अमित बिश्नोई
अब इसे प्रधानमंत्री का भोलापन कहें, मासूमियत कहें, उनका अंतर्मन कहें या फिर बदलते चुनावी मौसम में बदलता रंग. कल उन्होंने वाराणसी में एक साक्षात्कार में कहा कि मैं हिंदू-मुस्लिम नहीं करूंगा, यह मेरी प्रतिज्ञा है। प्रधानमंत्री जी की इस बात पर एक शेर याद आ गया
इस सादगी पर कौन न मर जाये ऐ खुदा
करते हैं क़त्ल और हाथ में तलवार नहीं है
जब से चुनाव शुरू हुआ हैं प्रधानमंत्री ने अपनी अधिकांश चुनावी सभाओं में जो एकबात ज़रूर कही वो थी हिन्दू मुसलमान। आपको संपत्ति छीनने वाली बात याद होगी, मंगल सूत्र की बात याद होगी। इसपर ज़्यादा कुछ कहने की ज़रुरत नहीं क्योंकि प्रधानमंत्री को खुद ही इस बात का एहसास हो गया है कि उनका ये मास्टर स्ट्रोक, मास्टर फ्लॉप साबित हो चूका है. कोई इस बात को मानने को तैयार ही नहीं कि कांग्रेस हिंदुओं से सोना छीन लेगी, मंगल सूत्र छीन लेगी दो में से एक घर छीन लेगी, दो भैसें हैं तो एक भैंस छीन लेगी और न सिर्फ छीन लेगी बल्कि ये सब उन लोगों में बाँट देगी जो ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं. भाजपा वाले भी कह रहे कि प्रधानमंत्री जी ये किस तरह की बातें कर रहे हैं और शायद वाराणसी में मुसलमान और ईद की बातें करके उन्होंने डैमेज कंट्रोल की कोशिश की है।
वैसे तो भाजपा के बहुत से लोग कहते हैं कि उन्हें मुसलमानों के वोट की कोई ज़रुरत नहीं हैं लेकिन जब बात 400 पार जाने की हो तो ज़रुरत तो सभी समुदाय के वोटों की पड़ती है. लखनऊ से शिया धर्मगुरु कल्बे जव्वाद ने भाजपा को समर्थन का एलान किया है. राजनाथ को बड़ी जीत चाहिए तो मुसलमानों के भी वोट चाहिए। दिलचस्प बात ये है कि खुले आम हिन्दू मुसलमान की बात करने वाले प्रधानमंत्री मोदी जी इस बात से साफ़ इंकार करते हैं, कहते हैं कि उन्होंने सिर्फ मुसलमानों के बारे में बात नहीं की, राम के नाम पर वोट मांगने वाले मोदी जी कहते हैं वो वोट बैंक की राजनीती करते और यही वजह है कि वो मुसलमानों के प्रति प्यार की मार्केटिंग नहीं करते। प्रधानमंत्री ने अपने इंटरव्यू में कहा कि जिस दिन वो हिन्दू मुसलमान शुरू करेंगे, सार्वजानिक जीवन के लायक नहीं रहेंगे। भई इसे तो दीदादिलेरी ही कहा जायेगा, खुले आम अपने चुनावी भाषणों में हिन्दू मुसलमान करने वाले, खुले आम राम के नाम पर वोट मांगने वाले मोदी जी वोट बैंक की राजनीती से इंकार कर रहे हैं, वोट बैंक क्या सिर्फ मुस्लमान ही हैं?
मोदी जी कहते हैं कि ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाले का मतलब ये नहीं है कि मुसलमान ही ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं, गरीब लोग भी बच्चे ज़्यादा पैदा करते हैं, ऐसी बातें करने वाले दरअसल उनकी छवि खराब करते हैं. उनके घर में तो ईद और मुहर्रम में खाना भी नहीं बनता था क्योंकि खाना पड़ोस के मुस्लिम घरों से आता था, वो ताज़िये के नीचे से गुज़रते थे, उनका बचपन ऐसे ही माहौल में गुज़रा लेकिन साथ में ये भी कहते हैं कि गोधरा के बाद बहुत कुछ बदल गया लोगों ने उनकी छवि मुस्लिम विरोधी के रूप में बना दी. प्रधानमंत्री ने कभी भी हिन्दू मुसलमान न करने की प्रतिज्ञा ली. काश की ये चुनावी प्रतिज्ञा न हो.
मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों जिस तरह से अपना चुनावी अभियान चलाया है उसने उनका नुक्सान ही किया है. दस साल शासन के बाद लोगों में उनकी लोकप्रियता बरक़रार थी, उन्हें अपने दस साल की उपलब्धियों पर चुनाव लड़ना चाहिए था। हिन्दू-मुस्लमान की राजनीती से देश परेशान हो चूका है, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य और शिक्षा की बातें करने लगा है, उन मुद्दों पर बात करने लगा है, बहस करने लगा है जो उसके जीवन को बेहतर बना सके, मंहगाई से निजात दिला सके. बहस से याद आया कि अभी तीन चरणों का चुनाव शेष है. देश की कुछ जानी मानी हस्तियों जिनमें पूर्व जज और संपादक शामिल हैं ने प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गाँधी के बीच एक स्वस्थ डिबेट की बात कही. प्रधानमंत्री के पास बहुत अच्छा मौका है, उन्हें इस चुनौती को स्वीकारना चाहिए और विपक्ष के मुख्य नेता के साथ आमने सामने देश के ज्वलंत मुद्दों पर अपनी बात रखनी चाहिए। राहुल गाँधी ने तो इस चैलेंज को स्वीकार किया लेकिन भाजपा की ओर तमाम तरह की दूसरी बाते सामने आयी. अगर ऐसा हो जाय तो ये एक बहुत अच्छी परंपरा बन सकती है देश की राजनीति में. देश के सत्ता पक्ष और विपक्ष के दो सबसे बड़े नेता आमने सामने बैठकर बात करें तो इससे अच्छा और कुछ हो ही नहीं सकता लेकिन मोदी जी शायद ही इस मौके का फायदा उठायें। फिलहाल तो चरण दर चरण प्रधानमंत्री का एक नया रूप सामने आ रहा है, देखना है अभी और कितने रूप और सामने आएंगे। मंगलसूत्र से शुरू हुई बात अब ईद और मुहर्रम तक आ चुकी है. देखते हैं कि प्रधानमंत्री अपनी प्रतिज्ञा पर कितना दृढ रहते हैं. एक मशहूर टीवी प्रोग्राम के थीम सांग के साथ बात ख़त्म करता हूँ “रिश्तों के भी रूप बदलते हैं, नए नए सांचे में ढलते हैं.