Lok Sabha Election 2024: 23 जून 2023 को पटना में विपक्ष दलों का कुनबा जुटेगा। इस बैठक में लगभग विपक्षी दलों के सभी बड़े नेता भाग लेंगे। बैठक के माध्यम से देश को बड़ा राजनीति संदेश देने की तैयारी जोरों पर है। माना जा रहा है कि इसी बैठक में आधिकारिक एलान होगा कि भाजपा के खिलाफ अगला लोकसभा चुनाव 2024 विपक्षी दल एकजुट होकर लड़ेंगे।
कौन, कहां से कितनी सीट पर लड़ेगा?
इसी बैठक में यह तय होगा कि कौन दल कहा से और कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा। इसके अलावा विपक्ष की अगुआई कौन करेगा? विपक्ष में भावी पीएम का चेहरा कौन है। इन सभी मुददों पर अभी से कयास लगाए जाने लगे हैं। वहीं इस बात की चर्चा भी है कि कुछ विपक्ष दल के नेता इस बैठक में शामिल नहीं होंगे।
एकजुटता के लिए विपक्ष की रणनीति?
विपक्ष उन मुद्दों की तलाश में है। जिनके सहारे सभी के बीच सहमति बनेगी। अभी तक कुछ मुद्दे ऐसे हैं, जिनको लेकर सभी दल लगभग एकसाथ हैं। इन मुद्दों में विपक्षी दलों पर जांच एजेंसियों की कार्रवाई से लेकर सरकार पर सांप्रदायिक होने के आरोपों पर दलों में एकता दिखाई दे रही है।
विपक्षी दल जातिगत आरक्षण बढ़ाने, जातिगत जनगणना कराने जैसे मुद्दे पर एकजुट दिख रहे हैं। विपक्ष ने आरोप लगाए हैं कि भाजपा सरकार क्षेत्रीय और विपक्ष के अन्य राजनीतिक पार्टियों को खत्म करने की कोशिश में है। इसे विपक्ष एकजुट होने के लिए मुद्दा बना सकता है।
सीट बंटवारे का फॉर्मूला?
चर्चा में कहा जा रहा है कि चुनाव के समय जिस दल का जिस राज्य या क्षेत्र में दबदबा हो वहां उसी दल को आगे किया जाए। मसलन बिहार में राजद-जदयू का प्रभाव है। ऐसे में यहां की अधिकांश सीटों पर इन दो दलों के प्रत्याशी उतारे जाएं। इसके अलावा अन्य दलों का कुछ जनाधार हो तो उन्हें कुछ सीटों पर मौका दिया जाना चाहिए।
इसी तरह यूपी में सपा को अधिक सीटें दी जाए। राजस्थान-छत्तीसगढ़, हिमाचल राज्यों में कांग्रेस लीड करती है तो उसको वहां पर मौका दिया जाना चाहिए। जहां विवाद की स्थिति बने, वहां बैठकर मामले को हल किया जाए। कहा जा रहा है कि इस फार्मूले के दम दम पर विपक्ष देश की सभी 543 लोकसभा सीटों में करीब 450 सीटों पर भाजपा को सीधे टक्कर देने की तैयारी कर चुका है।
ये पार्टियां विपक्ष के गठबंधन का हिस्सा
जेडीयू, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, शिवसेना (उद्धव ठाकरे), सभी वाम दल, टीएमसी, एनसीपी, आम आदमी पार्टी, झामुमो, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, आरएलडी, इंडियन नेशनल लोकदल और डीएमके के नेता 23 जून को पटना में होने वाली बैठक में शामिल होगे। ये दल शुरुआती गठबंधन का हिस्सा माने जा रहे हैं।
कौन से दल इस बैठक में शामिल नहीं होंगे?
लेकिन इसके उलट कई दल ऐसे भी हैं जो कि इस 23 जून को होने वाली बैठक से किनारा कर रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा दल तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर का है। केसीआर की पार्टी बीआरएस ने बैठक में शामिल नहीं होने का फैसला किया है। अभी बीआरएस तेलंगाना की सत्ता में है। जहां पर कांग्रेस विपक्ष में है। दोनों के बीच सीधी टक्कर होती रही है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक क अलावा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने भी विपक्ष की इस बैठक में नहीं शामिल होने का निर्णय किया है। इसके अलावा यूपी में सुभासपा, बिहार से हम जैसे छोटे दलों ने विपक्षी एकता से अलग राह पकड़ने की तैयारी की है।
विपक्ष पूरी तरह से एकजुट नहीं हुआ तो पड़ेगा असर?
अगर विपक्ष के सभी दल एकसाथ नहीं आए हैं तो इसका सीधा असर विपक्ष गठबंधन और फिर सीटों पर दिखाई देगा। विपक्ष में बिखराव का लाभ भाजपा को मिलेगा। जैसे यूपी में ऐसा नहीं है कि बसपा का वोट खत्म हो गया है। बसपा के पास बड़ी संख्या में उसका कैडर वोट हैं। अगर यूपी में बसपा अलग चुनाव लड़ी तो कई सीटों पर वह सपा के संयुक्त उम्मीदवार को तगड़ा नुकसान पहुंचाएगी। ऐसी स्थिति में भाजपा को लाभ मिलेगा। इसी तरह तेलंगाना, बिहार, ओडिशा जैसे राज्यों में विपक्ष के गठबंधन को नुकसान उठाना पडेगा।