कोविड-19 महामारी और मंकीपॉक्स के खतरे के बीच जानवरों में फैली नई बीमारी लंपी स्किन डिजीज यानी एलएसडी वैज्ञानिकों के लिए गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। देश के कई राज्यों में गोवंश यानी गाय, बैल, सांड, बिजार आदि में यह बीमारी उभर कर सामने आ रही है। जिसके बाद पशुपालन विभाग इसकी रोकथाम के प्रयासों में जुट गया है। माना जा रहा है कि देश में यह बीमारी राजस्थान से होते हुए अन्य जिलों में पहुंची है। कुछ अधिकारियों का कहना है बहुत संभावना है कि बीमारी का प्रवेश पाकिस्तान से हुआ है। जानवरों के आवागमन के चलते ही यह बीमारी देश में भी अपना कहर ढा रही है। हालांकि बीमारी कहा से आई इस पर अभी रिसर्च चल रही है।
हाई रिस्क जोन में आए कई राज्य
देश के कई राज्य लंपि वायरस के चलते हाई रिस्क जोन में आ गए हैं। भारत सरकार द्वारा इन राज्यों में विशेष एहतियात बरतने के निर्देश जारी किए गए हैं। साथ ही विस्तृत गाइडलाइन भी इन राज्यों के लिए जारी की गई है। राजस्थान, तेलांगना, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा समेत सभी राज्यों में विशेष कमेटियां बीमारी की रोकथाम के लिए गठित की गई है। यूपी के कई जिलों में बीमारी अपना कहर ढा रही है। खासतौर से पश्चिमी यूपी के 15 जिले इससे पूरी तरह प्रभावित हो चुके हैं। जिसमें मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बागपत, बुलंदशहर, हापुड़ समेत कई जिले रेड अलर्ट जोन में घोषित किए गए हैं। इसके अलावा मेरठ मंडल, बरेली मंडल, आगरा मंडल समेत कई मंडलों को भी हाई रिस्क जोन में रखा गया है। सरकार द्वारा इसके लिए विशेष हेल्पलाइन भी जारी की गई है। वही जागरूकता के सभी साधन अपनाने के लिए विभाग को निर्देश दिए गए हैं।
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क्या है लंपि स्किन डिजीज
लंबी स्किन डिजीज 1929 में सबसे पहले यह बीमारी दक्षिण अफ्रीका के जांबिया में मिली थी। 2012 में यूरोप, रूस और कजाकिस्तान के जरिए यह रोग तेजी से फैला। एशिया महाद्वीप में बांग्लादेश में जुलाई 2019 में ये बीमारी रिपोर्ट की गई। भारत में भी 2019 में उड़ीसा राज्य में यह बीमारी देखी गई थी। ये बीमारी एलएसडी कैपरोपोक्सी वायरस से फैलने वाली बीमारी है। इसमें जानवरों की चमड़ी पर गांठे बन जाती हैं। ये गांठे बाद में फूट भी जाती हैं। ये वायरस पॉक्सविरिडी वायरस परिवार से है। इसे निथलिंग वायरस भी कहते हैं। मक्खी, मच्छर, जूं आदि खून चूसने वाले जीव इसे फैलाते हैं। ये मानवों में अभी तक रिपोर्ट नहीं की गई है।
जरूरी है सावधानी
पशु चिकित्सा अधिकारियों का कहना है कि इस बीमारी को जानवरों में फैलने से रोकने के लिए सावधानी ही बचाव है। पशुओं की खास देखभाल के साथ ही उन्हें मक्खी- मच्छर आदि से बचाया जाना जरूरी है. इसके साथ ही गायों- भैंसों के दूध को उबालकर पीना ही जरूरी है. चिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी के कुछ देसी उपचार है जिन्हें आम जनमानस के बीच प्रसारित करवाया जा रहा है।