हुई है. आठवीं शताब्दी के दौरान आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई.
ब्राह्मण हत्या के श्राप से मुक्त होने को की तपस्या
उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले देवप्रयाग भागीरथी और अलकनंदा नदी के संगम पर स्थित रघुनाथ मंदिर को लेकर मान्यता है कि रावण वध के बाद श्री राम ब्राह्मण हत्या के अभिशाप से ग्रस्त हो गए थे जिससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने हिमालय की ओर रुख किया माना जाता है कि देवप्रयाग में इसी स्थान को उन्होंने अपने तक के लिए चुना. श्रीराम ने इस स्थान पर कई वर्षों तक कठोर तप किया था.
मंदिर में श्री राम की अकेली मूर्ति
द्रविड़ शैली के बने रघुनाथ मंदिर में भगवान श्रीराम की अकेली मूर्ति है. यहां पर ना माता सीता की और ना ही हनुमान की मूर्ति लगाई गई है. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने यहां अकेले तब किया था. जिसके चलते केवल उन्हीं की मूर्ति यहां पर स्थापित की गई है. कहा यह भी जाता है कि हनुमान श्री राम के सच्चे सेवक थे इसलिए वह उनका पीछा करते हुए जहां तक आ गए. भगवान श्री राम जब तपस्या में लीन थे तो हनुमान ठीक उनके पीछे छुप कर बैठ गए. शायद यही वजह है कि रघुनाथ मंदिर के ठीक पीछे हनुमान जी का भी मंदिर है.
राजा के सामने ढक दिया जाता था मंदिर
माना जाता है कि 1785 में पंवार राजा जयकृत सिंह ने इसी मंदिर में अपनी जान दी थी. कहा यह भी जाता है कि राजा की 4 रानी भी यही सती हुई थी. जिसके बाद पंवार वंश के श्रापित होने के चलते आज भी पंवार वंश का कोई सदस्य इस मंदिर की ओर नहीं देखता है. कहा यह भी जाता है कि राजा जब कभी भी देवप्रयाग आते थे तो मंदिर को पूरी तरह से ढक दिया जाता था.